- बैकफुट पर दारुल उलूम: देवबंद में जमावड़े का आखिर मकसद क्या था?
- रुढ़िवादी छवि से बाहर निकलना होगा देवबंद को
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मदरसों के सर्वे पर पहले योगी सरकार को घेरने की तैयारी और फिर अचानक बैकफुट पर आ जाना। यह संकेत है इस बात का कि देवबंद, सरकार के खिलाफ कोई रणनीति बना पाता इससे पहले ही वो लखनऊ की मंशा भांप गया। रविवार को दारुल उलूम की रशीदिया मस्जिद में जुटे प्रदेश भर के मदरसा संचालकों के समक्ष उलेमाओं ने बैकफुट पर आना ही बेहतर समझा।
इजलास में दारुल उलूम ने हालांकि एक बार फिर मीडिया से पर्देदारी की, लेकिन इजलास के बाद मौलाना अरशद मदनी ने मीडिया के समक्ष जिन जिन बिन्दुओं पर अपना इजहार ए ख्याल किया वो इस बात की ओर साफ इशारा कर रहा है कि मदरसों की शैक्षिक कार्य प्रणाली में कहीं न कहीं कुछ झोल जरुर है।जब मीडिया ने मौलाना मदनी से इजलास के लब्बोलुआब के बारे में पूछा तो मौलाना के तथ्य गौर करने लायक थे।
मौलाना मदनी ने मीडिया को बताया कि उन्होंने मदरसा संचालकों को यह हिदायत दी है कि वो सबसे पहले तो सर्वे में सरकार का पूरा सहयोग करें। इसका साफ मतलब ये हुआ कि देवबंद सर्वे के मुद्दे पर पूरी तरह बैकफुट पर है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर सर्वे पर कोई आपत्ति नहीं थी तो फिर कौन सी रणनीति के तहत प्रदेश भर के मदरसा संचालकों को देवबंद में जोड़ा गया।
क्योंकि सरकार की हिमायत संबधी मैसेज तो देवबंद से भी कनवे किया जा सकता था, लेकिन यहां सूत्र यह बताते हैं कि यह जमावड़ा इसलिए था कि सभी मदरसों को ‘चुपके’ से यह समझाया जा सके कि अपने सभी रिकॉर्ड्स दुरुस्त कर लें। मदरसों में साफ सफाई का माकूल इंतजाम करें, अपना आॅडिट कराएं और तो और अपना निजाम सुधारें। अगर इस प्रकार के मैसेज मौलाना मदनी खुद मदरसा संचालकों को दे रहे हैं तो इसका यह मतलब क्यों न निकाला जाए कि अधिकतर मदरसे ‘बेतरतीबे’ चल रहे हैं।
इस विश्व प्रसिद्ध मदरसे से जुड़े कुछ सूत्र यहां तक बताते हैं कि देवबंद अपने स्तर से इस बात की मॉनिटिरिंग भी करवा रहा था कि सर्वे के पीछे आखिर सरकार का मकसद क्या है। जब सरकार का मकसद देवबंद को पता चल गया तो उसने अपनी रणनीति में बदलाव कर दिया। सूत्र इस ओर भी इशारा करते हैं कि सरकार की मंशा को देखते हुए कुछ देवबंदी उलेमा इजलास को फिलहाल स्थगित करने की भी सोच रहे थे।
दरअसल देवबंद की छवि आलमी (अन्तर्राष्ट्रीय) स्तर की है। किसी भी संवेदनशील मुद्दे पर दुनिया भर के मुसलमान देवबंद की ओर ही देखते हैं। इसके बावजूद देवबंद अपनी रुढ़ीवादी छवि से बाहर नहीं निकल पा रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ‘वस्तानवी प्रकरण’ है। कुछ साल पूर्व दारुल उलूम में मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी को मोहतमिम (कुलपति) पद पर बैठाया गया था।
वो पीएचडी थे और दारुल उलूम के इतिहास के पहले आधुनिक सोच वाले मोहतमिम का खिताब उन्हे मिला था। हांलाकि उनकी नियुक्ति के कुछ समय बाद ही उनका विरोध भी शुरु हो गया था। विरोध का यह मुद्दा अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया तक की सुर्खियां बटोर ले गया था। सूत्रों के अनुसार यह विरोध सिर्फ इसलिए हुआ कि कहीं दारुल उलूम ‘आधुनिक’ न हो जाए।