उस समय की बात है, जब महात्मा बुद्ध जंगली भैंसे की योनि भोग रहे थे। वह भैंसे की योनी में भी एकदम शांत प्रकृति के थे। अहिंसा धर्म का पालन करते थे। जंगल में एक नटखट बंदर बहुत शैतान था। हर समय कुछ न कुछ ऐसी हरकत करता रहता था, जिससे सभी परेशान रहते थे।
सभी जानवर उससे बहुत परेशान थे। वह महात्मा बुद्ध को भी तंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। दूसरे जानवर तो उसे झिड़क भी देते थे, लेकिन महात्मा बुद्ध उसे कुछ नहीं कहते थे। बंदर को बुद्ध को छेड़ने में बड़ा आनन्द आता था।
वह कभी उनकी पीठ पर सवार हो जाता था, तो कभी पूंछ से लटक कर झूलता, कभी कान में ऊंगली डाल देता, तो कभी नथुने में। कई बार गर्दन पर बैठकर दोनों हाथों से सींग पकड़कर झकझोरता।
महात्मा बुद्ध उससे तब भी कुछ न कहते और मुस्करा कर रह जाते। उनकी सहनशक्ति और वानर की धृष्टता देखकर देवता भी हैरान थे। देवताओं ने उनसे इसका कारण जानने के लिए उनसे निवेदन किया,
‘शांति के अग्रदूत, आप इस नटखट बंदर को दंड क्यों नहीं देते, जबकि यह आपको बहुत ज्यादा परेशान करता है। आपको बहुत सताता है और आप चुपचाप सह लेते हैं!’ महात्मा बुद्ध मुस्कराकर बोले,
‘मैं इसे सींग से चीर सकता हूं, माथे की टक्कर से पीस सकता हूं; परंतु में ऐसा नहीं करता, न करुंगा। अपने से बलशाली के अत्याचार को सहने की शक्ति तो सभी जुटा लेते हैं, परंतु सच्ची सहनशक्ति तो अपने से बलहीन की बातों को सहन करने में है।’