अभी ईवीएम की शुचिता गंभीर सवालों में है और अन्य दलों के अलावा बसपा तक ने मतपत्रों के माध्यम से चुनाव कराने की मांग की है। इस बीच चुनाव आयोग को अचानक प्रवासी मजदूरों के मताधिकार की याद सताने लगी और चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग मशीन (आरवीएम) की अवधारणा लेकर सामने आया जिसके प्रति विपक्षी दलों के साथ साथ पूरे देश की लोकतान्त्रिक ताकतों को भी घोर आपत्ति है क्योंकि लगभग 30 से 45 करोड़ प्रवासियों के माध्यम से भाजपा 24 का लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है। अंदेशा तो यहाँ तक व्यक्त किया जा रहा है कि जिन भाजपा शासित राज्यों बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूर हैं यदि आरवीएम प्रणाली का उपयोग होता है तो बड़े पैमाने पर आधिकारिक स्तर पर हेराफेरी हो सकती है ताकि मोदी की लोकप्रियता में गिरावट से होने वाले नुक्सान को कम किया जा सके। इन राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं जहाँ के प्रवासी मजदूरों के आरवीएम वोटों से बिहार, उड़ीसा, झारखंड जैसे राज्यों में डैमेज कंट्रोल किया जा सकता है। 30 करोड़ से 45 करोड़ प्रवासी वोटर किसी चुनाव का रुख बदल सकते हैं।
चुनाव आयोग ने सोमवार को रिमोट वोटिंग मशीन यानी आरवीएम का प्रोटोटाइप दिखा दिया है। दूर-दराज रहने वाले वोटर्स इस सिस्टम से कैसे वोट करेंगे, इसका डेमो 8 नेशनल और 57 रीजनल पार्टियों के सामने दिया गया। कांग्रेस समेत 16 पार्टियों ने आरवीएम का विरोध किया है। उनका कहना है कि इसमें भारी राजनीतिक समस्याएं हैं।
वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान देश में कुल 91 करोड़ मतदाता थे। इनमें 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल ही नहीं किया।
चुनाव आयोग का कहना है कि इनमें वे लोग शामिल हैं, जो दूसरे राज्यों में नौकरी कर रहे हैं या प्रवासी मजदूर हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में लगभग 45.36 करोड़ लोग अपना घर और शहर छोड़कर दूसरे राज्यों में रह रहे हैं यानी वे प्रवासी हैं। यह देश की आबादी का 37 प्रतिशत है। यह संख्या समय के साथ बढ़ी है। इसी को ध्यान में रखकर चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग सिस्टम लेकर आया है। चुनाव आयोग के मुताबिक, ‘आबादी का एक बड़ा हिस्सा जरूरी काम के चलते या यात्रा की वजहों से अपना वोट नहीं दे पाता है। यह चुनाव आयोग के कोई मतदाता पीछे नहीं छूटे के टारगेट के खिलाफ है। इसलिए आरवीएम तैयार किया गया है।
’ प्रवासियों के वोटिंग के इश्यू को समझने के लिए चुनाव आयोग ने 2016 में कमेटी ऑफ आॅफिसर्स आॅन डोमेस्टिक माइग्रेंट्स बनाई थी। कमेटी ने 2016 के अंत में प्रवासियों के लिए इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, अर्ली वोटिंग और पोस्टल बैलट से वोटिंग का सुझाव दिया था।
हालांकि, इन सभी आइडिया में वोट की गोपनीयता की कमी थी। साथ ही यह कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए यह फायदेमंद नहीं था। ऐसे में चुनाव आयोग ने सभी आइडिया को खारिज कर दिया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने इसका टेक्निकल सॉल्यूशन आरवीएम सिस्टम के जरिए निकाला। यह वोटर्स को सुरक्षित और कंट्रोल्ड एन्वायर्नमेंट में वोटिंग का मौका देता है।
इस सिस्टम की मदद से घर से दूर यानी दूसरे राज्य या शहर में रहने वाले वोटर्स भी मतदान कर सकेंगे। इसके लिए उन्हें अपने शहर या गांव जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वोटर जिस शहर में रह रहा है, उसे वहीं बनाए गए रिमोट वोटिंग स्पॉट पर जाना होगा। मान लीजिए वैभव मध्य प्रदेश के रीवा का रहने वाला है और राजस्थान के जयपुर में नौकरी करता है। मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान वैभव जयपुर में ही बने स्पेशल वोटिंग बूथ पर अपनी विधानसभा के लिए वोट डाल सकेगा।
वोटिंग की ये प्रक्रिया 4 स्टेप में होगी। बूथ पर पीठासीन अधिकारी वोटर की को वेरिफाई करने के बाद उसके कॉन्स्टीट्यूएंसी कार्ड को स्कैन करेंगे। इसके बाद पब्लिक डिस्प्ले यूनिट यानी एक बड़ी स्क्रीन पर वोटर की कॉन्स्टीट्यूएंसी का नाम दिखाई देने लगेगा। वोटर अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करेगा और कॉन्स्टीट्यूएंसी नंबर, राज्य कोड और कैंडिडेट नंबर के साथ यह वोट दर्ज हो जाएगा। वीवीपीएटी स्लिप में स्टेट कोड और कॉन्स्टीट्यूएंसी कोड के साथ ही कैंडिडेट का नाम, सिंबल और सीरियल नंबर भी आता है।
रिमोट वोटिंग सिस्टम पर तीन बड़े सवाल उठ रहे हैं। घरेलू प्रवासी की परिभाषा क्या होगी? क्या सभी घरेलू प्रवासी मतदान कर सकेंगे? जब टेक्नोलॉजी बेस्ड वोटिंग के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं तो आरवीएम लाना कितना सही होगा? रिमोट वोटिंग लोकेशन पर मॉडल कोड आॅफ कंडक्ट यानी चुनावी आचार संहिता कैसे लागू होगी? 30 करोड़ रिमोट वोटर जुड़ने से चुनावी मुद्दे भी उनके इर्द-गिर्द होंगे।
ऐसे में बड़ी पार्टियां और अमीर कैंडिडेट निर्वाचन क्षेत्र में और उसके बाहर जमकर प्रचार कर सकते हैं, उन्हें फायदा मिल सकता है। फिर जब 370 से अधिक लोकसभा सीटों पर 2019के चुनावों में ईवीएम में वोट पड़े और वोट निकले की संख्या में भरी अंतर है और मामला सुप्रीमकोर्ट में लंबित है तो आरवीएम की शुचिता पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि इसमें प्रशासनिक मशीनरी द्वारा हेराफेरी नहीं की जाएगी?
विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की ओर से रिमोट वोटिंग मशीन के इस्तेमाल की पहल के प्रति बेरुखी दिखाई। आयोग ने सोमवार को सभी राजनीतिक दलों को इससे जुड़ा का डेमो दिखाने के लिए बुलाया था, लेकिन कांग्रेस सहित अधिकतर विपक्षी दलों ने इसके प्रति उत्साह नहीं दिखाया। अब 31 जनवरी तक सभी राजनीतिक दलों को इस पहल पर अपनी राय देने को कहा गया है। कांग्रेस सहित देश के 16 विपक्षी दलों ने रविवार को ही एक बैठक कर चुनाव आयोग की इस पहल के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए इसका विरोध करने का फैसला किया।
इनका कहना है कि इस पहल से जुड़ी कई चीजें अभी साफ नहीं हैं। इनके अपने संदेह, सवाल और आशंकाएं हैं। हालांकि इन दलों ने अभी चुनाव आयोग को औपचारिक तौर पर अपने रुख से वाकिफ नहीं कराया है। उससे पहले ये दल 25 जनवरी को एक और बैठक करेंगे, जिसमें उनके सवालों पर चुनाव आयोग के रुख की समीक्षा की जाएगी।
रविवार को होने वाली 65 राजनीतिक दलों की इस बैठक में जनता दल (यूनाइटेड), शिवसेना, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), नेशनल कॉन्फ्रेंस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), विदुथलाई चिरुथईगल काची (वीसीके), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के नेताओं के साथ-साथ राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य और कांग्रेस के पूर्व नेता कपिल सिब्बल शामिल थे।