आईएमएफ के मई, 2022 के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का सकल घरेलू उत्पाद वित्त वर्ष 2029 में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगा। लेकिन साथ ही भारतीय रुपया प्रति अमेरिकी डॉलर 94 रुपये के अपने स्तर को भी पार कर जाएगा। आईएमएफ की रिपोर्ट कहती है कि कमजोर होते रुपये के साथ ही भारत दुनिया का सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थशक्ति बना रहेगा। वहीं दूसरी ओर हमारे देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने फरवरी 2022 में कहा था की भारत वित्त वर्ष 2026 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की इकॉनमी बन जाएगी। आइये इस विरोधाभास को समझते हैं।
किसी भी देश के मुद्रा को मजबूत होने के लिए विश्व बाजार में उसका निर्यात उसके आयात से सदा ही अधिक होना चाहिए। भारत बीते दिनों अपने रिकॉर्ड निर्यात की स्थिति में पहुंच गया परंतु यह हर्षित करने वाला अर्ध सत्य है। पूर्ण सत्य यह है कि आज निर्यात के साथ हमारा आयात भी अपने रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। जिसमें सबसे बड़ा आघात हमें वैश्विक स्तर पर बढ़े हुए कच्चे तेल के दामों से पहुंचा है।
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आज विश्व बाजार में भारत के निर्यात का विकास दर 40.38 प्रतिशत है तो आयात का विकास दर 59.07 प्रतिशत है। आईएमएफ ने आज की वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप ही भारतीय रुपये का भविष्य तय किया है। दूसरी ओर वी. अनंत नागेश्वरन इस आधार पर वित्त वर्ष 2026 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की इकॉनमी के लिए आशान्वित हैं क्योंकि देश जिस तरह से मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत अपने विनिर्माण और निर्यात को बढ़ रहा है|
तो संभव है कि अगले 2-3 वर्षों में जो वित्तीय घाटा है, उस खाई को पाटकर देश अपने निर्यात को आयत से कहीं आगे ले जाएगा साथ ही कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने ले लिए भी भारत बहुत ठोस कदम इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के व्यापक प्रसार हेतु बढ़ा चुका है।
यह सबसे कठोर सत्य है कि भारत को कच्चे तेल से निर्भरता घटाकर ही आर्थिक महाशक्ति बनाया जा सकता है। 2022 में हमारा वित्तीय घाटा 192 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और इसमें हमारा 100 बिलियन डॉलर वित्तीय घाटा केवल कच्चे तेल के आयात के कारण है। यदि आज हम अपने खनिज तेलों की निर्भरता को आधा भी कर दें तो इससे देश की 50 बिलियन डॉलर का घाटा कम हो सकता है।
साथ ही यदि हम अपने ही देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाए और खरीदें तो हमें दोगुना लाभ मिलने वाला है। आज के समय में विदेशी मुद्रा भंडार के ऊपर 256 बिलियन डॉलर के बॉन्ड के चुकाने का दबाव है इससे यह भंडार 600 बिलियन डॉलर से भी कम हो गया है। यह देश के अर्थशास्त्र पर दोहरी मार है और यह दुर्दशा केवल कच्चे तेलों के आयात के कारण है।
इसलिए आज रुपया अपने रिकॉर्ड निम्न स्तर पर पहुंच गया है। देश के जिम्मेदार नागरिक के रूप में हम जितनी शीघ्रता से इलेक्ट्रिक ऊर्जा चलित वाहनों को अपनाएंगे इससे देश के इकॉनमी में हम दोहरा योगदान देंगे। एक तरफ स्वदेशी वाहनों की खरीद से दूसरी ओर देश के जीवाश्म ईंधन की मांग को कम करके अच्छी और संतषजनक बात यह है की देश की सरकार इसके दूरगामी समाधान के लिए सही दिशा में काम कर रही है।
एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार देश के वर्ष 2070 तक सौ प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा वाले लक्ष्य की पूर्ति के लिए 12.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। ब्रिटैन के स्टैण्डर्ड चार्टर्ड के रिपोर्ट की मानें तो यह खर्च 17.77 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा। यह कितना बड़ा बजट है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की हम अभी 4 ट्रिलियन इकॉनमी होने का स्वप्न देख रहे हैं।
केंद्र की मोदी सरकार इसके लिए प्रसंशा की पात्र है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की गंभीर आवश्यकता को समझकर सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में इलेक्ट्रिक वाहनों के देश की जनता द्वारा त्वरित स्वीकार्यता एवं विनिर्माण हेतु फेम इंडिया कार्यक्रम का 1 अप्रैल 2015 को प्रारंभ किया था। इलेक्ट्रिक वाहन की खरीद पर जीएसटी को भी 28 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था, जिसका लक्ष्य 2030 तक कुल वाहनों का 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन करने का था।
नीति आयोग की शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों की पॉलिसी फ्रेमवर्क प्रारम्भ में ही इलेक्ट्रिक वाहनों के सर्वसाधारण की आर्थिक सीमा में लाने की प्रतिबद्धता जताई गई है। शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों को प्रोत्साहन से देश करोड़ों पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियों का कबाड़ घर न बन जाए, इसके लिए सरकार ने फरवरी 2021 में केंद्रीय बजट में वाहन परिमार्जन नीति की घोषणा भी किया। इसका व्यापक उद्देश्य तेजी से तेल आयात को कम करना है वाहन निर्माताओं के लिए प्लास्टिक, एल्यूमीनियम, स्टील, रबर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कम लागत वाले पुनर्नवीनीकरण इनपुट की उपलब्धता को बढ़ावा देना है।
कुल मिलाकर मोदी सरकार ने शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों के लिए एक समेकित एवं एकीकृत रोडमैप तैयार किया है। देश में नवाचार, विनिर्माण, आपूर्ति, मांग और इंफ्रास्ट्रक्चर आदि सभी क्षेत्रों में कार्य करते हुए भारत को विद्युत चलित वाहनों के विनिर्माण का अगुआ बनाने एवं नागरिकों को कम से कम कीमत पर वाहनों को उपलब्ध कराने हेतु कार्यक्रम बनाए हैं।
साथ ही हम सभी देश के नागरिकों को विद्युत चलित वाहनों को मात्र महंगे होते पेट्रोल-डीजल वाले गाड़ियों के विकल्प के रूप में अपनाने की जगह भारत को स्वस्थ बनाने और विकसित देशों की पंक्ति में खड़े करने के क्रम में अपना योगदान समझकर इस परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए।.