- लोगों ने निगम पर लगाया घंटाघर के भवन एवं घड़ी की उपेक्षा का आरोप
- शहर के लोग घंटाघर की घड़ी के टाइम से अपनी घड़ियों में टाइम करते थे सेट
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: क्रांतिधरा पर घंटाघर की घड़ी मेरठ की आन-बान-शान मानी जाती है, जोकि कुछ समय से रखरखाव के अभाव में उपेक्षा का शिकार हो गई है। वर्षों से पेंडूलम खराब होने के चलते घड़ी की सुर्इं 12 पर टिकी हुई है। घंटाघर की बिल्डिंग का निर्माण ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 17 मार्च सन 1913 में किया गया था। इस बिल्डिंग में सन 1914 में घड़ी लगाई गई थी।
निगम से चंद कदम की दूरी पर इस घड़ी की वजह से ही इसका नाम घंटाघर पड़ा और इस घंटाघर का नाम आसपास के क्षेत्र में नहीं बल्कि समूचे हिन्दुस्तान एवं विदेशों तक में है। महानगर में एक यह एक ऐसा स्थल है। जिससे देखने के लिये विदेशों तक से लोग आज भी आते हैं। उन्हे घंटाघर पर केवल बिल्डिंग देखने को मिलती है। पेंडूलम की टिक-टिक की आवाज सुनाई नहीं देती।
स्थानीय लोग बताते हैं कि जिस समय यह घड़ी चालू थी तो 10 से 15 किमी दूरी तक पेंडूलम की आवाज सुनाई देती थी। नगर निगम पर घंटाघर की उपेक्षा का आरोप लगाते हुये कहा कि बंद घड़ी को ठीक कराना तो दूर की बात, जब से घंटाघर एवं पास में ही बने टाउन हाल का निर्माण हुआ था, तब से भवन की न तो मरम्मत कराई गई और न ही रंगाई-पुताई कराई जा सकी है। यह किसी टेक्निीकल कारण या फिर कोई और कारण रहा हो, लेकिन उपेक्षा का शिकार जरूर कहा जा सकता है।
महानगर निवासी सरवर चौधरी का कहना है कि मेरठ की घंटाघर की विश्वप्रसिद्ध घड़ी मेरठ की आन-बान और शान मानी जाती है। टाउन हाल एवं घंटाघर की बिल्डिंग का एक साथ ही निर्माण हुआ था। देश की आजादी में दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिसमें आजादी के समय टाउन हाल में मीटिंग होती थी और घड़ी से लोग समय मिलाते थे और पूरा शहर पेंडूलम की आवाज पर एक साथ जाग जाया करता था।
बीते वर्षों में शाहरुख खान भी फिल्म की शूटिंग के दौरान घंटाघर पर आये थे। इस दौरान मात्र खानापूर्ति के लिये शुरू कराई गई थी। वहीं दूसरी तरफ असद ने बताया कि नगर निगम को चाहिए की जो कि एक हिन्दुस्तान की यह धरोहर जोकि उपेक्षा का शिकार हो रही है। नगर निगम उस पर ध्यान दें और इस बंद पड़ी घड़ी को दोबारा से चालू कराये। वहीं, आरिफ कुरैशी का कहना है कि उनकी करीब 10 वर्षों से घंटाघर के निकट दुकान है,
लेकिन उन्होंने एक बार भी पेंडूलम की आवाज नहीं सुनी। उन्होंने केवल घड़ी के बारे में दूसरों से ही सुना है कि इसकी आवाज 10 से 15 किमी तक सुनाई देती थी, लेकिन वह आवाज अपने कानों से नहीं सुनी। जिनके पास भी इस घड़ी को सही कराने की जिम्मेदारी है, वह उसके हिसाब से इस बंद पड़ी घड़ी को जरूर ठीक कराये, ताकि आज की युवा पीढ़ी एवं बच्चे भी देख सकें कि जो
आज वह बडेÞ बुजुर्गों से इस घंटाघर के बारे में सुनते आये हैं, वह वास्वत में हकीकत है। वहीं, इस बंद पड़ी घड़ी को चालू कराने के बारे में नगर निगम के द्वारा भी क्या कोई प्रयास किया जा रहा है, उसके लिये नगरायुक्त अमित पाल शर्मा से संपर्क करने का प्रयास किया, उनके मोबाइल पर संपर्क नहीं हो सका।