Friday, April 19, 2024
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स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करना होगा

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98बीते मंगलवार दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन ने प्रेस वार्ता में कहा कि दिल्ली में तेरह हजार बेड की सुविधा है और पर्याप्त वेंटिलेटर भी मौजूद हैं, जिससे लोगों को घबराने की जरूरत नही है। जैन ने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अन्य तमाम बातें भी कहीं, लेकिन सवाल यही है कि राजधानी की इतनी बिगडती स्थिति में मंत्री जी किस आधार पर अपनी प्रशंसा कर रहे हैं। दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों में हाल इतना खराब हैं कि कोरोना से पीड़ित रोगी को दवा व उपचार तक को मिल नहीं रहा और यह लोग कह रहे हैं कि बैड उपल्बध हैं। इसके अलावा हालात ये हैं कि अन्य बीमारियों से ग्रस्त रोगियों का इलाज नहीं हो पा रहा है। उपचार न मिलने की वजह से हालात बद से बदतर होने लगे हैं, जिसकी वजह से लोगों की जाने जा रही हैं। किसी भी अस्पताल में एडमिट कराने के लिए लोग इस तरह सिफारिश ढूंढ रहे हैं, मानों न जाने कितना बड़ा काम करवाना हो। दिल्ली, महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ के अलावा देश के तमाम राज्यों में एक बार फिर कोरोना बम फूटा है। देश एक बार फिर संकट से जूझ रहा है, जिसकी वजह से लोग स्वास्थ्य के क्षेत्र में परेशानी महसूस कर रहे हैं।

यदि प्राइवेट अस्पतालों की चर्चा करें तो वह पूर्ण रूप से अपनी जिम्मेदारियों से भागते नजर आ रहे हैं। कोरोना के मरीज को तो वह दूर से ही भगा देते हैं व अन्य रोगियों को इलाज करने से बच रहे हैं। जो लोग नियमित रूप से डायलिसिस व अन्य बीमारियों का इलाज करवा रहे हैं उनको भी इलाज नहीं मिल पा रहा।

केजरीवाल सरकार को न जाने प्राइवेट अस्पतालों पर कार्यवाही करने में किस बात का डर है। जब देश में इस तरह का संकट है तो क्यों अपना फर्ज क्यों नहीं निभाया जा रहा। बीते रविवार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेसवार्ता में कहा था कि जरूरी हो तो अस्पताल जाएं। अब कोई मुख्यमंत्री साहब से पूछे कि बिना जरूरत के अस्पताल कौन जाता है। यदि किसी को छोटी-मोटी समस्या या बीमारी होगी तो वह स्थानी डॉक्टर के पास ही जाता है और समस्या बड़ी होती है तो ही वह किसी अस्पताल जाता है। और यदि गर्भवती महिलाओं की चर्चा करें तो जब कोई महिला गर्भवती होती है और यदि वो सरकारी अस्पताल में प्रसव कराना चाहती है तो उसको तीन महीने की गर्भवती होने पर अस्पताल में पंजीकरण करवाना अनिवार्य होता है।

प्रसव होने तक पूरा इलाज संबंधित अस्पताल में चलता है। वहीं दूसरी ओर अधिकतर मध्यमवर्गीय परिवार या पूंजीपति प्राइवेट अस्पतालों में प्रसव कराते हैं और जैसा कि शुरुआत से लेकर प्रसव तक वह भी उस अस्पताल से जुडे रहते हैं।

लेकिन अब कोरोना के फिर से बढ़ते हुए मामलों की वजह से ऐसे परिवारों को परेशानी यह आ रही है कि सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं हैं और अधिकतर प्राइवेट अस्पताल के मालिकों ने कोरोना के डर से फिर से अस्पताल बंद कर दिए और जो खुले हैं वो डिलीवरी केस नहीं ले रहे। दोनों ही स्थिति में इस तरह लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

सरकारी अस्पताल प्रशासन का कहना है कि हमारे पास पहले से ही अपनी क्षमता से अधिक केस होते हैं और यदि किसी ने अपना पंजीकरण पहले से नहीं कराया हो तो उसका प्रसव हमारे यहां कानूनी तौर पर संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में कई लोग परेशान हो रहे हैं। आखिर करें तो क्या करें? गर्भवती महिलाओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे तमाम परिवारों को सरकारी अस्पतालों के बाहर परेशान होते देखा जा सकता है। बीते दिनों दिल्ली स्थित देश के दो नामचीन अस्पताल गंगाराम व एम्स में करीब सत्तर डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाए गए और ये वो डॉक्टर थे, जिन्हें गंभीर बीमारियों का इलाज व ऑपरेशन करना होता है। इन सभी को कोरोना होने की वजह से सभी ऑपरेशन स्थगित हो गए।

इन अस्पतालों में ऑपरेशन की तारीख का छह महीने से लेकर एक साल तक इंतजार करना होता है। जो लोग इतने लंबे समय से इंतजार कर रहे थे और जब आगे फिर साल भर बाद की तारीख मिल गई तो उनको कितना प्रभावित होना पड़ रहा है।

यहां केंद्र व राज्य सरकारों को बेहद गंभीरता से काम करने की जरूरत है। इस बात में कोई दोराय नहीं हैं कि कोरोना के मरीजों की संख्या में अचानक इजाफा होने से स्वास्थ्य विभाग के हाथ पैर फूल गए, लेकिन अस्पतालों की व्यवस्था को सही करना चाहिए, चूंकि बाकी मरीजों को बिना वजह से मरना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

दिल्ली का जनसंख्या के आधार पर राजधानी के सभी अस्पतालों में वेंटिलेटर की सामान्य तौर पर भी बहुत कम है, जिसके लिए केजरीवाल को कई बार अवगत कराया जा चुका बावजूद इसके कोई ध्यान नही दिया जा रहा है और ऐसे कठिन समय पर उनके मंत्री यह कह रहे हैं कि पर्याप्त बेड और वेंटिलेटर हैं। जब बात मानव जीवन पर हो तो राजनीति नहीं काम करना चाहिए। कोरोना काल में सबका ख्याल रखा जाना चाहिए।


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