- 168 वर्ष पुरानी है पनचक्की, अंग्रेजों के जमाने में हुई थी स्थापित
- इस चक्की का आटा खाने से नहीं होते कई रोग
- सिंचाई विभाग के अधीन है पनचक्की, हर वर्ष छोड़ा जाता है ठेका
नूर मौहम्मद |
मोरना: उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर के थाना भोपा क्षेत्र के ग्राम निरगाजनी में आज भी पानी से चलने वाली आटा चक्की स्थित है, जो कि 168 साल पुरानी यह आटा चक्की अंग्रेजों ने 1850 में बनवाई थी। इसकी खास बात ये है कि यह चक्की आज भी चल रही है और लोग इसका पीसा आटा खाते हैं।
इससे पीसा हुआ आटा एकदम ठंडा होता है। यह भारत कि सबसे पुरानी चक्की मानी जाती है अंग्रेजों के जमाने की यह पनचक्की सन् 1850 में स्थापित हुई थी और तब से लेकर अब तक कई पीढ़ियां लगातार इस चक्की का पिसा आटा खा रही हैं।
इस पनचक्की की विशेषता यह है कि नहर में पानी आने पर यह पानी से चलती है और इसका पिसा आटा ठंडा होता है, जो चार से छः महीने तक खराब नहीं होता। दूसरी विशेषता यह है कि इस पनचक्की में जो पत्थरों से आटा पिसा जाता है वह कुदरती पत्थर हैं जब कि आजकल की चक्कियां में मसाले द्वारा तैयार किए गए पत्थरों का इस्तेमाल होता है। इसलिए इस चक्की के पिसे आटे को खाने से पथरी जैसे अन्य रोग नहीं होते और गेहूं के सभी गुण इस में विद्यमान रहते हैं।
इस क्षेत्र के लोग इस पनचक्की को अपने बुजुर्गों की विरासत मानते हैं। सरकार ने भी इस ओर काफी ध्यान दिया है और इस पनचक्की का जीर्णोद्धार किया है। इस पनचक्की को देखने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग भी आते हैं, जबकि जनपद मुजफ्फरनगर के आसपास के लोग तो यहां पर आटा पिसवाने के लिए आते हैं। लोगों के बीच इस चक्की को लेकर ऐसी भावना है कि इसका पिसा हुआ आटा खराब नहीं होता। इस चक्की की एक और खास विशेषता है कि यहां पर तौलने के लिए कोई तराजू नहीं लगा हुआ है। यहां पिसाई साठ रुपए प्रति कुन्तल के हिसाब से होती है। इस चक्की में ग्राहक को खुद ही अपना आटा पीसना पड़ता है।
जनपद मुजफ्फरनगर के थाना भोपा क्षेत्र के ग्राम निरगाजनी नहर पर बनी यह चक्की पानी से चलती है। नहर का पानी लोहे के बड़े-बड़े पंखों के ऊपर गिरता है, जिससे कि वो घूमते हैं और चक्की चलती है। यहां पर छह चक्कियां लगी हुई है, जो कि एक घंटे में लगभग दो सौ चालीस किलोग्राम गेंहूं कि पिसाई कर देती है। यह चक्की सिंचाई विभाग के अधीन आती है, जो उसे सालाना ठेके पर देता है। इस पनचक्की पर आटा पिसवाने के लिए जनपद मुजफ्फरनगर के निरगाजनी से लगे हुवे करीब तीन दर्जन से अधिक गांव आटा पीसने आते है।