
कांग्रेस यूपी में अपने परंपरागत वोट आधार को पिछले कई दशकों से लगातार खोती चली गई है। 1984 के बाद से ही यह प्रक्रिया तेजी से शुरू हुई, बहुजन समाजवादी पार्टी ने जहां नए सिरे से कांशीराम के नेतृत्व में यूपी में गोलबंद होना शुरू किया, उसने देखते ही देखते दलित, मुस्लिम एवं अन्य वंचित वर्ग के बड़े हिस्से को कांग्रेस से अलग कर यूपी में उसके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था। दूसरी तरफ मुलायम सिंह ने यादव-मुस्लिम को आधार बनाते हुए राज्य के तमाम पिछड़े तबकों के बीच अपनी मजबूत उपस्थिति के साथ पहले ही बड़े हिस्से को कवर कर लिया था। रही-सही कसर राम मंदिर आंदोलन के बाद सवर्ण मतदाताओं का भाजपा-आरएसएस के पक्ष में चले जाने से कांग्रेस के पास यूपी में कोई आधार ढूंढ़ना एक झूठी आस से अधिक कुछ नहीं था।