Friday, June 6, 2025
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ऐसे कैसे चलेगी रेल की गाड़ी?


देश की अहम संचालन प्रक्रिया रेल मानी जाती है, जिस पर आज तक कोई सरकार उतना काम नहीं कर पाई जितना होना चाहिए।बीते दिनों रेल मंत्री अश्विनी वैष्णनव रेल ने 16 नवंबर को रेल भवन में संवाददाताओं से कहा कि चार-पांच साल में हमें 1000 करोड़ यात्रियों को सफर कराने की क्षमता विकसित करनी होगी, क्योंकि जनसंख्यो बढ़ रही है। इसके लिए हमें 3000 अतिरिक्त ट्रेनों की जरूरत पड़ेगी लेकिन मंत्री जी इस ब्यान के बाद लोग या तो गुस्से में नजर आए या फिर हंसते हुए, क्योंकि बीते 6 वर्षों में सरकार केवल 2132 इंजन बढ़ा पाई है। खबरों के अनुसार रेलवे ऐसा प्लान बना रहा है कि अगले लगभग पांच वर्षों में साल में वेटिंग टिकट की समस्याा खत्म हो जाएगी। रेलवे आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष में रेल कोचों की संख्या मात्र 5000 ही बढ़ पाई है। यदि अगर इंजन और कोच बनने की यही रफ्तार रही तो चार-पांच साल में 3000 नई ट्रेनें किसी भी स्थिति में संभव नहीं।

दरअसल सरकार कभी भी तथ्यात्मक बातों को भी सामने नहीं आने देती, क्योंकि यदि आप युद्ध स्तर पर भी रेल का निर्माण कर भी दिया जाए तो पटरी की व्यवस्था कैसे होगी? हमारी पटरी बनाने की गति रेल बनाने के हिसाब से भी बहुत धीमी है। हमारे देश में 1980-81 में कुल 75,860 किलोमीटर लंबा रेल ट्रैक था और 2016-17 में यह 94000 किलोमीटर हुआ। थोडा और विस्तार किया गया तो 2021-22 में 102900 किलोमीटर पर पहुंचा। इस हिसाब से बीते पांच वर्षों में मात्र 9000 किलोमीटर का विस्तार हुआ। और यदि आगे भी पटरी बिछाने की स्थिति के हिसाब से भी 3000 नई गाड़ियों के लिहाज से यह काफी नहींं होगा। सरकार काफी समय से बुलेट ट्रेन की चर्चा बहुत जोरों पर थी, लेकिन बावजूद इसके इसमें भी देरी हुई। ज्ञात हो कि 14 सितंबर 2017 में भारत और जापान के प्रधानमंत्रियों ने मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना का शिलान्यास किया था। और इसे दिसंबर 2023 तक पूरा करना है। लेकिन, जून 2023 तक जमीन अधिग्रहण का पूरा काम भी नहींं हो पाया था। इसके अलावा 15 अगस्त 2021 को लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी आने वाले डेढ़ साल में 75 वंदे भारत ट्रेनें देश के हर कोने को आपस में जोड़ेंगी लेकिन अब तक केवल 34 वंदे भारत ट्रेनें ही संचालित हुई हैं।

बहरहाल, ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं, जो अभी भी वादे के मुताबिक पूरे नहीं हो पा रहे, जिससे देश की गति प्रभावित हो रही है। सरकार को जनता से जुडे बुनियादी मुद्दों पर तो काम करना चाहिए। जिस स्तर पर हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है, उस स्तर पर हम समय के अपडेट व अपग्रेड होते जा रहे हैं। स्थिति पर काबू पाने के लिए या तो जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएं या फिर समय के साथ चीजें पूरी की जाएं अन्यथा अव्यव्स्था फैलती रहेगी और आमजन को परेशानी का सामना और अधिक करना पड़ सकता है।

यदि सुरक्षा के लिहाज से भी बात करें तो भी स्थिति बेहतर नहीं मानी जाती। इस साधन को आम से लेकर खास प्रयोग करता है, वैसे तो इस साधन हर समय अहम माना जाता है, लेकिन त्योहारों पर इसका उपयोग बढ़ जाता है। लोगों को अपने शहर व गांव जाना होता है। लेकिन तकलीफ तब होती है जब सरकार ऐसे मौके पर भी यात्रियों की सुरक्षा नहीं दे पाती। हर बार त्योहारों पर अधिक भीड़ होने से लोगों की जाने जाती रहती हैं और यह कभी-कभार नहीं हर बार होता है। दिवाली के बाद छठ पूजा के चलते पूर्वांचल और बिहार की तरफ जाने वाली ट्रेनों में यात्रियों की भीड़ बहुत अधिक थी। बीते बृहस्पतिवार को अवध असम एक्सप्रेस में पत्नी के साथ स्लीपर कोच में सवार असम जा रहे युवक को अधिक भीड़ होने के कारण सांस लेने में दिक्कत हो गई और ट्रेन के हापुड़ पहुंचने से पहले ही युवक ने दम तोड़ दिया। रेल प्रशासन व किसी से उपचार व मदद न मिलने की वजह से युवक ने अपनी जान गंवा दी। मृतक की पत्नी ने बताया कि उनके पति ललित को सांस की दिक्कत थी। कोच में अधिक भीड़ बढ़ जाने के कारण उनको अधिक परेशानी होने लगी। ट्रेन के दिल्ली स्टेशन से निकलने के बाद सांस लेने में दिक्कत के साथ सीने में दर्द होना शुरू हो गया। इसके बाद दर्द बढ़ता गया जिसके कारण ललित बेहोश होकर गिर गया। इसकी सूचना रेलवे कंट्रोल रूम को दी गई लेकिन मौके पर कोई मदद नहीं मिली और इसके बाद हापुड़ स्टेशन पहुंचने पर जीआरपी ने ललित कुमार को उतारकर अस्पताल पहुंचा जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

इस घटना से एक बार फिर यह तय हो जाता है कि अव्यवस्था के चलते एक इंसान की बलि चढ़ गई। ऐसे घटनाक्रम देशभर में कई जगह होते हैं, लेकिन न जाने क्यों प्रशासन जागने व समझने को तैयार नहीं है। हर बार रेल का बजट बढ़ाया जाता है और इसको अपडेट व अपग्रेड होने की बात कही जाती है। इसके अलावा तमाम तरह की रेलों की निर्माण व संचालन जारी है, लेकिन ऐसे तरक्की का क्या फायदा जिससे हर बार मौतों का तांडव होता रहे। रेलवे आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर दिन 12 करोड़ से ज्यादा लोग ट्रेन से सफर करते हैं। ये 12 करोड़ यात्री हर दिन 14000 ट्रेनों की सवारी करते हैं। रेल सुरक्षा में सुधार के लिए सरकारी प्रयासों के बावजूद भी भारत के रेलवे में हर साल कई सौ दुर्घटनाएं होती हैं। ज्यादातर मामलों में पुराने सिग्नलिंग उपकरण का इस्तेमाल बताया जाता है। इस ही वर्ष 3 जून को कोरोमंडल एक्सप्रेस में बड़ा हादसा हुआ था जिसमें में करीब 238 लोगों की जान चली गई थी और इस तरह के हादसे होते रहते हैं।


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