Friday, March 29, 2024
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क्रोध पर नियंत्रण

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भगवान कृष्ण ने कहा है, ‘क्रोध से मुर्खता उत्पन्न होती है, मुर्खता से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है, स्मृति भ्रष्ट हो जाने से बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।’ हम कह सकते हैं कि इंसान के अंत:करण में क्रोध के समाहित होते ही व्यक्ति अपना अप्पा खो देता है और वह उसके लिए तत्कालीन विनाश का कारण बन जाता है।  गौतम बुद्ध ने भी कहा है- ‘किसी विवाद में हम जैसे ही क्रोधित होते हैं हम सच का मार्ग छोड़ देते हैं, और अपने लिए प्रयास करने लगते हैं।’ क्रोध दु:ख के चेतन कारण से साक्षात्कार या अनुमन से उत्पन्न होता है। साक्षात्कार के समय दु:ख और उसके कारण के संबंध का परिज्ञान आवश्यक है। वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। जिससे हमें दु:ख पहुँचा है उसपर यदि हमने क्रोध किया और यह क्रोध हमारे हृदय में बहुत दिनों तक टिका रहा तो वह वैर कहलाता है। इस स्थायी रूप में टिक जाने के कारण क्रोध का वेग और उग्रता तो धीमी पड़ जाती है , पर लक्ष्य को पीड़ित करने की प्रेरणा बराबर बहुत काल तक हुआ करती है। क्रोध पर पूर्ण विजय नहीं पाई जा सकती है लेकिन उसे कम किया जा सकता है। बाइबिल में लिखा है-‘मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है।’ कोई मनुष्य क्रोध को नहीं जीत सकता। क्रोध के दो रूप हैं, एक कढ़ापा (कुढ़न) और दूसरा, अजंपा (बेचैनी के रूप में)। जो लोग क्रोध को जीतते हैं, वे कुढ़ापा को जीतते हैं। इसमें ऐसा रहता है कि एक को दबाने जाए, तो दूसरा बढ़ेगा और कहे कि मैंने क्रोध को जीता, तो फिर मान बढ़ेगा। वास्तव में क्रोध को पूर्णतया जीता नहीं सकता। दृश्य (जो दिखाई दे वैसा है) क्रोध को जीता, ऐसा कहा जाएगा।
-नृपेन्द्र अभिषेक नृप

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