बुशरा तबस्सुम का सद्य प्रकाशित काव्य-संग्रह ‘कहीं कुछ रिक्त’ हिंदी काव्य-जगत में अनुपम कविताओं के अस्तित्व का उद्घोष है। इस काव्य-संग्रह में उनकी एक सौ पचास कविताएं संग्रहित हैं। बुशरा तबस्सुम की कविताओं की सबसे बड़ी विशिष्टता, उनमें सन्निहित शांत रस है, वे यद्यपि अपने कथ्य में विविध भावों की अभिव्यक्ति करती हैं। कवयित्री होने के नाते उनके काव्या में स्त्री-चेतना है, परंतु यह साहित्य के उस कथित ‘स्त्री विमर्श’ के चीत्कार से विमुख है, जिसमें वयं के स्थान पर अहं संपोषित किया गया है।
वे प्रीत के परिप्रेक्ष्य में स्त्री के अस्तित्व को अभिव्यक्त करती हैं। कविता ‘मेरे जन्म’ का यह अंश द्रष्टव्य है-प्रीत की सदी में/मेरे ये जनम/अमर है अजर है/इस सदी से कुछ वर्षों पूर्व/जनमी थी जो औरत/आयु के अवसान पर/मृत्यु बस उसी की होगी। कवयित्री बुशरा संस्कृति-सम्बद्ध मान्यताओं से संपृक्त कर अपनी बात उन्हीं देशज शब्दों में कहने की सिद्धहस्त हैं। उनकी कविताओं में हिंदी के तत्सम और उर्दू के शब्दों के समुचित व्याकरण का समावेश बहुत सुंदर रूप में दृष्टिगोचर होता है।
उल्लेखनीय यह है कि वे इनका प्रयोग करते हुए क्रिया या संज्ञा-शब्दों के संग सटीक रूप से उसी भाषा विशेष का विशेषण भी रखती हैं। कविता ‘विपुल विश्वास’ का शीर्षक संस्कृत शब्दों का है, तो इसी की प्रथम पंक्ति व आगे अन्य देखिए-शर्मसार शाम/दिल दरिया में डूबा फिर/सुखद स्वप्न बेनाम …शाम है, तो विशेषण उसी भाषा का ‘शर्मसार’ है। यह अद्भुत बात है कि यह प्रयोग ना होकर, प्राकृत रूप से उनकी रचनाओं में है, इसी कारण रचनाओं में प्रवाह है ; ठिठकाव कहीं नहीं! इस काव्य- संग्रह की सभी कविताएं अनुपम बिंबों से अपनी बात कहती हैं।
इन बिंबों में कवयित्री कहीं वस्तुओं के संग भावों के बिंब भी रच जाती हैं, जो रचनाशीलता का दुर्लभ प्राय: गुण है। संग्रह के प्रारम्भ में संपादक सहित जिन चार लोगों के वक्तव्य हैं, वे कवयित्री के काव्य का सम्यक् मूल्यांकन तो हैं , परन्तु उनमें ना केवल वर्तनी, वरन भाषागत व्याकरण की दृष्टि से भी अनेक त्रुटियां हैं, जिनसे बचा जा सकता था।
काव्य संग्रह : कहीं कुछ रिक्त, कवयित्री : बुशरा तबस्सुम, प्रकाशक : कालसाक्षी साप्ताहिक, लखनऊ, मूल्य : 349 रुपये
डॉ. सम्राट सुधा