Friday, December 13, 2024
- Advertisement -

मैं तेंदुआ हूं…यहीं हूं, कहीं गया नहीं हूं!

  • वन अफसरों की तरह अपनी मांद में मुंह दबाए है तेंदुआ आॅपरेशन वेंटीलेटर पर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ/किठौर: हां मुझे फख्र है मैं तेंदुआ हूं। मुझे अहसास है अपनी जिम्मेदारियों का इसलिए पूरे परिवार को साथ लेकर चल रहा हूं। मेहनत से शिकार तलाशता हूं फिर आराम से खाता और खिलाता हूं। दृढ़ निश्चयी व स्वच्छंद हूं अपने कर्तव्य में मुझे किसी आदेश की जरूरत नहीं! परिवार भी मेरे प्रति पूरा वफादार है।

किसी भी हाल में जरा से इशारे पर मेरे साथ मीलों का सफर कर देता है। दृढ़ संकल्प, कर्तव्य निष्ठा और परिवार के प्रति वफादारी मेरे शस्त्र हैं यही मुझे और परिवार को विशेषज्ञों तक की गिरफ्त से बचाए हुए हैं।

मैं तेंदुआ हैरान हूं! वनकर्मियों और विशेषज्ञों की कार्यशैली देखकर क्योंकि सर्तकता किसी भी आॅपरेशन का मूलभूत तत्व है। इनके आॅपरेशन में सर्तकता दूर तक नजर नही आती। अफसरों से मातहत तक ये लोग पिंजरे और मेरी लोकेशन से दूर रहने को सर्तकता समझ बैठे हैं।

मेरी जरा सी आहट पर पूरी की पूरी टीम पीछे हटती नजर आती है। जब इन्हें खुद पर ही भरोसा नही कि ये मुझे पकड़ पाएंगे। फिर मैं कैसे विश्वास करुं कि अगर मैं इनके पिंजरे में जाकर खुद को बंद भी कर लूं तो यह मुझे खाना पानी देकर सुरक्षित रख पाएंगे। इनके आॅपरेशन की शुरुआत में ही मुझे धोखा नजर आ गया था।

पूरी फौज लगी थी वनकर्मियों की मेरे पहले ठिकाने के पास। एक मेमना पिंजरे में बंद कर मुझे फंसाने का प्रयास किया गया। मैं पिंजरे में घुसा तो देखा कि पिंजरे में मेरे और मेमने के दरमियान एक और दीवार खड़ी थी। मेरे पिंजरें में घुसते ही घेरे खड़े मातहतों ने अफसरों को फोन घनघनाने शुरु कर दिए।

शुक्र है कि वनकर्मियों के आलस्य के जंग ने पिंजरे के शटर को रोके रखा वरना मैं गिरफ्त में आ जाता। घर वापसी में देरी पर परिवार का दूसरा सदस्य भी तलाशता हुआ पिंजरें के पास पहुंचा। रात में हम पिंजरे के ऊपर भी कूदे। सुबह तक वहीं डटे भी, लेकिन मजाल किसी वनकर्मी की कर्तव्यनिष्ठा जागी हो।

दृढ़ संकल्प के साथ कोई हमारी थली के आसपास तक नहीं पहुंचा। वनकर्मियों का जाल देखकर तो हमें अपनी ताकत पर भी शक होता था। कि जीर्ण-शीर्ण जाल हमें फंसा लेगा। ग्रामींणों की भीड़ से हम जरूर खौफ खाए थे। इसलिए ठिकाना बदलकर दो किमी आगे जा ठहरे।

यहां का पता लगते ही वनाधिकारियों ने वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों को बुला लिया। उन्होंने भी दूसरा और तीसरा पिंजरा हमारे स्वागत में कुत्तों और मुर्गों से सजाकर लगाया, लेकिन आलस्य का जंग उन पिंजरों पर भी साफ दिखा। इसलिए हम दोनों पिंजरों के पास दो बार जाकर लौट गए।

हमने प्रण लिया कि यहीं रहेंगे। वन अफसरों की तरह अपनी मांद में मुंह दबाकर। सुना है अब वनाधिकारी खाली पिंजरों के पास रोजाना चक्कर लगा रहे हैं। आलम ये है कि आॅपरेशन तेंदुआ वेंटीलेंटर पर है और यही स्थिति रही तो जल्द ही दम तोड़ जाएगा।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

spot_imgspot_img