जैविक खाद गोबर से बना सकते हैं। किसान अगर अपने पौधे को बढ़ाने के मकसद से मिट्टी में जैविक तत्व या पोषक तत्व मिलाता है, तो उसे फायदा होगा। कम्पोस्ट बनाना न सिर्फ आसान है बल्कि खर्च भी बहुत कम पड़ता है। गोबर की खाद में वनस्पति और पशुओं के अपशिष्ट का इस्तेमाल वनस्पतियों के पोषक तत्व के स्त्रोत की तरह किया जाता है। इन अपशिष्ट के अपघटन या सड़ने के बाद वो पोषक तत्व का रिसाव करते हैं। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जानवर, आदमी और सब्जियों के अपशिष्ट के संकलन और इस्तेमाल की कला उतनी ही पुरानी है जितनी की कृषि। गोवर की खाद या मैन्योर जानवर, आदमी और पौधों के अवशेष से प्राप्त जैविक तत्व हैं जिसमें पौधों के पोषक तत्व जटिल जैविक रूप में मौजूद होते हैं।
भारी जैविक खाद
भारी जैविक खाद में पोषक तत्वों का प्रतिशत कम होता है और इनका इस्तेमाल अधिक मात्रा में किया जाता है। फार्म की खाद, कम्पोस्ट और हरी-खाद ज्यादा महत्वपूर्ण और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किये जाने वाले भारी जैविक खाद हैं। इस्तेमाल करने पर भारी जैविक खाद के कई फायदे हैं। ये पौधे को पोषक और सूक्ष्म पोषक तत्व पहुंचाते हैं।
फार्म की खाद
फार्म की खाद जानवरों के गोबर और मूत्र के साथ भूसे के ढेर और मवेशियों के चारे का अपघटित मिश्रण होता है। फार्म की खाद को बनाने का किसानों के मौजूदा तरीके में कमी है। मूत्र जो कि बर्बाद कर दिया जाता है उसमें एक फीसदी नाइट्रोजन और पोटेशियम की 1.35 फीसदी मात्रा पाई जाती है। मूत्र में मौजूद नाइट्रोजन अधिकांशत: यूरिया के रूप में होता है जो कि वाष्प के तौर पर खत्म होने वाला रहता है। यहां तक भंडारण के वक्त भी, निक्षालन और वाष्पीकरण की वजह से पोषक तत्व खत्म हो जाता है। हालांकि, यह व्यवहार के तौर पर ऐसे नुकसान को एक साथ रोक पाना असंभव है, लेकिन इसमे कमी जरूर लाई जा सकती है। इसके लिए फार्म की खाद को बनाने के लिए कुछ विकसित तरीके अपनाने होंगे।
भेड़ और बकरियों की खाद
भेड़ और बकरियों की लीद में फार्म की खाद या कम्पोष्ट के मुकाबले पोषक तत्व की उच्च मात्रा पाई जाती है। एक अंदाज के मुताबिक, खाद में तीन फीसदी नाइट्रोजन, एक फीसदी फोस्फोरस पेंटोक्साइड और दो फीसदी पोटैशियम आॅक्साइड पाया जाता है। इनका खेत में दो तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। अपघटन के लिए भेड़ और बकरियों की सफाई के लिए शेड गड्ढे में रखे जाते हैं और बाद में इसका इस्तेमाल खेतों में किया जाता है। इस तरीके से मूत्र में मौजूद पोषक तत्व बर्बाद हो जाता है। दूसरी पद्धति में, भेड़ों और बकरियों को रातभर खेत में बांध कर रखा जाता है और उसके मूत्र और मल को मिट्टी में मिला दिया जाता है। इसके लिए खेत में एक छोटा सा गड्ढा कर दिया जाता है।
कुक्कुट खाद
पक्षियों का मल-मूत्र बहुत जल्दी उफनता है यानी खमीर बन जाता है। अगर यह खुला रह गया तो 30 दिन के भीतर इसका 50 फीसदी नाइट्रोजन बर्बाद हो जाता है। कुक्कुट खाद में दूसरे भारी जैविक खाद के मुकाबले भारी मात्रा में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस पाया जाता है। इसके पोषक तत्व में नाइट्रोजन 3.03 फीसदी, फोस्फोरस पेंटोक्साइड 2.63 फीसदी, पोटैशियम आॅक्साइड 1.4 फीसदी की औसत मात्रा पाई जाती है।
खली खाद
तिलहन से तेल निकालने के बाद, बचा हुआ ठोस हिस्सा केक की तरह सूखा होता है, उसका इस्तेमाल खाद की तरह किया जा सकता है। खली दो तरह के होते हैं-
-खानेवाले तेल की खली को सुरक्षित तरीके से पशुओं के खिलाया जा सकता है, जैसे कि, मूंगफली की खली, नारियल की खली आदि।
-गैर खानेवाले तेल की खली जो कि मवेशियों के चारे के लिए सुरक्षित नहीं होता है, जैसे कि अरंडी की खली, नीम की खली, महुआ की खली आदि।
खाने वाले और गैर खानेवाले दोनों ही तरह की खलियों का इस्तेमाल खाद की तरह हो सकता है। हालांकि, खानेवाली खलियों को मवेशियों को खाने के लिए और गैर खानेवाली खली का इस्तेमाल खाद की तरह खासकर बागवानी की फसलों के लिए किया जाता है। धातु के रूप में बदलने के बाद खली में पोषक तत्व मौजूद रहते हैं और इन्हें 7 से 10 दिनों के बाद फसलों में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध करा दिया जाता है। जल्दी से अपघटन और बराबर वितरण के लिए इन खलियों को पाउडर की तरह चूर कर तैयार कर लेना चाहिए और उसके बाद उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
कम्पोस्ट बनाना
कम्पोस्ट बनाना एक तकनीक या प्रक्रिया है जिसमे प्राकृतिक अपघटन या गलने की प्रक्रिया को तेज कर दिया जाता है। यह तकनीक जैविक अवशेष को गीली घास में तब्दील कर देता है जिसका इस्तेमाल मिट्टी को उपजाऊ और अच्छी हालत में लाने के लिए किया जाता है। पत्तियों का अवशेष प्राकृतिक तौर पर दो साल में अपघटित हो जाता है। मानवीय नियंत्रण को देखते हुए कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया एक साल से लेकर मात्र 14 दिन तक भी चल सकती है।
जैविक कम्पोस्ट निर्माण में लगने वाली सामग्री
आंगन या बाड़े की अधिकांश अवशिष्ट का इस्तेमाल जैविक कम्पोस्ट बनाने के लिए किया जा सकता है जिसमे पत्तियां, घास की कतरनें, पौधों की डालियां आदि ले सकते हैं।