नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। पितृ पक्ष शुरू हो चुके हैं। यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन माह की अमावस तक समाप्त होते हैं। इसलिए यह पूरे पंद्रह दिन पितृों को अर्पित हैं। इन दिनों पितरों की शांति के लिए तर्पण, पूजा अनुष्ठान आदि किए जाते हैं, मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है। इसी वजह से इन दिनों सभी लोग सच्चे मन से श्राद्ध कर्म करते हैं और तिथियों के अनुसार वे अपने पूर्वजों को तर्पण देते हैं और उनके निमित्त दान-पुण्य करते हैं।
तो चलिए जानते हैं यहां श्राद्ध के नियम…
- शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी गई है। पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त पूजा,तर्पण आदि किए जाने का विधान है।
- जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो उस दिन सूर्योदय से लेकर 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध-तर्पण आदि करें।
- श्राद्ध करने में दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश,तिल अनिवार्य तो है ही, तुलसीदल से भी पिंडदान करने से पितर पूर्णरूप से तृप्त होकर कर्ता को आशीर्वाद देते हैं।
- पितरों का क्षेत्र दक्षिण दिशा माना गया है इसलिए यह ध्यान रहे कि तर्पण करते समय कर्ता का मुख दक्षिण में ही रहे। तर्पण के समय अग्नि को पूजा स्थल के आग्नेय यानि दक्षिण-पूर्व में रखना शुभ होता है क्योंकि यह दिशा अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करती है।
- इस दिशा में अग्नि संबंधित कार्य करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है,रोग एवं क्लेश दूर होते है तथा घर में सुख-समृद्धि का निवास होता है।
- श्राद्ध भोज करवाते समय ब्राह्मण को अच्छा आसन देकर दक्षिण की ओर मुख करके बिठाना चाहिए,ऐसा करने से पितृ संतुष्ट होकर प्रसन्न होकर परिजनों पर को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।भोजन करवाने के साथ-साथ ब्राह्मण को दक्षिणा अवश्य दें।
- मान्यता है कि श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और अपनी पसंद का भोजन कर तृप्त हो जाते हैं। आप जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं जो उचित रहेगा। ध्यान रहे खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करे।