एक नदी किनारे एक महात्मा रहते थे। महात्मा का संबोधन उन्हें कब और कैसे मिला उन्हें खुद ये याद नहीं। एक दिन उनके पास एक महिला आई। वह महात्मा जी के चरणों मे गिरकर रोने लगी। महात्मा जी मैं पापिन हूं। मेरे पाप क्षमा करिये। मेरे पाप हरिये महात्मा जी। मै पापिन हूं। महात्मा जी चरणों में गिरी महिला को देखकर खुद को असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा आपने कोई पाप नही किया पुत्री। उठिए और घर जाएं। लेकिन महिला जार-जार रोती रही। महात्मा जी चाहते तो पूछ सकते थे कि क्या पाप किए पुत्री। लेकिन उनका बोध कहता था कि पश्चाताप में घिरे व्यक्ति से पाप पूछकर उसे हीन भावना में और नहीं धकेलना चाहिए। महात्मा जी ने भाव विह्वल होकर कहा, जिस नदी में डूब कर मरना चाहती हो, जाओ उस नदी में स्नान कर आओ। तुम्हारे पाप मुक्त हुए। महिला ने उस नदी में डुबकी लगाई और महात्मा जी के चरण स्पर्श कर अपने गंतव्य को रवाना हो गई। लेकिन उस रात महात्मा जी करवटें बदलते रहे। उनके शिष्य ने महात्मा जी से पूछा, आज आप बेचैन मालूम पड़ते हैं। क्या मैं बेचैनी की वजह पूछ सकता हूं? महात्मा जी बोले, धार्मिकता में अंधविश्वास फैलने का डर सबसे अधिक रहता है। वहीं से अंध धार्मिकता का उदय होता है। आज मैंने भी वही गलती कर दी। शिष्य विस्मित हुआ। महात्मन ऐसा तो कुछ नही किया आपने। किया बेटा, ये महिला पूरे गांव में कहेगी कि अमुक जगह स्नान करने से पाप मुक्ति मिलती है। मेरे निधन के बाद तो यहां स्नान होने लगेंगे। जबकि पाप तो पश्चाताप से कटते हैं। ताकि फिर पाप न करने का बोध विकसित हो। हो सकता है दिनों में ही लोग स्नान करने को आने लगें। नदी किनारे पवित्र पक्का घाट बन चुका था। पाप मुक्ति के लिए डुबकी लगाने लगातार लोग आ रहे थे।
-वीरेंद्र भाटिया