क्लीन यूपी, ग्रीन यूपी के तहत मेडा ने 3.5 करोड़ रुपये फूंके पर छह साल में एक भी साइकिल ट्रैक पर नहीं चढ़ी। साइकिल ट्रैक पर पंक्चर लगाने, कार सेल और कबाड़ी की दुकानें सज गई हैं।
- 3.5 करोड़ फूंके, छह साल से नहीं चली साइकिल
- ढाई करोड़ के तार घोटाले के भी लगे आरोप, तीन इंजीनियरों को जाना पड़ा जेल
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ये जनता के टैक्स से आने वाले धन की बर्बादी का बड़ा उदाहरण है। सपा सरकार के समय प्रदेश के अन्य शहरों की तरह मेरठ में भी प्राधिकरण ने साइकिल ट्रैक तैयार किया। पहले चरण में सर्किट हाउस से मंगल पांडे नगर तक करीब पांच किलोमीटर लंबे ट्रैक के लिए अवस्थापना निधि से 6.14 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।
इस ट्रैक की चौड़ाई दो मीटर है, जिस पर आसानी से दो साइकिल सवार एक साथ सुरक्षित रूप में साइकिल चला सकते हैं। इसे इस तरह बनाया गया था कि सड़क पर चलने वाले अन्य वाहनों के ट्रैफिक का साइकिल चालकों पर असर नहीं पडेÞ।
रात के समय सुरक्षा के लिए महंगी एंटिक एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाई गई थीं। ये सभी लाइटें टूट गई हैं। कई खंभे गिर चुके हैं। जबकि कई गायब हो गए हैं। ट्रैक की सीमा रेखा स्टाइलिश बोलार्ड से तैयार की गई थी। एक बोलार्ड की कीमत औसतन 700 रुपये के आसपास थी। 90 फीसदी से ज्यादा बोलार्ड भी टूटकर बिखर गए हैं। इस ट्रैक पर साइकिल चलने से पहले ही अखिलेश सरकार चली गई और योगी सरकार ने सत्ता संभाल ली।
सरकार बदली तो मेडा समेत जिला प्रशासन भी इस ट्रैक को भूल गया और इसकी बदहाली शुरू हो गई। इसका कभी भी औपचारिक शुभारंभ नहीं हुआ। इस समय हालत ये है कि इस पर कहीं पंक्चर की दुकान है तो कहीं कबाड़ी और पान की दुकान। मंगल पांडे नगर के सामने पुरानी कारों की सेल भी साइकिल ट्रैक पर ही लगती है। कई जगह साइकिल ट्रैक कूड़ाघर में तब्दील हो गया है।
घोटालों का दाग भी लगा
2017 में साइकिल ट्रैक पर घोटाले का दाग भी लग गया। दरअसल, ट्रैक बनाने के लिए यहां बिजली की लाइनों को स्थानांतरित किया जाना था। इसमें करीब ढाई करोड़ के घोटाले के आरोप लगे। इसमें तत्कालीन कमिश्नर डा. प्रभात कुमार ने मेडा के 12 इंजीनियरों कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज कराई। इनमें से तीन को कमिश्नर ने अपने दफ्तर में बुलाकर गिरफ्तार कराया था। बाद में इन्हें जमानत मिल गई।
आखिर धन की बर्बादी के लिए जिम्मेदार कौन?
मंगलपांडे नगर से सर्किट हाउस तक बने साइकिल ट्रैक को जनता के लिए क्यों नहीं खोला गया? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सवाल उठ रहे हैं कि जनता के टैक्स से मिले धन के दुरुपयोग के लिए आखिरी किसकी जवाबदेही है।
पुलिस कर रही विवेचना
- साइकिल ट्रैक की पुलिस विवेचना कर रही हैं। अभी इसमें वो कुछ नहीं कर सकते। पुलिस अधिकारियों से बात करेंगे, ताकि साइकिल ट्रैक को फिर से दुरुस्त कर चालू किया जा सके। -अभिषेक पांडेय, उपाध्यक्ष मेरठ विकास प्राधिकरण
आखिर जनता का क्या गुनाह?
- साइकिल चलाना सेहत के लिए बेहद जरूरी है। शहर में तैयार हुआ साइकिल ट्रैक सियासी खींचतान में ही अटक गया। यह शहर की जनता के पैसे का दुरुपोग है। इसकी जांच और जवाबदेही तय होनी चाहिए। आखिर साइकिल चलाने वालों और गाढ़ी कमाई से टैक्स चुकाने वालों का क्या दोष है? -डा. अनिल नौसरान
जांच और ठोस कार्रवाई हो
- साइकिल चलाना ऐसी एक्सरसाइज है, जिसमें शरीर का वजन पैरों पर नहीं आता। साइक्लिंग के प्रति जागरूकता जरूरी है। साइकिल ट्रैक के कंसेप्ट पर पुर्नविचार होना चाहिए। शहर में जो ट्रैक तैयार हुआ वह अब नष्ट हो चुका है। करोड़ों रुपये की बर्बादी के जिम्मेदारों की जांच कर उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई होनी चाहिए। -प्रशांत कौशिक, सामाजिक कार्यकर्ता