हमारे देश में सफाई कामगार वर्ग सबसे हाशिए पर रहने वाला समुदाय है। करीब 98 प्रतिशत सफाई कामगार वाल्मीकि समुदाय से संबंध रखते हैं। इनके काम की स्थितियां इतनी खराब हैं कि इन्हें सबके लिए सफाई सुनिश्चित करने के बाबजूद खुद सबसे गंदे हालातों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इनकी जातियों के नाम तक को गाली समझा जाता है, किंतु यह समुदाय अपने को महर्षि वाल्मीकि का वंशज कहलाना पसंद करता है। इनका ज्यादातर काम शहरी इलाकों में ही है, क्योंकि गांव में तो बाहर खुले में शौच जाने का प्रचलन रहा है। शहरी इलाकों में जब फ्लश शौचालयों का प्रचलन नहीं था, तब शुष्क शौचालयों की सफाई का काम बहुत ही गंदगी भरा था। 1993 में कानून बनाकर शुष्क शौचालय बनाने और उसकी दस्ती (हाथ से) सफाई को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया, किंतु अब तक यह पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है। वर्ष 2013 में दस्ती मैला सफाई के लिए नियुक्ति पर प्रतिबंध लगा दिए गए, फिर भी 2018 में देश के 170 जिलों में 42,303 दस्ती मैला सफाई कामगार पाए गए। पूरे देश में सर्वे से ही पूरी स्थिति का पता चलेगा। ये आंकड़े ‘सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय आयोग’ के वार्षिक सर्वे से प्राप्त हुए हैं।
इस सर्वे रिपोर्ट में और भी कई चिंताजनक उद्घाटन हुए हैं। शुष्क शौचालयों पर प्रतिबंध के बाद आधुनिक सीवर व्यवस्था की सफाई भी हाथों से और सीवर में घुसकर करनी पड़ती है। सैप्टिक टैंक खाली करने का काम भी इसी तरह होता है। सीवर और सैप्टिक टैंक सफाई के दौरान इनमें बनी जहरीली गैसों के कारण अनेक कामगारों की मौत तक हो जाती है। अखबारों में भी कई बार इसके समाचार आते रहते हैं। 1993 से 2020 के बीच सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई और रख-रखाव में 928 मौतें हुई थीं। हालांकि 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इसकी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई। जाहिर है, असली आंकड़ा कहीं ज्यादा हो सकता है।
हैरानी और लापरवाही की बात है कि आज के तकनीकी युग में इन खतरनाक कामों के लिए सुरक्षा उपकरणों और मशीनीकरण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। उच्चत्तम न्यायालय द्वारा सीवर मृत्यु के मामलों में 10 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने के निर्देश दिए गए हैं, किंतु इसके हिसाब से 928 में से 575 मामलों में ही मुआवजा राशि दी गई है। इसके साथ ही पीड़ित परिवारों के एक व्यक्ति को नौकरी का भी आदेश पारित हुआ था, किन्तु क्योंकि अधिकांश कामगार ठेकेदारों द्वारा भर्ती किए गए होते हैं, इसलिए पीड़ितों को कोई लाभ नहीं मिल पाता। ठेकेदारी प्रथा में न्यूनत्तम वेतन व्यवस्था भी लागू नहीं हो पाती।
नगर-निकाय प्राथमिक नियोक्ता होने के कारण न्यूनतम मजदूरी भुगतान करवाने का जिम्मेदार होना चाहिए, किन्तु वह भी इस दिशा में कोई ध्यान नहीं देता है। आयोग ने तो 25 लाख रुपए के मुआवजे की अनुशंसा की है, किन्तु जमीनी क्रियान्वयन कितना होता है यह देखना अभी बाकी है। सफाई-कर्मियों को अधिकांश रोजगार नगर-निकायों में ही मिलता है, लेकिन उनके पास हमेशा बजट की कमी बनी रहती है। इसका खामियाजा सबसे निचले पायदान पर बैठे सफाई कामगारों को ही उठाना पड़ता है। नगर-निकायों में सफाई कामगारों के लिए अलग से निर्धारित राशि का प्रावधान होना चाहिए।
वाल्मीकि समुदाय के लिए वैकल्पिक व्यवसाय अपनाने की दिशा में पर्याप्त प्रशिक्षण व्यवस्था का अभाव है। हालांकि कुछ कार्यक्रम चल रहे हैं, किंतु उनका लाभ उठाने के रास्ते में कई कठिनाइयां हैं। इनमें शिक्षा का आभाव, स्वास्थ्य की बुरी हालत, नाम पर राजस्व भूमि दर्ज न होने के कारण स्थाई निवास प्रमाण पत्र न होना आदि कई समस्याएं हैं। शिक्षा में ज्यादातर प्राथमिक शिक्षा से आगे की पढाई नगण्य है।
स्वास्थ्य के मामले में इनके काम की स्थितियां इतनी चुनौती-पूर्ण हैं कि इनकी औसत आयु मात्र 32 वर्ष है। हिमाचल प्रदेश के एक अध्ययन में शिमला नगर निगम में 28 महीनों में 16 मौतें दर्ज हुर्इं, जिनमें हृदय रोग, कैंसर, गुर्दा खराबी आदि प्रमुख कारण पाए गए थे।
हिमाचल प्रदेश में 22 प्रतिशत वाल्मीकि कामगारों के पास घर बनाने के लिए थोड़ी-सी भूमि उपलब्ध है, 23 प्रतिशत के पास अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र नहीं हैं और 76 प्रतिशत के पास हिमाचल के स्थाई निवासी का प्रमाणपत्र नहीं है, जिसके अभाव में वे अपने पक्के मकान नहीं बना सकते। 22 प्रतिशत ही दैनिक वेतन-भोगी कर्मचारी हैं, शेष ठेकेदारों के माध्यम से काम करते हैं। रिहाइश की स्थितियां भी अत्यंत चिंताजनक हैं। 40 प्रतिशत एक कमरे में रहते हैं, 33 प्रतिशत के पास दो कमरे हैं, 20 प्रतिशत के पास रसोई नहीं है, रिहायशी कमरे में ही खाना भी बनता है।
जिस बदहाली में यह समाज रह रहा है, उसकी ओर न सिर्फ सरकार, बल्कि आम शहरियों को भी ध्यान देने और दबाव बनाने की जरूरत है। उनके काम को सम्मानजनक बनाने के लिए इसका पूरी तरह मशीनीकरण होना चाहिए, सुरक्षात्मक पहनावा, घर योग्य जमीन देकर गृह निर्माण में सहायता और सरकार द्वारा अनुसूचित वर्ग के लिए चलाई जा रही सहायता योजनाओं और सफाई कामगारों के लिए विशेष योजनाओं का लाभ दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
सफाई कर्मचारी आयोग को केंद्र सरकार के स्तर पर स्थायी बनाया जाना चाहिए और इनकी अनुशंसाओं को बाध्यकारी बनाकर लागू करने की मजबूत व्यवस्था की स्थापना होनी चाहिए, ताकि सफाई जैसी आवश्यक सेवा प्रदान करने वाले समुदाय को सम्मानजनक जीवन यापन प्राप्त हो सके और राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन जैसे जनहितकारी उपक्रमों को मजबूती मिल सके।