प्रकृति ने पिछले दिनों हुई बेतहाशा बारिश पर लगाम लगा तो जरूर दी है, परंतु बाढ़ व जल प्रलय की विभीषिका के बाद के भयावह दृश्य व उनके दुष्प्रभाव सामने आने शुरू हो चुके हैं। शासन प्रशासन इन चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करने की कोशिश कर रहा है। कई जगह जहां बिजली आपूर्ति बाधित हुई थी। सरकारी तंत्रों ने अपने मेहनतकश कर्मचारियों के दिन रात किए गए अथक परिश्रम से विद्युत आपूर्ति को बहाल किया। जहां-जहां जलापूर्ति प्रभावित थी या गंदे पानी की आपूर्ति हो रही थी, उसे भी अधिकांश जगहों पर सामान्य किया जा चुका है। और जहां नहीं हो सकी है, उसके लिए प्रयास जारी हैं। सरकार द्वारा पेय जल प्रदूषित होने के कारण फैलने वाली बीमारी से बचाव के मद्देनजर कई जगहों पर नागरिकों में दवाइयां वितरित करवाने की कोशिश की जा रही है। निचले इलाकों में ठहरे हुये पानी से सड़ांध फैली हुई है, इससे बीमारी फैलने की आशंका है।
तमाम स्थानों से मवेशियों के मरने व सड़ने की खबरें आ रही हैं। इनसे निपटना भी एक बड़ी चुनौती है। जहांं अंडर पास ओवर फ़्लो हो गए थे, वे भी अब खाली हो चुके हैं उनमें जमी गाद भी साफ की जा चुकी है। और जहां अंडर पास में डूबने से कोई मर गया था, वहां सरकार ने चेतावनी के बोर्ड लगवा दिए हैं।
जहां रेल लाइनों पर जलभराव के चलते रेल परिचालन बाधित हुआ था उसे दुरुस्त कर रेल आवागमन लगभग नियमित किया जा चुका है। परंतु बाढ़ व भारी बारिश की इस विभीषिका ने सरकार व प्रशासन की एक बार फिर पोल खोल कर भी रख दी है।
जहां-जहां सड़कों पर जलभराव था, वहां अनेक जगहों पर बने गड्ढे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सड़क निर्माण में कितनी घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। ऐसी सड़कों पर अनेक जगहों पर बजरी बाहर निकल आई है, जिससे निर्माण में बरती गई लापरवाही व भ्रष्टाचार का साफ पता चल रहा है।
दर्जनों पुल व बांध टूटने के बाद उनके निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा हो रहा है। जिस तरह कई निर्माणाधीन या नवनिर्मित पुल व बांध इस भीषण तबाही में ध्वस्त हो गए, उसी तरह देश में कुछ स्थानों से उस नव निर्माणाधीन रेल लाइनों के नीचे से जमीन धंसने व बहने के भी समाचार हैं, जो देश के चारों कोने को जोड़ने के लिए विशेष समर्पित माल ढुलाई गलियारा के नाम से बनाया जा रहा है।
अभी इसपर मॉल गाड़ियां भी नहीं दौड़ीं और नई बिछाई गई रेल लाइनों के नीचे से जमीन भी खिसक गई? इस तरह के दृश्य योजना अभियांत्रिकी तथा निर्माण की गुणवत्ता आदि अनेक पहलू से सवाल खड़ा कर रहे हैं। इसी तरह कई जगहों पर नालों की सफाई जो बारिश से पहले ही की जानी चाहिए वह नहीं हो पाई जिसके चलते शहरी इलाकों में जलभराव हुआ।
अनेक बस्तियों में पानी घुस आया। लोगों को भरी क्षति का सामना करना पड़ा। और जब बारिश रुकने के बाद जेसीबी के द्वारा गहरे नालों की सफाई की भी गई तो अनेक नाले क्षतिग्रस्त हो गए, क्योंकि उनमें घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग हुआ था। उनमें जमी घास फूस नियमित रूप से साफ नहीं की जा रही थी।
सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का झूठा ढोल जरूर पीटती रहती है, परंतु नालों नालियों व सड़कों गलियों के निर्माण की गुणवत्ता स्वयं इस बात का सुबूत है कि इनमें कितना भ्रष्टाचार किया गया है।
कई जगहों पर तो नालों नालियों में लगने वाली ईटों को एक दूसरी पर रखकर और बिना सीमेंट से उन्हें जोड़े हुए प्लास्टर कर ढक दिया जाता है। जबकि इस तरह की निर्माण परियोजना में शामिल सरकारी तंत्र व ठेकेदारों का नेटवर्क अपने घरों के निजी निर्माण में उच्च गुणवत्ता बनाये रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखता?
शहरी इलाकों में जलभराव का मुख्य कारण यह भी है कि प्राय: गलियों व सड़कों के निर्माण के नाम पर इन्हें बार-बार ऊंचा कर दिया जाता है। इसके चलते अधिकांश मकानों का स्तर गलियों व सड़कों से नीचे हो जाता है। परिणाम स्वरूप जब ऐसी सड़कों व गलियों में बारिश का पानी भरता है, तो वह गलियों सड़कों के भरने से पहले ही लोगों के मकानों या दुकानों में भर जाता है।
उधर, इन्हीं सड़कों व गलियों के किनारे बनने वाली कमजोर व घटिया सामग्री का इस्तेमाल की गर्इं नालियां टूटने या क्षतिग्रस्त हो जाने से नालियों का पानी जमीन में रिसाव कर लोगों के गली के नीचे स्तर के हो चुके मकानों में जमीन के नीचे से रिसने लगता है। लोगों के घरेलू सामन का काफी नुक़्सान होता है व भारी परेशानी भी उठानी पड़ती है।
जरा सोचिए कि भीषण महंगाई के इस दौर में जबकि इंसान को दो वक़्त की रोटी के लिए जूझना पड़ रहा हो और उसका जीवन व अस्तित्व ही दांव पर लगा हो ऐसे में वह अपने व अपने परिवार के जीने के लिए मंहगी से महंगी होती जा रही रोटी का प्रबंध करे, अपने बच्चों को अत्यंत मंहगी हो चुकी शिक्षा दिलाए या सरकारी भ्रष्टाचार व गलत योजनाओं के कारण अपने नीचे हो चुके मकानों को तोड़ कर नया मकान बनवाए?
ऐसे में लोगों का यह सवाल पूछना गैर मुनासिब नहीं कि क्या वजह है कि अंग्रेजों यहां तक कि उससे पहले मुगलों के समय के बनाये गए पुल अभी भी सुरक्षित हैं। अंग्रेजों व मुगलों के समय बनाई गई तमाम इमारतों में अभी भी न तो जलभराव होता है न ही उनमें सीलन आती है।
उस दौर के शासक तो ‘भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस’ जैसा न तो ढोल पीटते थे, न इस तरह का दावा करते थे। ईमानदारी व पूरी दक्षता से अपना काम करते थे। जबकि हमारे देश में जिसे देखो वही अपनी ईमानदारी का ढोल पीटता रहता है। स्वयं को भ्रष्टाचार विरोधी बताता है। परंतु जब भी बारिश या बाढ़ आती हे उसके बाद के दृश्य सरकारी योजनाओं की कमियों व उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार को तत्काल उजागर कर देते हैं।
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