Tuesday, April 22, 2025
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27 साल से एक अदद जीत के लिए छटपटा रही कांग्रेस

  • बागपत लोकसभा में 1996 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से चौधरी अजित सिंह ने की थी जीत दर्ज
  • विधानसभा में 1995 तक रहा आईएनसी का दबदबा 2022 में कांग्रेस जिलाध्यक्ष की जमानत हुई थी जब्त

अमित पंवार |

बागपत: बागपत लोकसभा की बात हो या विधानसभा की, दोनों में ही कांग्रेस 27 साल से एक अदद जीत के लिए छटपटाती दिखाई देती है। बागपत की सरजमीं पर कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था, लेकिन संगठन की कमजोरी कहें या फिर पार्टी का गिरता ग्राफ माना जाए, जो 2022 तक पहुंचते-पहुंचते जमानत तक नहीं बच पाती। पिछले विस चुनाव में कांगे्रस जिलाध्यक्ष सहित तीनों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।

लोकसभा में 1996 में चौधरी अजित सिंह ने ही जीत दर्ज की थी, उसके बाद कांग्रेस यहां नीचे पहुंचती चली गई। भारत जोड़ो यात्रा बागपत की सरजमीं से निकालने से आने वाले समय में पार्टी को क्या मजबूती मिलेगी, यह तो समय बताएगा, लेकिन वर्तमान में यहां स्थिति बेहद खराब है।

केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस की ओर से निकाली जा रही भारत जोडो यात्रा सबसे बड़ी यात्रा भी मानी जा रही है। राहुल गांधी इसका नेतृत्व कर रहे हैं। साथ में प्रियंका गांधी भी साथ निभा रही हैं। बागपत जनपद से भी यह यात्रा गुजरेगी। यहां दो दिन का कार्यक्रम है।

बागपत की सरजमीं पर राहुल पहली बार आएंगे। उनके आगमन से बागपत में कांग्रेस को संजीवनी मिलेगी या नहीं, यह तो आगामी चुनाव बताएंगे, लेकिन एक समय था जब यहां कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा में अपना दबदबा कायम रखती थी।

विधानसभा की बात की जाए तो वर्ष 1957 से 1962 तक रघुवीर सिंह बागपत विधानसभा सीट से विधायक बने। उसके बाद वर्ष 1962 से 67 तक शौकत हमीद खान, 1969 से 74 तक चौधरी विक्रम सिंह, 1980 से 85 तक महेशचंद, 1985 से 89 तक कोकब हमीद, 1993 से 95 तक कोकब हमीद इंडियन नेशनल कांग्रेस से विधानसभा पहुंचे। उसके बाद कांग्रेस की यहां स्थिति खराब होती चली गई और रालोद यहां काबिज होता गया।

लोकसभा की बात की जाए तो 1971 में रामचंद्र विकल इंडियन नेशनल कांग्रेस से सांसद बने। 1996 में चौधरी अजित सिंह ने यहां आईएनसी से जीत दर्ज की थी। उसके बाद लोकसभा से भी कांग्रेस गुम हो गई। बागपत जनपद में कांग्रेस धीरे-धीरे गुम होती चली गई और यहां जमानत बचाने तक की मुश्किल पार्टी के सामने आ गई। 2022 के विस चुनाव में कांग्रेस यहां 2 हजार के आंकड़े तक भी एक विस में नहीं पहुंच पाई।

जबकि कांग्रेस जिस जिलाध्यक्ष के कंधों पर यहां टिका रखी है वही अपनी जमानत बचाने में कामयाब नहीं रहे थे। छपरौली से कांग्रेस जिलाध्यक्ष युनूस को प्रत्याशी बनाया था। युनूस को महज 1239 वोट मिले थे, जबकि बागपत विस से अनिल त्यागी को 1229 व बड़ौत से राहुल को 1849 वोट मिले थे। तीनों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस जिलाध्यक्ष ही जब वोटों को लेने में कामयाब नहीं हो पाए तो यहां संगठन कैसे मजबूत होगा?

क्या इस यात्रा से कांग्रेस को संजीवनी मिलेगी? जिस तरह से यहां कांग्रेस अस्तित्व के लिए छटपटाती दिख रही है उसे देखकर तो यहां हर कोई हैरान हो जाएगा। एक अदद जीत की उम्मीद कांग्रेसी यहां लगाए बैठे हैं,लेकिन वह मिलनी तो दूर की बात वोटों की संख्या देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पार्टी की हालत यहां क्या होगी? अब देखना यह है कि यात्रा से आने वाले चुनाव में कांग्रेस को संजीवनी मिलती है या नहीं?

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