कल जहां बस्ती थी खुशियां, आज हैं मातम वहां, वक़्त लाया था बहारें वक़्त लाया है खिजां।
आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे, कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज।
ज्ञान प्रकाश |
मेरठ: साहिर लुधियानवी के इस शेर ने पटेल नगर के कबाड़ियों को इस बात का अहसास करा दिया कि इंसान को वक्त से डर कर रहना चाहिये। चोरी, धोखाधड़ी और गलत धंधों से करोड़ों रुपये कमाने वाले हाजी नईम उर्फ गल्ला को वक्त ने ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है जहां से उसके लिये सिर्फ बर्बादी के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा है।
सोतीगंज के बेताज बादशाह को रिमांड पर लेकर पुलिस जब पहुंची तो लोगों ने बस यही कहा कि अल्लाह से डरना चाहिये, अगर गलत धंधे में न पड़ा होता तो आज अपने ही घर पुलिस हिरासत में न आना पड़ता। वहीं, पटेल नगर स्थित चार करोड़ की कोठी सूनी पड़ी हुई थी। गेट के बाहर लोग बैठकर इस बात की चर्चा में लगे हुए थे कि क्या गल्ला को जल्दी राहत मिल पाएगी।
सोतीगंज के बदनाम बाजार में हाजी गल्ला का नाम धन्ना सेठों में गिना जाता है। पूरे एनसीआर की चोरी की गाड़ियों को काटकर मोटा पैसा कमाने वाले गल्ला ने अपने इस काले कारनामे में नेताओं और पुलिस को बराबर का भागीदार बनाया था। सदर और देहलीगेट पुलिस के लिये जहां गल्ला जैसे न जाने कितने लोग सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थे।
वहीं, दूसरे जनपदों और थानों की पुलिस दबिशें देकर मोटी कमाई करके जाती है। गल्ला का इन पर संरक्षण रहता था। पूर्व में कई पुलिस कप्तानों ने गल्ला पर अंकुश लगाने का ऐलान भी किया और थोड़ा बहुत प्रयास भी किया लेकिन रहस्यमय ढंग से अभियान हर बार रुक जाता था। वर्तमान एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने सोतीगंज की तारीख ही बदल दी।
30 से अधिक लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज होने के अलावा कई कबाड़ियों के घर कुर्की की कार्रवाई भी हो चुकी है। गल्ला ने कभी नहीं सोचा होगा कि उसके खिलाफ 50 हजार का इनाम भी घोषित होगा और जिस सोतीगंज में उसकी दो आलीशान कोठियां दूसरों को मुंह चिढ़ाती है उनके सामने ही वो अपराधी बनकर आएगा। वक्त ने गल्ला और उसके चार बेटों को अहसास करा दिया कि बेइमानी के पैसे से बरकत नहीं होती है।
वहीं, पटेल लगर स्थित चार करोड की कोठी कुर्क होने के बाद आसपास के लोग बस यही कहते सुने गए कि अगर नंबर एक में कोठी बनवाई होती तो आज सील नहीं होती। कोठी में रोज पार्टी होती थी। हमेशा चहल-पहल और लजीज पकवानों की महक आसपास के लोगों को सुखद अहसास कराती थी, लेकिन 278 वर्ग मीटर वाली कोठी के दोनों गेटों पर मुहरबंद सील होने से लोग बस दीवार पर जिला मजिस्ट्रेट की नोटिस को पढ़ने के लिये बाइक व स्कूटी रोकते हैं और यह कहकर निकल जाते हैं कि वक्त का कुछ पता नहीं है। इंसान को खुद को खुदा नहीं समझना चाहिये।