Saturday, July 27, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादसेना और अदालत के शिकार हुए इमरान खान

सेना और अदालत के शिकार हुए इमरान खान

- Advertisement -

Nazariya


03 14पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की हुई सजा और गिरफ्तारी के दुष्परिणाम समझने के लिए सेना की भूमिका समझनी होगी। सेना और कोर्ट की जुगलबंदी को समझना होगा। पहले तख्तापलट से सेना राजनीतिक नेतृत्व को कुचलती थी और फांसी पर चढाती थी। लेकिन अब कोर्ट को माध्यम बना कर राजनीतिक नेतृत्व का सेना दमन करती है। न्यायिक फैसलों से लोकतंत्र को कुचलने के लिए नीति सेना की बहुत खतरनाक है। पाकिस्तान में असली सत्ता सेना के पास होती है, चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार भी सेना की गुलाम होती है, न्यायपालिका भी गुलाम होती है, सेना ही तय करती है आंतरिक नीति और विदेश नीति, सुरक्षा नीति। चुनी हुई सरकार तो सिर्फ मोहरा होती है।

सेना की इच्छा की अवहेलना करने वाले लोकतात्रिक शासकों की स्थिति और दुष्परिणाम बहुत ही लोमहर्षक होता है, खतरनाक होता है और बेमौत मरने जैसा होता था। जुल्फिकार अली भुट्टो ने सेना की अवहेलना की थी। क्या हुआ दुष्परिणाम? जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट हो गया। जियाउल हक सीधे तौर पर तानाशाह बन गए। न्यायपालिका गुलाम बन गई। जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी हो गई। नवाज शरीफ ने भी अपने आप को सेना का बॉस समझ लिया था। सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ को हटाने की कोशिश की थी। परवेज मुशर्रफ ने तख्ता पलट दिया और खुद शासक बन गया। नवाज शरीफ को जेल में डाल दिया गया। सऊदी अरब के हस्तक्षेप से नवाज शरीफ की जान बची थी। फांसी पर चढ़ने से बचे थे। लेकिन सऊदी अरब में निर्वासित जिंदगी जीने के लिए विवश हुए थे। बेनजीर भुट्टो को सरेआम गोलियां मार दी गर्इं। आरोप सेना पर ही लगा। एक बार फिर नवाज शरीफ की पाकिस्तान की राजनीति में प्रवेश जरूर हुआ, पर सेना द्वारा प्रपंच में उनकी हैसियत और छवि डूब गई। सेना की इच्छा की पूर्ति न्यायपालिका की कसौटी पर हो गई। नवाज शरीफ को सजा हुई और वे राजनीति के अयोग्य करार घोषित कर दिए गए।

इमरान खान भी सेना की ही पैदाइश हैं। कभी सेना ने ही उन्हें अपना हथकंडा बनाया था। सेना की समझ थी कि इमरान खान उनका पालतू बना रहेगा। इस तरह पाकिस्तान की आंतरिक और वाह्य नीतियों पर भी सेना की ही इच्छा और कब्जा रहेगा। इसी कारण चुनावों में धांधली कर इमरान खान को जिताया गया और प्रधानमंत्री बनवाया गया। प्रारंभ में इमरान खान ने सेना की हर स्थितियां-परिस्थितियां अनुकूल बनार्इं। लेकिन सेना और इमरान खान के बीच में परिस्थिति प्रतिकूल होने के दो कारण प्रमुख रहे। एक बडा कारण नरेंद्र मोदी हैं और दूसरा कारण सेना के आतंरिक प्रबंधन में हस्तक्षेप है। नरेंद्र मोदी ने कश्मीर से धारा 370 हटा कर पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया था और पाकिस्तान की पूरी हेकड़ी तोड़ डाली थी। पाकिस्तान की सेना चाहती थी कि इमरान खान अमेरिका को मैनेज करे और पूरे विश्व को भारत के खिलाफ खड़ा कर दे। भारत से युद्ध की भी संभावना तलाशी जाए। लेकिन इमरान खान पूरी कोशिश करने के बाद भी न तो अमेरिका को अपनी ओर झुका सके और न ही शेष दुनिया को भारत विरोधी बना सके।

अफगानिस्तान को लेकर सेना और इमरान खान में मतभेद थे। सरकार के दिन-प्रतिदिन के काम में सेना का हस्तक्षेप खतरनाक ढंग से बढ़ा हुआ था। इस कारण इमरान खान सेना से नाराज थे। वे चाहते थे कि सेना के शीर्ष पद पर बैठने का फैसला हम करें। ऐसे भी इस प्रसंग में इमरान खान की सोच गैर जरूरी या गलत नहीं थी। चुनी हुई सरकार के अंदर ही सेना कार्य करती है। पाकिस्तान के लोकतांत्रिक संविधान में भी इस तरह का प्रावधान है। खासकर सेना अध्यक्ष और आईएसआई की कुर्सी पर बैठने वाले लोगों का भाग्य तय करने का अधिकार इमरान खान को था। इमरान खान ने इसके लिए प्रयास भी किए। उन्होंने आईएसआई और सेनाध्यक्ष को बदलने की कोशिश की थी। सेना को यह कैसे सहन हो सकता था कि उनकी बिल्ली ही उन्हें म्याउं…म्याउं बोले और आंख तरेरे। सेना के इसारे पर इमरान खान के खिलाफ बगावत होती है, विद्रोह होता है, गठबंधन के समर्थक दल अलग होते हैं। इमरान खान ने भी सेना का सामना किया, सेना को औकात बताने की कोशिश की, कोर्ट के भी आदेश के प्रति सहानुभूति दिखाने से पीछे हट गए। राजनीतिक स्थिति खतरनाक होने के कारण सेना को अप्रत्यक्ष तौर पर हस्तक्षेप करना पड़ा। इस कारण सेना और इमरान खान की पार्टी के बीच हिंसक स्थितियां भी उत्पन्न हुर्इं। विजयी तो वही होता है, जिसके साथ सेना खड़ी होती है। इसलिए इमरान खान की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई।

वर्तमान में जितने भी प्रधानमंत्री और राष्टÑपति के पद बैठे हुए राजनीतिज्ञ हैं, उन सबका हश्र न्यायपालिका की कसौटी पर ही हुआ है। आसिफ जरदारी आर्थिक गड़बड़ी की कसौटी पर न्यायपालिका के शिकार बने, नवाज शरीफ भी न्यायपालिका के फैसले के कारण राजनीति के क्षेत्र में अयोग्य घोषित किए गए और उन पर भी सजा की चोट पहुंची है।

यह सही है कि इमरान खान ने कुछ कीमती समानों को निजी बता कर इस्तेमाल किया या फिर उसे निजी संपत्ति मान कर बेच दिया। इमरान खान की यह कार्रवाई जरूर नैतिकता और कानून की दृष्टि से सही नहीं है। इसलिए कि ये कीमती वस्तुएं इमरान खान को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने को लेकर मिली थी। इसलिए उस पर पूरे पाकिस्तान का अधिकार बनता है। पर न्यायपालिका को लोकतंत्र के प्रति भी सोच विकसित करनी चाहिए थी, चिंता करनी चाहिए थी। सेना और कोर्ट की इस तरह की जुगलबंदी से पाकिस्तान एक सफल देश को कभी नहीं बनेगा।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments