संप्रति हमारे देश में कार्यशील युवाशक्ति की बहुतायत है। अब यह देश के नीति निर्माताओं के विवेक पर निर्भर करता है कि वे इस युवाशक्ति को गुणात्मक रोजगार के अवसर उपॅलब्ध करा कर देश के विकास में उसकी सहभागिता सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देते हैं या मुफ्त पांच किलो राशन का लॉलीपॉप दिखाकर युवाओं को दर-दर की ठोकरें खाने को भटकता छोड़ देना चाहते हैं। आजकल एक नया ट्रेंड चल गया है- ‘हमें केवल अच्छा दिखना है, अच्छा बनना नहीं है’। सारा फोकस केवल अच्छा दिखने पर है और इस प्रोपेगेंडा में जाने-अनजाने सभी शामिल हैं-व्यक्ति, शिक्षण संस्थान, सामाजिक संस्थान और यहां तक मीडिया भी। ‘हमें अच्छा करना होगा, अच्छा बनना भी होगा और तब सही मायने में अच्छा दिखेंगे भी।’ इस अच्छा बनने और करने की प्रक्रिया में सबसे पहले हमें सार्वजानिक व्यय की गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास करना होगा। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश पर एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश का अवसर वर्ष 2005-06 से वर्ष 2055-56 तक पांच दशकों के लिए उपलब्ध है।
वर्ष 2041- 42 में भारत में युवा कार्यबल अपने चरम पर होगा। इस पृष्ठभूमि में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सरकार युवा जनसंख्या की स्वास्थ्य एवं रोजगार सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे, जिससे कि देश के विकास में युवाओं की सक्रिय भागीदारी का लाभ उठाया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार, जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ है, ‘आर्थिक विकास क्षमता जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप प्राप्त हो सकती है, मुख्यत: जब कार्यशील उम्र की आबादी (15 से 64 वर्ष ) का हिस्सा गैर-कार्यशील उम्र (14 और उससे कम, तथा 65 एवं उससे अधिक) की आबादी से बड़ा हो।’
भारत में लगभग 64 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या की आयु 15 से 59 वर्ष के बीच है तथा जनसंख्या की औसत आयु 30 वर्ष से कम है।
इसका तात्पर्य यह है कि भारत जनसंख्या की आयु संरचना के आधार पर आर्थिक विकास की क्षमता का प्रतिनिधित्व करने वाले जनसांख्यिकीय लाभांश के दौर से गुजर रहा है। जनसांख्यिकीय लाभांश के कारण मिलने वाले लाभ को वास्तविकता में बदलने के लिए किशोरों और युवाओं को स्वस्थ एवं सुशिक्षित होने के साथ-साथ उन्हें गुणवत्ता पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर देश के विकास में उनकी सकारात्मक भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधि इस प्रकार है-
भारत 2005 से 2055 तक, 50 वर्ष, चीन 1994 से 2031 तक, 37 वर्ष, बांग्लादेश 2017 से 2052 तक, 35 वर्ष, जापान 1964 से 2004 तक, 40 वर्ष, थाईलैंड 1994 से 2028 तक, 34 वर्ष, इटली 1984 से 2002 तक, 18 वर्ष, ब्राजील 2006 से 2038 तक, 32 वर्ष, स्पेन 1991 से 2014 तक, 23 वर्ष। वर्तमान में भारत की केंद्र और राज्य की सरकारों के समक्ष युवा क्षमता को साकार करने की चुनौती है।
भारत में सरकार (केंद्र और राज्य दोनों) द्वारा अल्प-वित्तपोषित शिक्षा प्रणाली युवाओं को उभरते रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने हेतु आवश्यक कौशल प्रदान करने के लिये अपर्याप्त है। विश्व बैंक के अनुसार, शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.4 प्रतिशत था। एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि प्रति छात्र सार्वजनिक व्यय के मामले में भारत 62वें स्थान पर है और छात्र-शिक्षक अनुपात एवं शिक्षा उपायों की गुणवत्ता में इसका प्रदर्शन खराब रहा है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मुख्य योगदानकर्त्ता सेवा क्षेत्र है जो श्रम प्रधान नहीं है और इस प्रकार यह रोजगार विहीन विकास को बढ़ावा देता है। इस बात की चिंता बढ़ रही है कि भविष्य का विकास रोजगारहीनता के साथ घटित होगा। आर्थिक सर्वेक्षण 2019 कामकाजी आयु आबादी में अनुमानित वार्षिक वृद्धि और उपलब्ध नौकरियों की संख्या के बीच के अंतराल को उजागर करता है। भारत में अर्थव्यवस्था की अनौपचारिक प्रकृति भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण के लाभों को प्राप्त करने के मार्ग में एक और बाधा है।
इसके अलावा भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है, जो कि अल्प-रोजगार और प्रच्छन्न बेरोजगारी के लिए बदनाम है। इसके अलावा उच्च स्तर की भुखमरी, कुपोषण, बच्चों में बौनापन, किशोरियों में रक्ताल्पता का उच्च स्तर, खराब स्वच्छता आदि ने भारत के युवाओं की क्षमता को साकार करने में बाधा पहुंचाई है। भारत में अर्थव्यवस्था की प्रकृति के प्रतिकूल आर्थिक सुधारों का फोकस सेवा क्षेत्र की ओर अधिक रहा है जहां रोजगार की लोच कम रहने के कारण तेजी से उभरती युवाशक्ति को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हो सके।
कृषि क्षेत्र जहां रोजगार की लोच अधिक है पर आर्थिक सुधारों का फोकस नहीं रहा। कृषि क्षेत्र में भारी सार्वजनिक निवेश करने की आवश्यकता है। कृषि में भारी निवेश से अर्थव्यवस्था में रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित हो सकेंगे और युवाओं को अधिक रोजगार देने में कृषि क्षेत्र सहायक सिद्ध हो सकता है। इससे न केवल मांग में वृद्धि के द्वारा आर्थिक वृद्धि की दर को बढ़ाया जा सकता है बल्कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानताओं को कम करने में भी मदद मिलेगी।
भारत की श्रम शक्ति को आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए सही कौशल के साथ सशक्त बनाने की आवश्यकता है। यदि भारत अपने युवा उभार की आर्थिक क्षमता का लाभ उठाना चाहता है तो उसे सामाजिक बुनियादी ढांचे जैसे- अच्छा स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में सुधार करने के लिए बड़ा निवेश करना चाहिए और पूरी आबादी को उत्पादक रोजगार उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए।
भारत को मानव पूंजी के निर्माण के लिए अभूतपूर्व पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण स्कूल और उच्च शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा में बड़े पैमाने पर निवेश करने की आवश्यकता है। पांच किलो राशन के दम पर चुनाव तो जीते जा सकते हैं, परंतु अर्थव्यवस्था के सम्मुख उत्पन्न गंभीर चुनौतियों जैसे बढ़ती बेरोजगारी एवं आर्थिक असमानताओं का सामना कर पाना मुश्किल है।
देश के दीर्घकालिक और संवहनीय विकास के लिए हमें न केवल अपनी युवाशक्ति को कुशल और सक्षम बनाने के लिए शिक्षा और स्वास्थ पर निवेश बढ़ाना होगा बल्कि युवाओं की उत्पादक गतिविधियों में सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए गुणात्मक रोजगार के अवसर भी मुहैया कराने होंगे।