Saturday, July 12, 2025
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ईश्वर दर्शन

Amritvani


एक बहुत पहुंचे हुए महात्मा थे। हंस के समान दूध-सी सफेद दाढ़ी और सफेद जटाएं। उनका अधिकतर समय ईश्वर स्मरण में ही व्यतीत होता था। शांत स्वभाव के थे। काम, क्रोध, लोभ और अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं पाए थे। नगर से दूर जंगल में उनकी कुटिया थी। आवश्यकता पड़ने पर ही भिक्षा के लिए निकलते थे। एक बार एक भक्त ने सोचा कि महात्मा जी सदैव ही ईश्वर चिंतन में खोये रहते हैं, इसलिए उनका और ईश्वर का तो बड़े निकट का संबंध होगा। यही सोचकर वह महात्मा जी के पास आया और उनसे बोला-हे गुरूदेव, आप तो ईश्वर के परम भक्त हैं। कृपा करके मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे मुझे साक्षात ईश्वर दर्शन प्राप्त हो जाएं? महात्मा ने स्नेह भरी दृष्टि से भक्त को निहारा और बोले, भक्त, तुम एक जल पात्र और मुट्टी भर नमक लेकर आओ। भक्त ने ऐसा ही किया। महात्मा ने भक्त से कहा-पुत्र, तनिक इस नमक को जल में अच्छी तरह मिला दो। भक्त ने जल में नमक डाल कर उसे अच्छी तरह मिला दिया। कुछ ही देर में नमक जल में मिलकर अपना आकार खो बैठा। इसके पश्चात महात्मा ने भक्त से कहा-तुमने जो नमक जल में मिलाया है, उसे बाहर निकालो। महात्मा की यह बात सुनकर भक्त सकते में आ गया। वह आश्चर्य से महात्मा की ओर ताकने लगा। फिर वह महात्मा से बोला-गुरुदेव! नमक तो पानी में पूरी तरह से घुल चुका है। इसे जल से अलग कर सकना तो मेरे बस की बात नहीं है। अब तो जल में नमक होने को केवल चखकर ही माना जा सकता है। महात्मा बोले-पुत्र, ईश्वर भी तो इस सृष्टि में जल में नमक की तरह ही घुला हुआ है। उसे भी हम जल में नमक की तरह ही अनुभव कर सकते हैं। यही सच्चाई है पुत्र। महात्मा के कथन की बात भक्त की समझ में आई और उसके ज्ञान-चक्षु खुल गए।


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