Monday, February 17, 2025
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पहले खुद तो अंग्रेजी का मोह छोड़ें

 

Nazariya 17


Tanveer Jafreeपिछले दिनों संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय गृह/सहकारिता मंत्री एवं राजभाषा समिति के अध्यक्ष अमित शाह ने हिंदी भाषा को अंग्रेजी भाषा के विकल्प के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता जताई । उन्होंने कहा कि हिंदी को स्थानीय भाषाओं के विकल्प के रूप में नहीं बल्कि अंग्रेजी भाषा के विकल्प के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इसी दौरान शाह ने यह भी बताया कि अब कैबिनेट के एजेंडे का 70 प्रतिशत भाग हिंदी में तैयार किया गया है। अमित शाह ने कहा कि अलग-अलग राज्यों के लोगों को आपस में हिंदी में बात चीत करनी चाहिए अंग्रेजी में नहीं। शाह ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और इससे निश्चित रूप से हिंदी का महत्व बढ़ेगा। अमित शाह ने इससे पूर्व वर्ष 2019 में हिंदी दिवस के दौरान अपने भाषण में ‘एक राष्ट्र, एक भाषा’ की भी चर्चा की थी।

निश्चित रूप से हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है। इसका अधिक से अधिक प्रयोग किया जाना व इसके प्रयोग की वकालत करना भी सराहनीय है। परन्तु अमित शाह के इस बयान के बाद कुछ हिंदी भाषी राज्यों को छोड़ कर अधिकांश राज्यों विशेषकर दक्षिण भारतीय राज्यों में उनके हिंदी प्रेम का विरोध शुरू हो गया। तमाम प्रमुख नेताओं ने फिर वही बातें करनी शुरू कर दीं कि किसे क्या खाना, क्या पहनना और कौन सी भाषा बोलना है यह आम लोगों पर ही छोड़ देना चाहिए। किसी ने इसे भाजपा का ‘सांस्कृतिक आतंकवाद’ बताया तो किसी ने इन प्रयासों को क्षेत्रीय भाषाओं के मूल्य को कम करने का एजेंडा बताया।

भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी अन्नाद्रमुक समेत दक्षिण भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा भी इसका विरोध किया गया। अनेक नेताओं का मत है कि लोग चाहें तो अपनी मर्जी से हिंदी अवश्य सीख बोल सकते हैं, परंतु हिंदी को थोपा जाना हरगिज स्वीकार्य नहीं है।

हिंदी भाषा के प्रसार विस्तार व प्रचार की इन शासकीय कोशिशों के बीच खासकर गृह मंत्री शाह के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा बताने और इससे हिंदी के महत्व को बढ़ावा देने के दावों के परिपेक्ष में यह देखना और समझना भी जरूरी है कि वास्तव में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी, उनकी सरकार व अन्य राज्यों में भाजपा सरकारें भी क्या अंग्रेजी के बजाये हिंदी को ही संपर्क भाषा के रूप में प्रचारित व प्रसारित करने के लिए उतनी ही फिक्रमंद हैं भी जितनी कि वह दिखाई व सुनाई दे रही है?

आईये स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गढ़ित उनकी प्रिय शब्दावलियों पर ही नजर डालें और देखें कि वे स्वयं संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का इस्तेमाल अधिक करते हैं अथवा अंग्रेजी का? यदि प्रधानमंत्री बनने से पूर्व उनकी छवि चमकाने वाला सबसे प्रमुख कोई शब्द सुनाई देता था तो वह था ‘वाइब्रेंट गुजरात’। ‘वाइब्रेंट’ शब्द का इसीलिए इस्तेमाल किया गया ताकि पूरे देश और दुनिया को भी इसका अर्थ आसानी से समझ में आ सके।

चुनावी मैदान में भी मोदी अपने विरोधियों को लिए प्राय: अंग्रेजी की ही शब्दावली प्रयोग में लाते थे। जैसे उन्होंने समाजवादी पार्टी,कांग्रेस,अखिलेश यादव तथा मायावती लिए स्कैम (रउअट) शब्द गढ़ा था। जब वे अपने एन डी की तारीफ करते तो फरमाते कि नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) का अर्थ नेशनल डेवलपमेंट एलायंस है। यहां तो सार से विस्तार तक सारा ही अंग्रेजी है। मोदी जी नए-नए शब्द व सूत्र गढ़ने में भी बहुत माहिर हैं परंतु उनकी यह ‘सृजन शीलता’ अंग्रेजी में ही होती रही है।

जैसे उन्होंने 5टी का एक मंत्र दिया था, जिस का अर्थ टैलेंट, ट्रेडिशन, टूरिज्म, ट्रेड व टेक्नोलॉजी बताया था। इसी तरह फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट यानी एफडीआई को उन्होंने फर्स्ट डेवलप इंडिया जैसा नया नाम दिया। यह भी पूर्णतय: अंग्रेजी में ही था। इस तरह के दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं, जो इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी हैं कि जो सरकार और उसके मुखिया गण हिंदी को संपर्क भाषा बनाने की पैरवी करते दिखाई देते हैं, वे स्वयं जरूरत पड़ने पर अंग्रेजी का ही सहारा लेते हैं।

जैसे कि सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (सीपीएसई) के एक समारोह में प्रधानमंत्री ने सफलता के मंत्र की बात करते हुये ‘3आईआइ’ की सोच की बात की थी। थ्री आई यानी इंसेंटिव्स (प्रोत्साहन), इमेजिनेशन (कल्पना) और इंस्टीट्यूशन बिल्डिंग (संस्था निर्माण)। यहीं उन्होंने न्यू इंडिया के निर्माण में सहभागिता बढ़ाने के लिये 5 ‘पी’ फॉर्मूले पर चलने की जरुरत पर भी जोर दिया था। मोदी ने 5 पी का अर्थ बताया था-परफॉर्मेन्स (प्रदर्शन), प्रोसेस (प्रक्रिया), पर्सन (व्यक्तित्व) प्रोक्योर्मेंट (प्राप्ति) और प्रिपेयर (तैयार करना)।
जब प्रधानमंत्री कोरोना से जंग के लिए मंत्र देते तो वह भी अंग्रेजी के ‘4टी’ और ‘थ्री टी’ मंत्र, होते थे। उन्होंने 4 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग के दौरान ‘4टी’ मंत्र का फॉर्मूला दिया।

इसका अर्थ उन्होंने हमें टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट और टीका बताया था। भीम ऐप का अर्थ भी भारत इंटरफेस फॉर मनी है। इसी तरह की अनेक सरकारी शब्दावलियां-जैसे मेक इन इंडिया,वोकल फॉर लोकल, आदि सब अंग्रेजी शब्द ही हैं। अपने चुनाव प्रचार में मोदी हमेशा ‘डबल इंजन’ की सरकार की पैरवी करते सुनाई देते हैं।

ऐसा लगता है कि अमित शाह का हिंदी प्रेम प्रदर्शन केवल हिंदी भाषी लोगों को दिखाने व जताने मात्र के लिए ही था अन्यथा ‘पर उपदेश’ से पहले सत्ता के रहनुमाओं का स्वयं रचनात्मक रूप से हिंदी प्रोत्साहित करने हेतु अंग्रेजी के मोह जाल से छुटकारा पाना जरूरी है।


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