एक लकड़हारा था। वह जंगल से लकड़ियां काटता और गांव के बाजार में बेचकर अपना जीवन चला रहा था। उसे इस काम से सिर्फ इतना ही पैसा मिल पाता था कि वह थोड़े बहुत खाने की व्यवस्था कर सकता था। एक दिन लकड़हारे के गांव में एक विद्वान संत पहुंचे। गरीब लकड़हारा संत से मिलने पहुंच गया। मौका मिलते ही गरीब व्यक्ति ने अपनी परेशानियां संत को बता दी। संत ने उससे कहा कि ठीक हैं भगवान से प्रार्थना करूंगा। कुछ दिन बाद लकड़हार संत के पास फिर से पहुंचा। संत ने उससे कहा कि भाई तुम्हारी किस्मत सिर्फ पांच बोरी अनाज ही है। इसीलिए भगवान तुम्हें थोड़ा-थोड़ा अन्न दे रहा है, ताकि तुम्हें जीवनभर खाना मिलता रहे। संत की बात सुनकर लकड़हार अपने घर लौट आया। कुछ दिन बाद वह फिर से संत के पास पहुंचा और बोला कि गुरुजी आप भगवान से कहो कि मुझे मेरी किस्मत का सारा अनाज एक साथ दे दे। कम से कम एक दिन मैं भरपेट भोजन करना चाहता हूं। संत ने कहा कि ठीक हैं मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करूंगा। अगले दिन गरीब लकड़हारे के घर पांच बोरी अनाज पहुंच गई। उसने सोचा कि संत ने मेरे लिए प्रार्थना की है, इसीलिए भगवान ने मुझे इतना अनाज दे दिया है। उसने बहुत सारा खाना बनाया खुद खाया और गांव के गरीब लोगों को बांट दिया। सभी ने उसे दुआएं दीं। अगले दिन उसके घर फिर से पांच बोरी अनाज आ गया। उसने फिर ऐसा ही किया, खुद खाया और दूसरों को खाना खिला दिया। काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। फिर एक दिन वह संत के पास पहुंचा और पूरी बात बता दी। संत ने उससे कहा कि भाई तुमने अपनी किस्मत का अनाज दूसरों की खिला दिया तो तुम्हारे इस नेक काम से भगवान बहुत प्रसन्न हैं। इसीलि वे तुम्हें अन्य जरूरतमंद लोगों की किस्मत का अनाज भी दे रहे हैं। ताकि तुम उन्हें भरपेट भोजन करा सको।