Saturday, July 27, 2024
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कैसा हो गर्भावस्था का आहार?

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पूनम दिनकर |

भारत गांवों का देश है। गांवों की महिलाओं को प्राय: इस बात का ज्ञान नहीं होता है कि उनके लिए संतुलित व संपूर्ण आहार क्या होता है? सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि गर्भकाल तथा स्तनपान कराने के दौरान मात्रा पांच प्रतिशत महिलाओं को ही संतुलित आहार नसीब होता है। इसके पीछे अज्ञानता, पारिवारिक पृष्ठभूमि, पारंपरिक रूढ़िवादी मान्यताएं व सामाजिक वर्जनाएं तो जिम्मेदा होती ही हैं।

स्त्री एवं प्रसव रोग विशेषज्ञों के अनुसार गर्भस्थ महिला को खानपान एवं संतुलित आहार पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है क्योंकि उसी के माध्यम से गर्भस्थ शिशुओं को पोषण मिलता है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्तनपान का भी सीधा प्रभाव नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

इस अवस्था में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन तथा विटामिन की आवश्यकता बढ़ जाती है क्योंकि मां सिर्फ अपने लिए ही भोजन न करके गर्भस्थ या दुग्धपान करने वाले शिशु के लिए भी आहार ग्रहण करती है। इस अवस्था में यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से मां का वजन न बढ़ने पाये। वजन-वृद्धि स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होती है।
गर्भकाल में आहार क्या हो और कैसा हो, इसकी जानकारी प्रत्येक महिला को अवश्य ही होनी चाहिए। यह बात एकदम भ्रामक है कि केवल ऊंचे दामों वाली खाद्य सामग्रियों में ही पौष्टिक तत्व विद्यमान होते हैं जबकि सच्चाई यह है कि हर खाद्य सामग्री में आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं।

गर्भावस्था के दौरान दूध तथा दूध से बने खाद्य-पदार्थ नाश्ता एवं भोजन के रूप में लेना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इनमें प्रोटीन तथा कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। इससे गर्भस्थ शिशु की हड्डी मजबूत होती है। प्रोटीन के लिए मांस, मछली, चीज तथा अंडे का नियमित सेवन भी आवश्यक है। ये मांसपेशियों तथा शारीरिक कोशिकाओं का निर्माण करते हैं। मस्तिष्क के तंतुओं के निर्माण में भी ये अहम् भूमिका निभाते हैं।

गेहूं, चावल, आलू, गुड़, चीनी आदि कार्बोहाइडेÑट वाली वस्तुओं का सेवन उतना ही करना चाहिए जितना शारीरिक ऊर्जा अर्थात् शक्ति को बनाये रखने के लिए जरूरी हो अन्यथा इनसे मोटापा बढ़ने की तीव्र संभावना रहती है। अधिक वसा तथा चबीर्युक्त भोजन से भी मोटापा बढ़ता है, साथ ही कई तरह की जटिलताएं व परेशानियां होने की संभावनाएं भी बनी रहती है।

शाकाहारी महिलाओं को हरी सब्जी तथा सलाद का नियमित सेवन आवश्यक है। हरी सब्जी को थोड़ा उबालकर गरम-गरम खाने से अधिक लाभ होता है। ताजा फल नियमित रूप से लेना चाहिए। नारंगी, नाशपाती, टमाटर, केला, सेब, नींबू आदि में पर्याप्त विटामिन ह्णसीह्य पाया जाता है। विटामिन ह्णसीह्य तथा ह्णबीह्य का मुख्य कार्य त्वचा तथा मसूड़ो को स्वस्थ तथा मजबूत रखना होता है।

गर्भवती को डॉक्टरी सलाह पर आयरन, फालिक एसिड तथा विटामिन की गोलियां भी लेते रहना चाहिए। इस दौरान मिठाइयां, चॉकलेट, ग्लूकोस, जैम, शहद, केक, पेस्ट्रीज, बिस्कुट, ब्रेड आदि से परहेज करना चाहिए क्योंकि इनसे मोटापे में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त आइसक्र ीम, जैली, शीतलपेय, काजू, किशमिश, अखरोट, डिब्बाबंद फलों के रस के सेवन से भी गर्भवती को परहेज करना चाहिए।

गर्भकाल में अंगूर, अनार, पपीता, लीची, सेब, मौसमी, नारंगी आदि का सेवन लाभदायक होता है। गर्भकाल में कब्ज की शिकायत से बचने के लिए एक गिलास गुनगुना पानी नित्यप्रति प्रात: काल नियमित रूप से पीते रहना चाहिए। दिन में भोजन नियमित समय पर लेने के बाद दो घंटे विश्राम भी करना चाहिए।

जी मिचलाने की समस्या आने पर सुबह चाय या काफी के साथ एक-दो बिस्कुट खाने के बाद ही बिस्तर छोड?ा चाहिए। खाली पेट कभी नहीं रहना चाहिए। बिस्तर छोड़ने के बाद ताजे पानी में नींबू का रस, चुटकी भर नमक तथा काली मिर्च का पाउडर डालकर पी लेना चाहिए। इससे मिचली नहीं होने पाती। रात में गुलकंद का मुरब्बा खाने से कब्ज की शिकायत नहीं रहती। पानी भरपूर मात्रा में पीते रहना आवश्यक है।

गर्भावस्था में पैरों की सूजन, हाई ब्लड-प्रेशर आदि की शिकायत होते ही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। गर्भ के अंतिम समय में फलों के रस की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। गर्भकाल में अनार के लाल दानों का सेवन स्वस्थ एवं गोरे शिशु को जन्म देने वाला होता है।


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