Monday, January 20, 2025
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450 वर्षों से आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर चला आ रहा पुरखों का भरोसा

  • आज हमें और हमारी अगली पीढ़ी को भी है 350 जड़ी बूटियों की जानकारी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय आयुर्वेद महासम्मेलन (महापर्व) में प्रदेश व देशभर से करीब 300 से अधिक आयुर्वेदाचार्य शामिल हुये। जिसमें हकीम एवं वैद्यों ने एलौपेथिक एवं आयुर्वेदिक दवाईयों के बारे में अपने अपने विचार रखे। वहीं कुछ हकीम वैद्यों ने आयुर्वेद की डिग्री लेकर चिकित्सा पद्धति से मरीजों के रोगों का उपचार शुरू किया है।

वहीं कुछ हकीम एवं वैद्य ऐसे भी हैं,जोकि उनको पुरखों से आयुर्वेद की चिकित्सा से उपचार करने का अनुभव प्राप्त हुआ और उन्होंने खुद आयुर्वेद की डिग्री प्राप्त करके असाध्य रोगों के मरीजों का रामबाण इलाज करने का दावा भी किया। वैसे तो कोई 50 वर्ष से तो कोई 100 या फिर कोई 200 वर्षो से अपने पुर्खो के द्वारा अपनाई जा रही आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपना रहा है,

लेकिन वहीं पंजाब के विश्व आयुर्वेद अनुसंधान एवं विकास परिषद के सदस्य 55 वर्षीय हरिमेश सिंह ने बताया कि उनके परिवार में पुर्खो से आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति से करीब 450 वर्षो से मरीजों का उपचार किया जाता चला आ रहा हैं। उनकी आगे की पीढ़ी भी आयुर्वेद से असाध्य रोगों से ग्रसित मरीजों का रामबाण तरीके से इलाज करना सीखती जा रही है। वह खुद भी आज करीब 350 से अधिक जडी बुटियों की पहचान रखते हैं,और स्वंय ही आयुवैदिक दवाईयां तैयार कर लेते हैं।

चौधरी चरण सिंह विश्व विद्यालय में आयोजित आयुर्वेद के तीन दिवसीय महासम्मेलन में देशभर से करीब 300 से अधिक आयुर्वेदाचार्य,हकीम एवं वैद्य शिरकत कर रहे हैं। इस महासम्मेलन का उद्घाटन उप राष्टÑपति जगदीप धनखड़ ने किया। इस महासम्मेलन के दूसरे दिन भी आयुर्वेदाचार्यो ने आयोजित सेमिनार में शिरकत की। वहीं मरीजों के द्वारा आयोजित आयुर्वेद मेले में हमीम एवं वैद्यों से अपने स्वास्थ की जांच कराते हुये उसके हिसाब ेसे इलाज शुरू कराया और आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवाईयां भी ली।

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सेमिनार के बाद हकीम एंव वैद्यों से जब वर्तमान एवं पूर्व के समय की असाध्य बीमारियां एवं आयुवैदिक एवं एलोपैथिक दवाईयों के उपचार एवं अंतर के बारे में जानकारी की गई तो सबने अपने- अलग-अलग अनुभव साझा किये। कोई हकीम वैद्य 10 से 20 वर्षो से आयुर्वेदिक पद्धति से मरीजों का उपाचर कर रहा है। वहीं कुछ हकीम वैध जब डिग्री आदि की व्यवस्था नहीं थी तब से उनके पूर्वज आयुवैदिक पद्धति से उपचार करते चले आ रहे हैं। इसी में अपने पूर्वजों की इस आयुवैदिक चिकित्सा

पद्वित्ति को आयुर्वेद की डिग्री हासिल कर इसे आगे बढाने का काम कर रहे हैं। इसी में पंजाब के बीपीओ बगडाना से आये हकीम डा हरमेश सिंह ने बताया कि उनके पूर्वज करीब साढे चार सौ वर्षों से अधिक समय से आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति से मरीजों का इजाज करते चले आ रहे हैं, उनकी आगे की पीढ़ी ने भी आयुर्वेद की डिग्री हासिल करके इस आयुर्वेद चिकित्सा से अयाध्य रोगों के मरीजों का बेहतर तरीके से इलाज करना शुरू कर दिया है। डा हरमेश सिंह बीएमएस ने बताया कि उन्हे यह आयुर्वेद से मरीजों का उपचार करने की पद्धति अपने पूर्वजों से मिली है।

जिसमें वह खुद भी जड़ी बूटी का ज्ञान रखते थे,आज वह और उनके परिवार के सदस्य जिसमें उनके बेटे ने भी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपनाया है,वह करीब 350 जडी बुटियों की जानकारी रखते हैं,जिसमें वह खुद जडी बूटी लाकर आयुर्वेद की दवाईयां तैयार करते हैं। उन्होंने दैनिक जनवाणी ने अपने विचार साझा करते हुये बताया कि वह देशभर में आयोजित होने वाले इस तरह के महासम्मेलनों में अक्षर जाते रहे हैं,चाहे मुम्बई में हो या जौधपुर या फिर देश के किसी भी प्रदेश में इस तरह का आयोजन हो तो वह अक्षर जाते रहे हैं,

पहले उनके पूर्वज भी आयुर्वेद के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे हैं, उन्होंने एक 1966 के सम्मेलन की फोटो भी दिखाई,बताया कि आयुर्वेद में असाध्य रोगों का इलाज तो संभव है, लेकिन उससे पहले असाध्य रोगों की पहचान हकीम वैद्य कैसे करे वह जरूरी होता है,फिर किस जडी बूटी से कोन सा रोग ठीक होगा,वह जरूरी होता है, लेकिन जैसा, एलोपैथिक में अक्षर डाक्टर करते हैं,कि वह बिना रोग की सटीक पहचान के तरह तरह की दवाईयां मरीज को देकर बीमारी को ठीक करने की जगह अक्सर ज्यादा दवाईयों के सेवन से छोटी मोटी बीमारी से ग्रस्ति व्यक्ति भी असाध्य रोगों से ग्रसित हो जाता है।

वहीं हकीम वैद्य को भी चाहिए की वह सबसे पहले मरीज को किस तरह की बीमारी है,उसकी पकड करे और उसके बाद कौन सी जडी बूंटी कारगर होगी उसका ध्यान रखना जरूरी होता है,तब जाकर कोई भी हकीम या वैध साधारण या असाध्य बीमारी को दूर करने में सफल होगा। उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे खानपान, रहन सहन एवं बढ़ता प्रदूषण एवं खेतीबाड़ी में अधांधुंध रासायनिक दवाईयों का प्रयोग करते हैं, उसके द्वारा असाध्य रोगों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा सकती है।

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