Wednesday, July 3, 2024
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कर्ज से कराह रहा ड्रैगन, भारी बोझ से दबा चीन!

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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। आज हम बात चीन की करेंगे। चीन ने दुनियाभर के करीब 150 विकासशील देशों को 82 लाख करोड़ रूपए से अधिक कर्ज दे दिया है या यूं कहें कि चीन इन देशों को अपने जाल फांस रखा है। अब कर्ज लेने वाले देशों की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक दौर में है। ऐसे में चीन भी इनको कोई रियायत देने के मूड में नहीं है। आइए देखते हैं पूरी रिपोर्ट…

दरअसल, चीन में स्थानीय सरकारों और रियल एस्टेट डेवलपर्स ने अरबों रुपए का कर्ज ले रखा है। चीन का सरकारी बैंकिंग सिस्टम देश के अंदर कर्जों पर बहुत अधिक घाटा होने की स्थिति को देखते हुए विदेशी ऋणों पर नुकसान उठाने के लिए तैयार नहीं है। पाकिस्तान, श्रीलंका सहित कई गरीब देश इस समय गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। फिर भी, उन्हें चीन से रियायत नहीं मिल रही है।

चीन के घरेलू कर्ज की वास्तविक स्थिति का पता लगाना मुश्किल है। जेपी मोर्गन चेज बैंक के रिसर्चरों ने पिछले माह हिसाब लगाया कि घरेलू, कंपनियों और सरकार सहित चीन का कुल कर्ज देश की आर्थिक आय का 282 प्रतिशत हो गया है। इसके मुकाबले विकसित देशों का औसत 256 प्रतिशत और अमेरिका का 257 प्रतिशत है।

दूसरे देशों की तुलना में चीन का कर्ज तेजी से बढ़ा है। विकासशील देशों को चीन का ऋण देश के आर्थिक उत्पादन का छह प्रतिशत है। लेकिन, यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। कड़ी सेंसरशिप के बावजूद चीनी सोशल मीडिया पर शिकायतें आती रहती हैं कि बैंकों को दूसरे देशों की बजाय देश में गरीब परिवारों को पैसा उधार देना चाहिए।

विदेशी ऋणों पर नुकसान को स्वीकार करने का चीन पर खराब असर पड़ेगा। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स का अनुमान है स्थानीय सरकारों पर चीन के वार्षिक आर्थिक उत्पादन के 30 प्रतिशत के बराबर कर्ज है। सरकारों से जुड़ी फाइनेंसिंग यूनिट्स पर राष्ट्रीय उत्पादन के 40 से 50 प्रतिशत के बराबर कर्ज है।

अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ने के कारण कई स्थानीय सरकारों और उनकी फाइनेंसिंग यूनिट्स ब्याज तक नहीं चुका पा रही हैं।

चीनी बैंकों पर बोझ बढ़ने से गरीब देशों की मुश्किल बढ़ी है। चीन से कर्ज लेने वाले कुछ देशों जैसे पाकिस्तान, श्रीलंका और सूरीनाम की आर्थिक हालत बहुत ज्यादा खराब है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर है।

विश्व के दो तिहाई विकासशील देश कमोडिटी निर्यात पर निर्भर हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि इस साल कमोडिटी के मूल्य पिछले साल से 21 प्रतिशत कम रहेंगे। जाहिर है, इन देशों को आर्थिक संकट से राहत नहीं मिलेगी। चीन विकासशील देशों का सबसे बड़ा कर्जदाता है।

पश्चिमी देशों के हेज फंड भी इन देशों के बॉण्ड खरीदते हैं। बॉण्ड की ब्याज दर फिक्स्ड रहती है। दूसरी ओर चीनी बैंक बदलने वाली ब्याज दरों पर डॉलर में कर्ज देते हैं।

मार्च 2022 के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में जबर्दस्त बढ़ोतरी से गरीब देशों के लिए चीन का कर्ज चुकाना कठिन हो गया है। खबर है, अमेरिका की वित्तमंत्री जेनेट येलेन ने अपनी दो दिनी बीजिंग यात्रा में चीनी नेताओं से गरीब देशों के कर्ज के मसले पर चर्चा की है।

चीन की राज्य सरकारों और बिल्डरों ने अंधाधुंध कर्ज लिया

चीन में कर्ज बढ़ने की शुरुआत रियल एस्टेट सेक्टर से हुई है। जरूरत से ज्यादा निर्माण, संपत्ति के मूल्यों में गिरावट और खरीदारी में उतार से सेक्टर की हालत पतली है। विदेशी इन्वेस्टरों से धन उधार लेने वाले दर्जनों रियल एस्टेट डेवलपर्स दिवालिया हो गए हैं।

डेवलपरों के लिए बैंकों का कर्ज चुकाना मुश्किल हो रहा है। स्थानीय सरकारों के अंधाधुंध कर्ज लेने से समस्या बढ़ी है। पिछले दस साल में कई शहरों और राज्यों ने स्पेशल फाइनेंसिंग यूनिट बनाई हैं। इन्होंने भी जमकर कर्ज उठाया है।

कर्ज बांटने की आदत ने तोड़ी चीन की कमर…

श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद अब चीन में कंगाली के हालात बन रहे हैं। 150 देशों को कर्ज बांटकर अपने जाल में फंसाने वाला चीन आर्थिक तंगी की ओर तेजी से आगे से बढ़ रहा है। यहां के स्थानीय बैंकों पर पैसा निकलाने पर रोक लगा दी गई है। रियल एस्टेट सेक्टर बुरे दौर से गुजर रहा है। चीन में विदेशी निवेश घट गया है। कोविड के कारण देश के जो हालात बिगड़े उसका असर अब तेजी से दिखना शुरू हो गया है।

रियल एस्टेट सेक्टर डूबा, निवेश घटा

चीन की 17.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में एक तिहाई योगदान में रियल एस्टेट का अहम रोल है, लेकिन चीनी बैंक में सबसे ज्यादा कर्ज इसी सेक्टर की कंपनियों को बांटा है। पिछले साल चीन का प्रॉपर्टी डेवलेपर रियल एस्टेट ग्रुप एवरग्रांड ग्रुप ने लोन डिफॉल्ट किया।

विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है, कोविड से पहले देश की अर्थव्यवस्था रफ्तार भर रही थी। उस दौर में रियल एस्टेट कंपनियों ने बैंकों से भारी कर्ज लिया। बैंकों ने भी खूब कर्ज बांटा, लेकिन कोविड के कारण देश की आर्थिक रफ्तार तेजी से घटी। नतीजा, अब आर्थिक मंदी दिखाई देनी लगी।

ग्रोथ रेट का बुरा हाल

चीन की आर्थिक रफ्तार कैसे घट रही है इसे एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुमान से भी समझा जा सकता है। बैंक ने पहले अनुमान जताया था कि चीन की अर्थव्यवस्था 5.1 फ़ीसदी की दर से बढ़ती हुई दिखाई देगी।

कई देशों को कर्ज बांटा, अब खुद संकट में

विशेषज्ञों का कहना है, चीन में ऐसे कई कदम उठाए जो उसके लिए बर्बादी की वजह बन रहे हैं। जैसे- चीन ने अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए रियल एस्टेट सेक्टर की कंपनियों को कर्ज बांटा। इसकी वजह से उधार बढ़ता गया। कोविड और अमेरिका संग टैरिफ वॉर के कारण हालात और बिगड़े। इतना ही नहीं, चीन ने अपने जाल में फंसाने के लिए श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे कई देशों को खुलकर कर्ज बांटा जो अब उसके लिए गले की फांस बन गया है।

चीनी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वहां पर बिजली संकट बढ़ गया है। चीन कोयले की कमी से जूझ रहा है। इसका सीधा असर उद्योगों पर पड़ रहा है। बिजली संकट के कारण उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। चीन के वर्तमान में हालातों में घटती मैन्युफैक्चरिंग का भी अहम रोल रहा है।

 

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