बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक लड़का रहता था। उसे छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता था और लोगों को भला-बुरा कह देता। उसकी इस आदत से परेशान एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा, ‘अब जब भी तुम्हें गुस्सा आए तो इस थैले से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना।’
पहले दिन लड़के को 40 बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोक दीं। धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी। उसे लगने लगा की कीलें ठोकने में मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए। कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद तक काबू करना सीख लिया।
एक दिन ऐसा आया कि उसने पूरे दिन में एक बार भी गुस्सा नहीं किया। जब उसने अपने पिता को यह बताया, तो उन्होंने ने फिर उससे कहा, ‘अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा न करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना।’ लड़के ने ऐसा ही किया।
बहुत समय बाद वह दिन भी आ गया, जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी। उसने अपने पिता को यह बात बताई। पिता उसे बाड़े के पास ले गए, और बोले, ‘बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो।
अब वह बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता, जैसा वह पहले था। जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो, तो वे शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं।’ आप भी अगली बार गुस्सा करने से पहले सोचें कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोकना चाहते हैं?
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