Friday, January 10, 2025
- Advertisement -

सत्ता से नहीं साधे जा सकते गांधी

NAZARIYA 1


हिंदुत्व को मानने वाले लोगों को महात्मा गांधी को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए। उन्हें भी वही करना चाहिए जो आजादी के बाद कांग्रेसियों ने किया। उन्होंने गांधी को वैसे ही छोड़ दिया जैसे हम अंगारे को हाथ से छोड़ देते हैं।

मैं इमरजेंसी के बाद की पीढ़ी की हूं और पिछले पच्चीस सालों से गांधी के सर्वोदय की दिशा में चलने और काम करने की कोशिश करती रही हूं।

इस अनुभव से मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि आज से पच्चीस साल पहले अपने देश में गांधी का नाम जितना नहीं गूंजता था, आज उससे कई गुना ज्यादा गूंज रहा है।

तब जनता में गांधी के विचार को समझाने की बड़ी कोशिशें करनी पड़ती थीं, कभी-कभार विरोध भी झेलना पड़ता था-खासकर नौजवानों का! लेकिन आज हाल यह बना है कि वे लोग भी गांधी का नाम लेने लगे हैं जो जाने-अनजाने में गांधी के घोर विरोधी रहे हैं।

जब मैं सिंघू बॉर्डर पर किसान आंदोलन का समर्थन करने अपनी पत्रिका गांधी-मार्ग का किसान अंक लेकर पहुंची तो नौजवानों ने घेर लिया और कहने लगे : गांधी-मार्ग नहीं, भगत सिंह-मार्ग छापिए! मैंने कहा: लेकिन रास्ता तो आपने गांधी का पकड़ा है!

वे मेरी बात से जरा झेंप-से गए, लेकिन आज जब लखीमपुर में हुई भयंकर हिंसा के बावजूद, उन्होंने हर हद तक संयम का सहारा लिया, वहां हुई हिंसा की मुखालफत करते रहे, तो यह विश्वास उस बूढ़े से ही आया था कि जिसने कहा था बड़े-से-बड़े एटम बम का मुकाबला अहिंसा से ही हो सकता है।

सरकार किसानों की मांग नहीं मान रही, तो अनजाने में ही सही, वही इस आंदोलन को धीरे-धीरे गांधी के निकट पहुंचा रही है। यह आंदोलन गांधी के जितने निकट पहुंचेगा, सरकार के लिए उतनी मुश्किल पैदा करेगा। एक समय आएगा, जब वहां पूरा गांधी दिखाई देने लगेगा।

गांधी को मारने के बाद, वे ही लोग गांधी को बार-बार जिदा भी करते रहते हैं और ऐसा करके वे अपने ही गले में फंदा डाल लेते हैं। जितनी बार वे गांधी का नाम लेते हैं, उनका इतिहास उल्टा-सीधा पढ़ते व पढ़ाते हैं, उतनी ही बार समाज नए सिरे से खोजने लगता है कि दरअसल कब, क्या हुआ था और किसने क्या भूमिका निभाई थी; और यह गांधी है कौन और है तो कहां है !

तो जैसे ही समाज सच को खोजता है वैसे ही सच खड़ा होने लगता है। सच सामने आता है तो असत्य खुद ही सूखे पत्ते की तरह झरने लगता है। सावरकर की माफी का प्रसंग देखिए। यह तो गजब ही हो गया कि सावरकर को गांधी ने माफीनामा लिखने को कहा !

जब खोजबीन चली तो भगत सिंह के लिए लिखी गांधी की ह्यमर्सी पिटीशनह्ण की बात भी आ गई और सावरकर को जेल से छोड़ने की बात कहता उनका लेख भी लोगों को मिल गया।

इसलिए कहती हूं कि सैन्यवृत्ति का समाज बनाने का सपना देखने वाले सावरकर की हिंदुत्व की कल्पना को मानने वाले लोगों के लिए अच्छा यही है कि वे गांधी को अपने हाल पर छोड़ दें। झूठ आपको लगातार बौना बनाता जाता है।

यह बात इसलिए भी लिखनी पड़ रही है कि हमारे प्रधानमंत्री और गुजरात सरकार की नजर अब ह्यसाबरमती आश्रमह्ण पर पड़ी है। अब तक तो अखबारों में कहीं से सुनी-सुनाई बातें छप रही थीं, अब गुजरात सरकार की तरफ से बजाप्ता प्रमोशनल वीडियो सोशियल मीडिया पर लॉन्च किया गया है।

जब वे सार्वजनिक रूप से अपनी बात देश को बता रहे हैं तब हमें भी अपनी बात कहनी पड़ेगी। एकतरफा बयानबाजी हमेशा ही झूठ को मजबूत करने की रणनीति होती है।

यह कहने की जरूरत आ गई है कि गांधी और प्रधानमंत्री एकदम विपरीत दिशा में चल रहे हैं। गांधी ग्राम-स्वराज्य की बात करते थे, प्रधानमंत्री स्मार्ट सिटी की बात करते हैं।

गांधी स्वेच्छा से स्वीकारी गरीबी का आदर्श सामने रखते थे, प्रधानमंत्री भारत को हवाई जहाज का सपना दिखाते हैं। गांधी धार्मिक व जातीय समानता व समरसता को मानते थे, प्रधानमंत्री हिंदुत्व की विचारधारा की जातीय श्रेष्ठता को मानते हैं।

गांधी अल्पसंख्यकों और दलितों के संरक्षण पर खास जोर देते थे, प्रधानमंत्री उन पर हमला करने वालों को सम्मानित करते हैं। गांधी उन शादियों में जाते नहीं थे, जिनके जोड़े में कोई एक दलित या किसी दूसरे धर्म या जाति का न हो, प्रधानमंत्री ऐसे लोगों की प्रतारणा व हत्या तक पर चुप रहते हैं।

गांधी महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका में रखते थे, प्रधानमंत्री उन्हें 30 प्रतिशत जगह देने का भी समर्थन नहीं करते हैं। गांधी का भारत और प्रधानमंत्री की भारतमाता का चेहरा एक-दूसरे से नहीं मिलता।

गांधी सबसे गरीब और असहाय आखिरी आदमी को हर राष्ट्र-नीति का आधार मानते थे, प्रधानमंत्री की किसी भी नीति में इस आधार का पता भी नहीं होता।

पिछले सात सालों की नीति की एक ही दिशा है : दिहाड़ी पर जीने वालों के हाथ का रोकड़ा कैसे धनवानों की तिजोरी में पहुंचा दिया जाए! नोटबंदी, जीएसटी, देशबंदी, लगातार बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल-गैस के आसमान छूते दाम यही तो कर रहे हैं।

गांधी पड़ौसी से सौहार्द की बात करते हैं, प्रधानमंत्री जंग की बात करते हैं। कहने को यह भी कहना चाहिए कि मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत एक साथ संभव नहीं,

बुलेट ट्रेन और पर्यावरण का संरक्षण एक साथ संभव नहीं, सैन्य-वृत्ति का हिंदुत्व और देश की अखंडता एक साथ संभव नहीं, लेकिन ऐसी बातें समझने-समझाने का समय नहीं है प्रधानमंत्री के पास।

लब्बोलुआब यह कि जिस भाजपा ने देश का इतिहास बनाने में कभी हाथ बंटाया ही नहीं, वह सत्ता की ताकत से इतिहास बदलने में लगी है। इसलिए विनम्रता, लेकिन दृढ़तापूर्वक कहना चाहती हूं कि गांधी को उनके हाल पर ही छोड़ दो।


SAMVAD

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Rasha Thandani: क्या राशा थडानी कर रही है इस क्रिकेटर को डेट? क्यो जुड़ा अभिनेत्री का नाम

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Latest Job: मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल ने इन पदों पर निकाली भर्ती, यहां जाने कैसे करें आवेदन

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट में आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img