भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान में सबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या। आज इससे सारा देश संत्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने का कार्य काफी समय से इसके द्वारा हो रहा है। और इस समस्या की हद यह है कि इसके लिए भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री तक को कहना पड़ गया था कि रुपए में मात्र बीस पैसे ही दिल्ली से आम जनता तक पंहुच पाता है। वास्तव में यह स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। भारत को जैसे ही अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिलने वाली थी उसे खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलने वाला था उसी समय सत्तालोलुप नेताओं ने देश का विभाजन कर दिया और उसी समय स्पष्ट हो गया था कि कुछ विशिष्ट वर्ग अपनी राजनैतिक भूख को शांत करने के लिए देश हित को ताक में रखने के लिए तैयार हो गये हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की हाल में जारी रिपोर्ट में भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का स्थान दुनिया के 180 देशों में 93वां आंका गया है। वहीं संस्था द्वारा निर्धारित हमारे समग्र स्कोर में कोई बदलाव नहीं है। बीते वर्ष भारत का स्थान 85वां आंका गया था। लिहाजा विश्व रैंकिंग में यह स्थिति आठ स्थान खिसकी है। संस्था इस सूचकांक में विशेषज्ञों और व्यापारिक लोगों की धारणा के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के स्तरों को केंद्र में रखकर दुनिया के 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग निर्धारित करती है। साथ ही इस रैंकिंग के लिये शून्य से सौ तक के पैमाने का प्रयोग किया जाता है। यानी जहां जीरो है वह सर्वाधिक भ्रष्ट है और सौ सर्वाधिक ईमानदारी का सूचक है। इस पैमाने पर बीते वर्ष में भारत का समग्र स्कोर 39 रहा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022 में हमारा समग्र स्कोर चालीस था।
वहीं भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे पाकिस्तान का स्थान दक्षिण एशिया में 133 व श्रीलंका का स्थान 115 निर्धारित किया गया। जिसमें राजनीतिक अस्थिरता व कर्ज के दबाव को भी कारक बताया गया है। लेकिन वहीं दूसरी ओर चीन ने अपने 35 लाख से अधिक सार्वजनिक अधिकारियों को दंडित करके अपनी आक्रामक भ्रष्टाचार विरोधी नीति से दुनिया का ध्यान खींचा है। फलत: उसका स्थान इस सूची में 76वां रहा है। दरअसल, एशिया प्रशांत क्षेत्र में वर्ष 2024 चुनावी वर्ष है। जिसके चलते पूरी दुनिया की निगाह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया व ताइवान पर लगी रही हैं। उल्लेखनीय है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र के 71 फीसदी देशों में भ्रष्टाचार मापने का मानक सीपीआई वैश्विक औसत 43 से नीचे रहा है।
भारत में भ्रष्टाचार का रोग बढ़ता ही जा रहा है। हमारे जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं बचा, जहां भ्रष्टाचार के असुर ने अपने पंजे न गड़ाए हों। भारत नैतिक मूल्यों और आदर्शों का कब्रिस्तान बन गया है। देश की सबसे छोटी इकाई पंचायत से लेकर शीर्ष स्तर के कार्यालयों और क्लर्क से लेकर बड़े अफसर तक, बिना घूस के आज सरकारी फाइल आगे ही नहीं सरकती। निस्संदेह, किसी भी देश के लिये वैश्विक भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में ऊंचे स्तर पर रहना चिंता की बात होनी चाहिए। यह अवसर आत्ममंथन का भी होता है कि क्यों उसके लिए वैश्विक स्तर पर ऐसी धारणा बनी है। यह भी कि हम सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को कैसे कम कर सकते हैं। वैसे तो ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में उल्लेखित भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक विश्व बैंक, विश्व आर्थिक मंच, निजी जोखिम और परामर्श संगठनों, थिंक टैंक और अन्य सहित तेरह बाहरी स्रोतों की जानकारी पर आधारित होता है। लेकिन राजनीतिक दुराग्रहों से मुक्त होकर देश के स्तर पर ऐसी एजेंसी होनी चाहिए जो सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का न केवल ईमानदार मूल्यांकन करे बल्कि उस पर नियंत्रण के कारगर उपाय भी सुझाए।
यह स्थिति हम सब की चिंता का विषय होनी चाहिए कि क्यों हम सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में विफल हो रहे हैं। कई बार राजनेताओं और बहुधंधी लोगों के यहां नोटों के जो पहाड़ ईडी और आयकर विभाग की कार्रवाई में बरामद होते हैं, वे एक आम आदमी को विचलित करते हैं। आम आदमी सोच में पड़ जाता है कि एक ईमानदार व्यक्ति हाड़-तोड़ मेहनत के बाद दो जून की रोटी और एक छत का जुगाड़ मुश्किल से कर पाता है, वहीं भ्रष्ट लोग नोटों के अंबार लगा देते हैं। वे कौन से व्यवस्था के छिद्र हैं जो भ्रष्ट लोगों को अकूत संपदा जुटाने का मौका देते हैं। भ्रष्टाचार की दीमकें हमारी सारी व्यवस्था को खोखला कर रही हैं। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत आज भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंस चुका है। हमारे नैतिक मूल्य और आदर्श सब स्वाहा हो चुके हैं। बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार आचरण दोष का ही परिणाम है।
आजकल अखबारों, टीवी और रेडियो में एक ही खबर सुनने-देखने को मिल रही है, वह है भ्रष्टाचार की। हर दिन भ्रष्टाचार के काले करनामे उजागर हो रहे हैं। देश में भ्रष्टाचार को मिटाकर सभी नागरिकों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना सरकार का काम ही नहीं, बल्कि राजनीतिक धर्म भी होता है। लेकिन आजादी से लेकर अब तक देश की सरकारें भ्रष्टाचार को मिटाने में विफल रही हैं।
दरअसल, जब तक भ्रष्टाचार की राजनीतिक बुनियाद पर चोट नहीं की जाती, भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी मुहिम तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सकती। चुनाव कितने खर्चीले हैं, चुनावों में कितना बेहिसाब धन बहाया जाता है, हर कोई जानता है। लेकिन यह कितने लोग जानते हैं कि यह सारा धन किन जगहों से, किन स्रोतों से जुटाया जाता है? चुनावों में खर्च होने वाले धन का अधिकांश स्रोत अज्ञात रहता है। जब तक चुनाव पूरी तरह पारदर्शी और सादगीपूर्ण नहीं होंगे, भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पाएगा। भारत में हर दिन भ्रष्टाचार के औसतन 11 मामले दर्ज किए जाते हैं। 2021 के मुकाबले 2022 में भ्रष्टाचार के मामलों में करीब 11 फीसदी का इजाफा हुआ है। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में जहां कुल 3,745 मामले सामने आए थे, तो वहीं 2022 में बढ़कर 4139 हो गए। कैसे राजनीति में आने के बाद लोग रातों-रात करोड़पति हो जाते हैं। कैसे लोग मोटा पैसा चुनाव में खर्च करने के लिये जुटाते हैं और फिर चुनाव जीतकर धन का तीन-तेरह करते हैं। निश्चित रूप से भ्रष्टाचार की कीमत समाज में ईमानदार लोगों को ही चुकानी पड़ती है। ये उस व्यक्ति के साथ अन्याय ही है।
असल में हमें यह विचार करना होगा कि आने वाली पीढ़ियों के लिये हम कैसा भारत छोड़कर जाएंगे, जहां उन्हें कदम-कदम पर भ्रष्टाचार से जूझना पड़ेगा। जो कालांतर समाज में हताशा, निराशा और आक्रोश को ही जन्म देता है। नीति-नियंताओं को गंभीरता से इस दिशा में सोचना चाहिए।