जीवन से अंधकार हटाना व्यर्थ है, क्योंकि अंधकार हटाया नहीं जा सकता। जो यह जानते हैं, वे अंधकार को नहीं हटाते, वरन प्रकाश करते हैं। एक प्राचीन लोककथा है, उस समय की जब मनुष्य के पास प्रकाश नहीं था, अग्नि नहीं थी। लोगों ने अंधकार को दूर करने के बहुत उपाय सोचे, पर कोई भी कारगर नहीं हुआ।
किसी ने अंतत: कहा, ‘हम अंधकार को टोकरियों में भर-भरकर गड्ढों में डाल दें। ऐसा करने से धीरे-धीरे अंधकार क्षीण होगा। और फिर उसका अंत भी आ सकता है।’ यह बात बहुत युक्तिपूर्ण मालूम हुई और लोग रात-रात भर अंधेरे को टोकरियों में भर-भरकर गड्ढों में डालते, अंधेरा जस का तस रहा! लेकिन अंधकार को फेंकने ने एक प्रथा का रूप ले लिया था।
एक युवक का विवाह हुआ। पहली ही रात बहू से अंधेरे की एक टोकरी घाटी में फेंक आने को कहा। वह यह सुन बहुत हंसने लगी। उसने किसी सफेद पदार्थ की बत्ती बनाई, एक मिट्टी के कटोरे में घी रखा और फिर किन्हीं दो पत्थरों को टकराया। लोग चकित देखते रहे, आग पैदा हो गई थी, दीया जल रहा था और अंधेरा दूर हो गया था!
लेकिन जीवन के संबंध में हममें से अधिक अभी भी दीया जलाना नहीं जानते हैं। और, अंधकार से लड़ने में ही उस अवसर को गंवा देते हैं, जो कि अलौकिक प्रकाश में परिणित हो सकता है।
प्रभु को पाने की आकांक्षा से भरो, तो पाप अपने से छूट जाते हैं। और, पापों से ही लड़ते रहते हैं, वे उनमें ही और गहरे धंसते जाते हैं। जीवन को विधायक आरोहण दो, निषेधात्मक पलायन नहीं। सफलता का स्वर्ण सूत्र यही है।
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