कोलेस्ट्राल की मात्रा सामान्य करने में सबसे महत्वपूर्ण है-आहार, विहार पर नियंत्रण होना। आहार में चर्बीयुक्त पदार्थ जैसे तेल, घी, मांसाहार, शराब, आलू, चावल इत्यादि का सेवन कम करें। विहार में मानसिक तनाव से बचें। हाइपर कोलेस्ट्राल के रूग्णों को अक्सर मोटापा अधिक रहता है अतएव उन्हें वजन पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है।
विज्ञान के नित-नए अविष्कारों ने इंसान को चकाचौंध कर दिया है। चिकित्सा जगत में तो अजूबे आविष्कार हुए हैं। अलग-अलग यंत्र, मशीनें, अनेक औषधियां और न जाने कितनी सुविधाएं पर फिर भी रोगों का तांडव कम नहीं हुआ है बल्कि अनेक व्याधियों ने इंसान को अपने पंजे में जकड़ रखा है।
हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटिज आज के संघर्षशील युग की देन हैं। इसके अलावा आज हमें हाइपर कोलेस्ट्राल के भी अधिकांश रोगी मिलते हैं। इसका कारण है हमारे आहार-विहार में विषमता क्योंकि हमें ऐशोआराम की जिंदगी पसंद है। हम श्रम से कतराते हैं। ऐसी जिंदगी का ही परिणाम है-हाइपर कोलेस्ट्राल।
हृदय रोग को बढ़ानेवाला यह कोलेस्ट्राल है जिसे नियंत्रण में रखना शरीर के लिए अत्यावश्यक है। इसकी अधिक मात्र हृदय व मस्तिष्क धमनियों को जितना नुकसान पहुंचाती है, वैसे ही इसकी प्राकृत मात्रा शरीर को स्वस्थ रखने में सक्षम रहती है।
कोलेस्ट्राल का अंतर्भाव लिपिड में होता है। ये लिपिड 5 प्रकार के होते हैं और मनुष्य शरीर के महत्त्वपूर्ण घटक हैं। सभी प्राणियों के कोषों में कोलेस्ट्राल होता है व अधिकांशत: यह नाड़ी संस्थान में रहता है। इसका स्राव पित्तरस में होता है व यकृतीय संवहन में यह सहभागी होता है। चिकित्सीय दृष्टि से इसका अत्यंत महत्व है। शरीर में निर्मित सभी प्रकार के स्टेराइड हॉर्मोन का भी आवश्यक अंग है।
लिपिड के एकत्रीकरण, संवहन, ट्रांसपोर्ट व उत्सर्जन में विकृति होने पर अनेक व्याधियां उत्पन्न होती हैं जैसे मोटापा, यकृत प्लीहा का बढ़ना, एथेरोस्क्लेरोसिस, अग्न्याशय में सूजन, पित्तामशरी इत्यादि। इन सब में एथोरोस्क्लेरोसिस सबसे महत्त्वपूर्ण है जो लिपिड के एकत्रीकरण से होता है।
धमनियों में कोलेस्ट्राल जमा होने से कड़कपन आ जाता है फलस्वरूप धमनियों का मार्ग संकरा हो जाता है जिससे धमनियों में स्थित रक्त हृदय, मस्तिष्क व शरीर के अन्य भागों में कम पहुंचता है। यह रुकावट हृदय की धमनियों में होने से छाती में दर्द (एन्जाइना) या कभी कभी हार्ट अटैक भी होता है। यह रुकावट नाड़ी वह संस्थान यानी मस्तिष्क में होने पर स्मरणशक्ति का नाश, मस्तिष्क के उच्चतम कार्यों में विकृति, लकवा व वृद्धावस्था में व्यवहार, स्वभावादि में अंतर आता है।
इसके अलावा अन्य अंगों की धमनियों में यह कोलेस्ट्राल जमा होकर गैंगरीन उत्पन्न करता है। इस कोलेस्ट्राल से लेरिक सिंड्रोम नामक व्याधि भी होती है जिसमें मुख्यत: पेट व पैरों की धमनी में रूकावट होती है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह के रोगी में कोलेस्ट्राल की मात्र बढ़ने से रक्तवाहिनी में जमा होने की आशंका ज्यादा रहती है, अत: उच्च रक्तचाप व मधुमेह रोगी को कोलेस्ट्राल निवारक आहार लेना आवश्यक है जिसमें सलाद, हरी सब्जी, अंकुरित आहार, फल, छाछ की प्रचुर मात्र हो।
कोलेस्ट्राल की मात्रा सामान्य करने में सबसे महत्वपूर्ण है-आहार, विहार पर नियंत्रण होना। आहार में चर्बीयुक्त पदार्थ जैसे तेल, घी, मांसाहार, शराब, आलू, चावल इत्यादि का सेवन कम करें। विहार में मानसिक तनाव से बचें। हाइपर कोलेस्ट्राल के रूग्णों को अक्सर मोटापा अधिक रहता है अतएव उन्हें वजन पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है।
कोलेस्ट्राल कम करने के लिए आयुर्वेद संहिताओं में मेदोहर औषधियां वर्णित है। इनमें मुख्यतया त्रिकटु, कुटकी, लहसुन, पुनर्नवा, विडंग इत्यादि चिकित्सक के परामशार्नुसार लेना चाहिए। इसके अलावा आरोग्यवर्धिनी व त्रिफला गुग्गुल 2 चम्मच सुबह शाम लेना चाहिए। साथ में मोटापा होने पर चिकित्सक के परामर्श अनुसार ही औषधि लेनी चाहिए।
हाइपर कोलेस्ट्राल के कारण अधिकतर हृदयगत धमनियां (कोरोनरी आर्टरीस) प्रभावित होती हैं, जिससे हृदयगत विकार जैसे छाती में दर्द (एन्जाइना) जैसी (व्याधियां) होती हैं। आधुनिक चिकित्सानुसार इसमें एंजियोप्लास्टी करके धमनियों में से कोलेस्ट्राल को साफ करते हैं परंतु फिर भी इन रूग्णों को सावधानियां रखनी पड़ती हैं जिससे फिर न एंजियोप्लास्टी करवानी पड़े।
आयुर्वेद शास्त्र में कोलेस्ट्राल को कम करने व धमनियों का संकरापन दूर करने के लिए अनेक औषधियां हैं जिससे एंजियोप्लास्टी करने की संभावना कम होती है। अतएव योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में मेदोहर व औषधि लेकर एंजियोप्लास्टी से बचा जा सकता है।
कोलेस्ट्राल कम करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में यह नुस्खा नियमित रूप से प्रयोग कर कोलेस्ट्राल से होने वाली हानियों से बचा जा सकता है। लेंडी पिपरी 100 ग्राम, दालचीनी 100 ग्रॉम को पीस कर एकत्र कर रखें। हर रोज सुबह लहसुन की दो कली, लेंडी पिपरी व दालचीनी का पाउडर आधा चम्मच, एक कप दूध, एक कप पानी को मिलाकर तब तक उबालें जब तक पानी उड़ न जाए। तत्पश्चात छान कर पिएं। इसके आधे घंटे बाद चाय पी सकते हैं।
कोलेस्ट्राल कम करने के लिए यह लाभकारी नुस्खा है। इसका नियमित प्रयोग एंजियोप्लास्टी से बचाता है।
जीएम ममतानी