नैक्ट्रिन एक विदेशी फल है। जिसकी खेती अब भारत में होने लगी है। इसका फल सेब की तरह लाल दिखाई देता है। और इसके फलों का स्वाद आडू और प्लम के जैसा होता है। भारत में इसकी खेती शीत प्रदेशों में की जा रही है। इसके फलों को ताजा खाना अच्छा होता है।
इसके फलों में कई तरह के पौषक तत्व पाए जाते हैं। जो मानव शरीर के लिए काफी अच्छे होते हैं। इसके फलों का इस्तेमाल खाने के अलावा जैम, जैली, जूस और सुखाकर डिब्बा बंदी के रूप में लिए जाता है। इसके पौधे सामान्य रूप से 20 फिट तक की ऊंचाई के पाए जाते हैं।
नैक्ट्रिन की खेती शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु में की जा सकती है। इसके फलों के पकने के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। वैसे इसके पौधे सामान्य मौसम में अच्छे से विकास करते हैं। इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत नही होती। इसकी खेती के लिए 800 से 1600 मीटर की ऊँचाई वाले स्थान सबसे उपयुक्त होते हैं।
उपयुक्त मिट्टी
नैक्ट्रिन की खेती वैसे तो किसी भी तरह की भूमि में की जा सकती हैं। लेकिन पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए इसे उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में उगाना अधिक लाभदायक होता है। जलभराव वाली भूमि में उचित जल निकासी कर भी इन्हें उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य के आसपास होना चाहिए।
जलवायु और तापमान
नैक्ट्रिन की खेती के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी खेती ठंडे प्रदेशों के अलावा वहां भी की जा सकती है, जहां गर्मियों में मौसम अधिक गर्म ना होता हो और सर्दियों में अधिक समय तक ठंड बनी रहती हो। इसके पौधों को सर्दियों में अधिक ठंड की जरूरत होती है।
लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए नुकसानदायक होता है। इसकी खेती के दौरान बारिश और ऊंचाई का खास ध्यान रखा जाता है। फूल खिलने और फल बनने के दौरान होने वाली बारिश इसकी खेती के अच्छी नही होती।
इसके पौधों को शुरूआत में विकास करने के लिए सामान्य ( 20 से 25 के बीच) तापमान की जरूरत होती है। पौधों के विकसित होने के बाद इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 10 और गर्मियों में अधिकतम 28 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं।
उन्नत किस्में
नैक्ट्रिन की काफी उन्नत किस्में हैं। जिन्हें अधिक उत्पादन लेने के लिए मौसम के आधार पर उगाया जाता है। भारत में अभी इसकी कुछ किस्मों को उगाया जा रहा है। जिनमें क्टारेड, स्नोक्वीन, सनग्रांड, सनलाइट, चरोकी, अन्नाक्वीन, लेट ले ग्रांड, सनराइज और सनराइप जैसी बहुत सारी किस्में हैं। इसकी काफी किस्में ऐसी हैं जिन्हें अंदर गुठली नही पाई जाती। बिना गुठली वाली किस्मों के पौधों का उत्पादन ज्यादा पाया जाता है। और इसके फलों को ताजा रूप में खाना ज्यादा अच्छा होता है। और जिन किस्मों के फलों में गुठली पाई जाती हैं, उन किस्मों के फलों को सुखाकर उनका भंडारण अच्छे से किया जा सकता है।
खेत की तैयारी
नैक्ट्रिन के पौधों को एक बार लगाने के बाद कई साल तक पैदावार देते हैं। इसलिए खेत की शुरूआत में अच्छे से तैयारी करनी होती है। इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी के दौरान शुरूआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें। उसके बाद खेत को कुछ दिन खुला छोड़ दें।
खेत को खुला छोड़ने के कुछ दिन बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दें। उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद ढेलों की नष्ट कर दें। ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगे। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना दें। ताकि बाद बारिश के मौसम में खेत के जलभराव जैसी समस्याओं का सामना ना करना पड़े।
नैक्ट्रिन के पौधों की रोपाई खेत में गड्डे तैयार कर की जाती हैं। इसलिए भूमि को समतल करने के बाद खेत में उचित दूरी रखते हुए लाइन में इसके गड्डे तैयार किये जाते हैं। इसके गड्डों को तैयार करने के दौरान प्रत्येक गड्डों के बीच 20 फिट की दूरी रखनी चाहिए। और प्रत्येक लाइनों के बीच भी 18 से 20 फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए। इसके गड्डे तैयार करने के दौरान प्रत्येक गड्डों की चौड़ाई दो से ढाई फिट और गहराई डेढ़ फिट के आसपास होनी चाहिये। इन गड्डों को पौधे रोपाई से लगभग एक से दो महीने पहले तैयार किया जाता है।
पौध तैयार करना
नैक्ट्रिन के पौधे नर्सरी में कलम और बीज दोनों के माध्यम से तैयार किये जाते हैं। बीज के माध्यम से तैयार पौधे काफी समय बाद पैदावार देना शुरू करते हैं। इसलिए इसकी पौध कलम के माध्यम से ही तैयार की जाती है। कलम के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए ग्राफ्टिंग और चश्मा विधि का इस्तेमाल किया जाता है।
कलम के माध्यम से तैयार पौधे रोपाई के लगभग तीन से चार साल बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते हैं। नर्सरी में कलम के माध्यम से इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल पहले तैयार किये जाते हैं।
नैक्ट्रिन के पौधों की रोपाई सामान्य तौर पर किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन पैदावार के तौर पर खेती करने के दौरान इसके पौधों की रोपाई बसंत ऋतू में करना सबसे उत्तम होता है। इसके अलावा मध्य दिसम्बर से मध्य फरवरी में भी इसके पौधों की रोपाई आसानी से की जा सकती है।
पौधों की सिंचाई
नैक्ट्रिन के पौधों को पानी की सामान्य जरूरत होती है। गर्मी के मौसम में शुरूआत में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। जबकि सर्दियों के मौसम में पौधों को महीने भर बाद पानी देना चाहिए। बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती है। लेकिन बारिश वक्त पर ना हो और पौधों में पानी की कमी दिखाई देने लगे तो पौधों की समय रहते सिंचाई कर देनी चाहिए। ताकि पौधे अच्छे से विकास कर सके।
उर्वरक की मात्रा
नैक्ट्रिन के पौधों में उर्वरक की सामान्य जरूरत होती हैं। जिससे पौधे और फल अच्छे से विकास कर सके। शुरूआत में इसके पौधों की रोपाई से पहले गड्डों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्डों में लगभग 10 से 12 किलो जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलकर देना चाहिए।
इसकी खेती के लिए जैविक खाद का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है। लेकिन जो किसान भाई जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं वो शुरूआत में 50 ग्राम रासायनिक खाद के रूप में एन।पी।के। की मात्रा को डालकर मिट्टी में मिला दें।
पौधों की देखभाल
नैक्ट्रिन के पौधों की अच्छे से देखभाल कर उनसे अधिक मात्रा में उत्पादन हासिल किया जा सकता है। इसके लिए इसके पौधों को देखभाल की जरूरत उनकी रोपाई के बाद से ही होती हैं। इसके पौधों की रोपाई करने के बाद जब पौधा विकास करने लगे तब पौधे के तने पर एक मीटर तक की ऊंचाई पर किसी भी तरह की कोई शाखा को जन्म ना लेने दें। इससे पौधे का तना मजबूत बनता है, और पौधे का आकार भी अच्छा दिखाई देता है।
खरपतवार नियंत्रण
नैक्ट्रिन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाना चाहिए। प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के दौरान इसके पौधों की रोपाई के लगभग एक महीने बाद पौधों की जड़ों में दिखाई देने वाली खरपतवार को निकाल दें और पौधों की गुड़ाई कर दें। उसके बाद लगभग दो से तीन महीने के अंतराल में पौधों के पास दिखाई देने वाली खरपतवारों को निकाल देना चाहिए।
नैक्ट्रिन के पौधों में फल बहुत अधिक मात्रा में आते हैं, जिससे सभी फलों का विकास अच्छे से नही हो पाता है। इस कारण इसके फलों की छटाई की जाती है। इसके फलों की छटाई अप्रैल या मई माह के शुरूआत में पौधे पर फल लगने शुरू होने के बाद करनी चाहिए।
फलों की छटाई के दौरान इसके अच्छे से विकास कर रहे हल्के बड़े फलों को छोड़कर कमजोर फलों हटा देना चाहिए। इससे पौधे की शाखाएं अधिक वजन ना होने की वजह से टूटने से बच जाती हैं। और फलों की गुणवत्ता अच्छी मिलती है। जिनका बाजार भाव किसान भाइयों को अच्छा मिलता है।