अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पेरिस पहुंचे जहां पर उन्हों राष्टÑपति मैक्रों से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने भारत फ्रांस रणनीतिक साझेदारी को वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बनकर काम करने के तरीकों पर चर्चा की। उन्होंने रक्षा, अंतरक्षि, असैन्य परमाणु सहयोग के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक मुददों सहित कई द्विपक्षीय मुददों पर चर्चा की। इसके साथ ही दोनों नेता भारत-फ्रांस रक्षा क्षेत्रों में आत्मनिर्भर भारत प्रयासों में गहरी फ्रांसीसी भागीदारी पर सहमत हुए। बैठक के दौरान भारत-फ्रांस ने अपने सहयोग को और गहरा और मजबूत करने पर बातचीत की। साथ ही उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए नए क्षेत्रों में इसका विस्तार करके और अपनी अंतरराष्टीय साझेदारी को व्यापक बनाकर भविष्य के लिए तैयार करने की अपनी प्रतिबद्वता की स्वीकृति दी है।
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भारत और फ्रांस ने हिंद प्रशात क्षेत्र में शाति, स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए प्रमुख रणनीतिक साझेदारियों मे से एक का निर्माण किया है। दोनों देश एक स्वतंत्र, खुले और नियम आधारित इडो-पैसिफिक क्षेत्र की दृष्टि एक दूसरे से साझा करते हैं।
पिछले दिनों डेनमार्क की राजधानी कोपेनहैगन में भारत-नॉर्डिक देशों का शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ। शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नॉर्डिक देश डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, नार्वे तथा आइसलैंड के राष्ट्राध्यक्षों के साथ प्रौद्योगिकी, निवेश, स्वच्छ ऊर्जा, आर्कटिक अनुसंधान जैसे द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग के मुद्दों पर चर्चा की। भारत और नॉर्डिक देशों के मुखियाओं के बीच यह दूसरी शिखर बैठक थी।
पहली बैठक अप्रैल 2018 में स्टॉकहोम में हुई थी। इस बैठक में मुख्यत: चार क्षेत्रों वैश्विक सुरक्षा, इनोवेशन, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन से जुड़े क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया था। दूसरी शिखर बैठक पिछले साल होनी प्रस्तावित थी। लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे स्थगित कर दिया गया था। पीएम मोदी ने बैठक को सफल बताते हुए कहा कि ये नॉर्डिक देशों के साथ सहयोग बढ़ाने का शानदार प्लेटफार्म है। भारत इन देशों के साथ आपसी संबंधों को बढ़ाने के लिए प्रयत्न करता रहेगा।
शिखर सम्मेलन में नॉर्डिक देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग का समर्थन किया है। भारत पिछले एक दशक से संयुक्त राष्ट्र में सुधार तथा सुरक्षा परिषद में परमानेंट सीट का दावा कर रहा है। नॉर्डिक देशों ने अनेक अवसरों पर भारत के दावे का समर्थन किया है। दूसरी ओर पिछले कुछ समय से नॉर्डिक देश भी इस बात की मांग कर रहे हैं कि वैश्विक चुनौतियों को प्रभावी ढंग से निबटने के मकसद से वैश्विक संस्थानों को अधिक समावेशी, पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन ने नियम आधारित अंतरराट्रीय व्यवस्था के लिए यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता के समर्थन की पुष्टि की है। नॉर्वे भी भारत के दावे का समर्थन कर रहा है। पिछले दिनों जब नॉर्वे की विदेश मंत्री रायसीना डायलॉग में हिस्सा लेने के लिए भारत आई थीं, उस वक्त भी दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान नॉर्वे ने भारत के दावे का समर्थन किया था। शिखर सम्मेलन से पहले पीएम मोदी ने पांचों देशों के प्रधानमंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात की। इस मुकाकात के दौरान भी नॉर्डिक देशों ने भारत के समर्थन की बात दोहराई है।
यूएनएससी के मुद्दे पर नॉर्डिक देशों का भारत के समर्थन में आना सामरिक और रणनीतिक मोर्चें पर काफी अहम माना जा रहा हैं। पांचों देशों ने जिस तरह से भारत के समर्थन की बात दोहराई है, उससे नॉर्डिक देशों को यूएनएससी में भारत के बड़े पैरोकार के तौर पर देखा जाने लगा है। यह अच्छी बात है और भविष्य में भारत के लिए महत्वपूर्ण भी हो सकती है।
वर्तमान में वैश्विक राजनीति जिस परिर्वतन के दौर से गुजर रही है, उसे देखते हुए संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की संभवाना बढ़़ रही है। भारत एक बड़ी आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति बन कर उभरा है। कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रभाव को स्वीकार किया गया है। ऐसे में यूएनओ में भारत को बड़ी भूमिका दिए जाने की संभावना बढ़ रही है।
आर्थिक मोर्चे पर भी नॉर्डिक देशों का भारत के करीब आना काफी अहम माना जा रहा है। छोटे देश होने के बावजूद इनकी अर्थव्यवस्था करीब दो खरब डॉलर के आस-पास है। भारत इन देशों के साथ तकरीबन 13 अरब डॉलर से भी अधिक का व्यापार करता है। प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) के मामले में भी नॉर्डिक देश बेहतर स्रोत साबित हुए हैं। पिछले एक दशक में इन देशों ने भारत में तीन अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश किया है। इसलिए व्यापार और निवेश के नजरिए से भी ये देश भारत के लिए अहम हैं।
ग्रीन टेक्नोलॉजी के प्रयोग के मामले में डेनमार्क, आइसलैंड, फिनलैंड, स्वीडन और नॉर्वे दुनिया के अग्रिम देश हैं। साल 2030 तक भारत अपने सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है। लेकिन विकसित देशों द्वारा जलवायु परिर्वतन के खतरों से निबटने के लिए भारत पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने का दबाव बनाया जा रहा है।
दुनिया में तीसरा सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जक देश होने के कारण भारत ग्रीन इनिशिएटिव के तहत कार्बन उज्सर्जन को कम कर 1.5 डिग्री तापमान के वैश्विक लक्ष्य के अनुरूप अपनी विकास योजनाएं तैयार करना चाहता है। ऐसे में भारत नार्टिक देशों से ग्रीन टेक्नोलॉजी हासिल कर अपने विकास के लक्ष्य को अर्जित कर सकता हैं।
इसके अतिरिक्त उत्तरी यूरोप में स्थित पांचों नॉर्डिक देश लोकतांत्रिक जीवन मूल्यों और कानून के शासन में विश्वास रखते हैं। अधिकाश नार्डिक देशों में अंग्रेजी बोली जाती है। इसलिए भारतीय कंपनियों के लिय यहां व्यापार करना करना भी आसान होता है। यही वजह है कि आज नॉर्डिक देश भारतीय आईटी कंपनियों के लिए पसंदीदा स्थान बन गए हैं।
शिखर बैठक में कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, नवाचार, और डिजिटलीकरण के क्षेत्र में बहुपक्षीय सहयोग पर चर्चा हुई। इसके अतिरिक्त दोनों के पक्षों के बीच आपसी लाभ के लिए सहयोग को और अधिक मजबूत करने के उपायों पर भी चर्चा की गई।
शिखर बैठक के दौरान जिस तरह से नॉर्डिक नेताओं ने भारत के प्रति उत्साह दिखाया है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि नॉर्डिक देशों के साथ रिश्तों की व्यापकता बहुआयामी सहयोग को बढ़ाने की दृष्टि से भारत के हित में ही है।