Saturday, July 27, 2024
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वैश्विक मंदी के बीच दावोस बैठक नई उम्मीद

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Nazariya 22


RAGHUVIR CHARANआल्पस पर्वत की बर्फीली वादियों में बसा शहर दावोस विश्व भर के नेताओं की अगुवाई के लिए तैयार है। जनवरी माह में शिखर पर स्थित यह यूरोपीय शहर पूरी दुनिया को अपनी और आकर्षित करता है। दुनिया भर के राजनेता और उद्योगपति वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों का हल ढूंढने के लिए यहां पहुंचते हैं। विश्व आर्थिक मंच के 54वें संस्करण का आगाज हो चुका है। वैश्विक टकराव के बीच इस बार सालाना बैठक की थीम ‘विश्वास का पुनर्निर्माण’ रखी गई है, जो वर्तमान में प्रासंगिक है। दुनिया अनेक मुद्दों पर विघटित है। रूस-युक्रेन युद्ध दो साल से नहीं थमा है। इस्राइल-फलस्तीन आपस में लड़ रहे हैं। इधर यमन में हूती विद्रोहियों के ठिकानो पर अमरीका और ब्रिटेन के हवाई हमलों से मध्य पूर्व में हालात और विकट हो गए हैं। दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आपसी तनाव के मद्देनजर दावोस बैठक से सही राह प्रशस्त हो इसकी उम्मीद की जा सकती है। विश्व आर्थिक मंच एक स्विस गैर-लाभकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में जिनेवा (स्विट्जरलैंड) में हुई थी। पूर्व में यह संगठन यूरोपीय संघ तक सीमित था। वर्ष 1987 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के नाम से जाना जाने लगा दुनिया के कई विवादों का समाधान छोटे से कस्बे दावोस से होने लगा। संगठन का उद्देश्य दुनिया के उद्योगों, राजनीति, शैक्षिक और अन्य क्षेत्रों के प्रमुख लोगों एक साथ लाकर औद्योगिक दिशा तय करना है। वैसे तो इस मंच के पास कोई फैसला लेने की शक्ति नहीं है, लेकिन उसके पास राजनीतिक और व्यावसायिक नीति निर्णयों को प्रभावित करने की ताकत जरूर है। इस वर्ष की सालाना बैठक में करीब तीन हजार लोग हिस्सा ले रहे हैं, जिसमें 60 देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल है। एक चुनौतीपूर्ण आर्थिक माहौल और वैश्विक मंदी का मंडराता खतरा इस साल के विश्व आर्थिक मंच की पृष्ठभूमि के रूप में काम करेगा। इस बैठक के प्रमुख मुद्दों में पहला मुद्दा भू राजनीतिक तनाव के बीच सहयोग और सुरक्षा का वातावरण निर्मित करना है। दूसरा बड़ा मुद्दा जलवायु परिवर्तन का है जो लगातार जटिल होता जा रहा है।

मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग के कारण हाल के वर्षों में ब्राजील के अमेजन वर्षा वन क्षेत्र लगातार सूखे का शिकार है। हिमालय में बर्फ कम हो रही है। ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन का स्तर निरंतर विनाशकारी होता जा रहा है। पूरी दुनिया प्राकृतिक आपदाओं को झेल रही है। इसके बावजूद दुनिया के ज्यादातर देश इसे लेकर गंभीर नहीं हैं। बस आरोप-प्रत्यारोप और बैठकों से पर्यावरण संरक्षण का ढोल पीटा जाता है। आज के तकनीकी युग में विभिन्न देशों में आपसी प्रतिस्पर्धा के बीच आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई खूब चर्चित है। इस साल दुनिया भर की साइबर सुरक्षा में बढ़ती साइबर असमानता और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियां बड़ा खतरा साबित होंगी। एआई का भी मुद्दा बैठक में प्रमुखत: है। कोई भी नई तकनीक का अविष्कार मानव जीवन को सुगम बनाने के लिए होता है, जबकि एआई के माध्यम से बढ़ते साइबर हमले, फेक न्यूज, बेहद चिंताजनक विषय हैं, जिसके लिए सभी देशों को मिलकर सार्थक प्रयास करने चाहिए तथा इसके सदुपयोग और सकारात्मक प्रभावों पर जोर देना चाहिए वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने तकनीक में नए आयाम स्थापित किए हैं।

दावोस बैठक से दुनिया में आपसी मतभेद के बीच शांति का मार्ग प्रशस्त होना चाहिए। सभी देशों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए। विशेष तौर पर विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी तथा आपसी सहयोग को बढ़ावा देकर वैश्विक मंदी से गुजर रहे देशों को आर्थिक मदद की पहल एवं वैश्विक मुद्दों पर एकजुट होकर उसका समाधान निकालना चाहिए। आखिर देखते हैं स्विस के पहाड़ों से क्या रास्ता निकलता है। विश्व आर्थिक फोरम द्वारा कई पैमानों के आधार वार्षिक सर्वे रिपोर्ट जारी की जाती है जैसे-वैश्विक प्रतिस्पर्धा, वैश्विक लैंगिक अंतराल, ग्लोबल जोखिम स्तर, वैश्विक विकास रिपोर्ट आदि जिसमें विभिन्न देशों की प्रगति का आकलन किया जाता है। हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक आर्थिक वृद्धि के 2030 तक तीन दशकों में उसके सबसे निचले स्तर पर गिरने का अनुमान है। वैश्विक जोखिम रिपोर्ट के मुताबिक गलत और अधूरी सूचना’ अगले दो साल में सबसे बड़ा खतरा है। अभी हमारे देश में यही डीपफेक का मुद्दा काफी चर्चा में है। इसके बाद संक्रामक रोग, अवैध आर्थिक गतिविधि, आय की असमानता और श्रम की कमी पांच सबसे बड़े अल्पकालिक जोखिमों में शामिल हैं।

दावोस बैठक में भारत के प्रतिनिधित्व मंडल में केंद्रीय मंत्रियों मुख्यमंत्रियों व उद्योगपतियों की टीम शामिल हैं, जो देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देंगे हमारे पड़ोसी देशों की कूटनीति के बीच ये बैठक काफी अहम होगी। विश्व बैंक की पिछले हफ्ते आई रिपोर्ट के अनुसार अगले वित्त वर्ष में भारत की वृद्धि दर (जीडीपी) 6.4 प्रतिशत बनी रहने का अनुमान जताया गया है। देश के भीतर मजबूत मांग, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर बढ़ते खर्च और निजी क्षेत्र में तेज ऋण वृद्धि को इसकी वजह बताया गया है।


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