Monday, July 1, 2024
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ऐसे तो सरकार के हाथों से निकल जाएंगे कई बेशकीमती भूखंड

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जनवाणी संवाददाता |

रुड़की: बेशकीमती भूखंड हथियाने के हो रहे प्रयास पर भाजपा संगठन की चुप्पी सभी को आश्चर्यचकित कर देने वाली है। दरअसल, नगर निगम का एक ही भूखंड नहीं बल्कि कई भूखंडों को हथियाने के प्रयास हो रहे हैं। जो भूखंड आवासीय उपयोग के लिए आवंटित हुए थे। उन्हें व्यवसाय में तब्दील कर दिया गया है।

इतना ही नहीं भूखंड को अपने उपयोग में लाने के बजाय बड़े किराए पर दे दिए गए हैं। इससे नगर निगम को बड़ी क्षति हो रही है साथ ही पूर्व में आवंटित कराए गए भूखंडों को बिक्री का सिलसिला भी जारी है। अब ऐसे में भाजपा संगठन की खामोशी अनेकों सवाल खड़ी कर रही है। जबकि भाजपा हाईकमान की ओर से स्पष्ट रूप कहा गया है कि कहीं पर भी न तो भ्रष्टाचार पनपने दिया जाए और न ही माफिया को आगे बढ़ने का मौका दिया जाए।

मुख्यमंत्री धामी के भी स्पष्ट निर्देश है कि जहां पर भी सरकारी भूमि हथियाने की कोशिश हो रही हो या किसी अधिकारी कर्मचारी स्तर से भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा हो तो इसकी सीधी शिकायत शासन को की जाए। मुख्यमंत्री के पोर्टल पर की जाए। सत्ताधारी पार्टी के लोग ऐसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाए।

ऐसे में रुड़की भाजपा संगठन की चुप्पी सभी को आश्चर्य में डाल देने वाली है क्योंकि यहां पर नगर निगम के बेशकीमती भूखंड हथियाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। यहां पर तैनात रह चुके अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त होना पाए गए हैं। नगर निगम की ऑडिट रिपोर्ट बता रही है कि यहां पर पूर्व में तैनात रहे अधिकारियों ने किस तरह से वित्तीय अनियमितताएं की और वह आज भी अपने द्वारा पूर्व में की गई अनियमितताओं को पर पर्दा डालने के लिए नगर निगम के कामकाज में भी पूरा दखल बनाए हुए हैं।

सोचने वाली बात तब सामने आ रही है जब नगर निगम में भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों को कुछ भाजपा नेताओं का पूरा सहयोग मिल रहा है। यह भाजपा नेता उन अधिकारी का सहयोग ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उनके कहे के मुताबिक बेशकीमती सरकारी भूखंडों को हथियाने के प्रयास में भी संबंधित लोगों का पूरा साथ निभा रहे हैं।

निगम के बोर्ड की बैठक में यह बात पूरी तरह स्पष्ट भी हो चुकी है । भाजपा के ही पार्षदों ने सुबोध गुप्ता से संबंधित मामले में भूखंड नवीनीकरण के प्रस्ताव पारित कराया। यानी कि कद्दू कटा सब में बंटा। यह जानते हुए भी कि दो लीज का नवीनीकरण नहीं हो सकता। क्योंकि उनकी अवधि बहुत समय पहले समाप्त हो चुकी है। इसके बाद भी उनका समर्थन किया गया।

यदि भाजपा के संबंधित पार्षद और संगठन के कुछ लोग सुबोध गुप्ता के भूखंड लीज संबंधी मामले को सही मानते हुए उसका समर्थन कर सकते हैं तो फिर पूर्व मेयर यशपाल राणा के खिलाफ नगर निगम के भूखंड खुर्द बुर्द करने का मामला ही क्यों दर्ज कराया था। वह मामला भी लगभग ऐसा ही था। दोनों मामलों में अंतर मात्र यह है कि इस मामले में मेयर रहते हुए यशपाल राणा ने बैनामा ले लिया था और सुबोध गुप्ता वाले मामले में लीज का नवीनीकरण होते ही संबंधित भूखंडों को बेचने की तैयारी है।

यहां पर यह भी बात स्पष्ट की जा रही है कि यदि भाजपा संगठन का सरकारी भूखंडों को लेकर यही रवैया रहा तो निश्चित रूप से यह दो-तीन भूखंड ही नहीं बल्कि 30 से अधिक भूखंड विभिन्न हथकंडे अपना कर हथिया लिए जाएंगे और सरकार के हाथों से बेशकीमती भूमि निकल जाएगी।

जैसे कि पूर्व में शहर की चुप्पी के कारण जोड़ी बंगलो की जमीन माफिया निगल गए। और अब नई पीढ़ी को मालूम भी नहीं कि शहर में कहीं जोड़ी बंगले भी थे। रही बात अधिकारियों की। इसमें चाहे नगर निगम के अधिकारी हो या प्रशासनिक अधिकारी वह तो अपनी सुविधा के अनुसार काम करते हैं।

उन्हें शहर के हित से कोई लेना देना नहीं है। पूर्व में भी कई अधिकारियों ने सरकारी भूखंड में माफियाओं की मदद की और अब भी कुछ अधिकारी- कर्मचारी विभिन्न तरीकों से माफिया की मदद कर रहे हैं। यदि ऐसा ना होता तो नगर आयुक्त के द्वारा निदेशालय शहरी विकास को भूखंड नवीनीकरण शिफारशी प्रस्ताव न भेजा जाता।

यदि उनके लिए भेजना जरूरी और मजबूरी भी था तो तो उन्हें निश्चित रूप से भूखंड लीज प्रकरण पर स्पष्ट करती हुई रिपोर्ट देनी चाहिए थी जिसमें बताना चाहिए था कि लीज अवधि समाप्त हो चुकी है और उसके बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है।

पूर्व में यदि शुल्क जमा कराया गया है तो वह कर्मचारी स्तर से कराया गया है। उसमें एक किसी अधिकारी के आदेश का उल्लेख नहीं है। लेकिन यहां पर तहसील स्तर पर जिन कानून के जानकारों को सरकारी भूमि के रखवाले के रूप में देखा जाता है वही बेशकीमती भूखंडों में मध्यस्थता कर रहे हैं।

ऐसे में सरकारी भूखंड माफियाओं की निगाहों से कैसे बच पाएंगे। कह पाना मुश्किल है। पर इस बीच कुछ अच्छे लोग भी है। जो कि समय-समय पर सरकारी भूखंडों को बचाने के लिए सामने आए हैं।

जिला शासकीय अधिवक्ता दीवानी (डीजीसी) संजीव कौशल ने अपनी रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी। जिसमें उनके द्वारा कहा गया कि संबंधित भूखंडों के नवीनीकरण का कोई प्रावधान नहीं है। भूखंड 30 साल के लिए आवंटित हुए। जिनकी आवंटन अवधि वर्ष 1982 में समाप्त हो चुकी है।

यहां पर बता दिया जाए कि डीजीसी संजीव कौशल भी गोलमोल रिपोर्ट दे सकते थे। लेकिन उन्होंने शहर का हित देखा और समझा कि यदि यह सरकारी भूखंड नगर निगम के हाथों से निकल गए तो आने वाले समय में न जाने और भी कितने भूखंड चले जाएंगे।

इसीलिए उन्होंने स्पष्ट रिपोर्ट भेजी। अब इसके बाद चाहे इसे राजनीतिक मोड़ दे या फिर हर कोई अपने नजरिए से देखें । मेयर गौरव गोयल भी सरकारी भूखंड बचाने के लिए सामने आए। जिसकी लड़ाई वह लड़ रहे हैं। शासन स्तर पर भी और शहर स्तर पर भी। यह बात अलग है कि सरकारी भूखंड बचाने के फेर में उन्हें तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

यदि तत्कालीन नगर आयुक्त नूपुर वर्मा सहायक नगर आयुक्त चंद्र प्रकाश भट्ट से मेयर गौरव गोल का कोई विवाद हुआ है तो वह सरकारी भूखंडों के नियम विरुद्ध नवीनीकरण के प्रयास को लेकर ही हुआ है। दोनों अधिकारी नवीनीकरण चाहते थे जबकि मेयर का साफ कहना है कि जब तक वह मेयर है। तब तक वह नियम विरुद्ध नवीनीकरण नहीं होने देंगे और शहर के जागरूक नागरिक होने के नाते वह सारी उम्र इस लड़ाई को लड़ेंगे।

मौजूदा नगर आयुक्त से भी मेयर का गतिरोध इसी भूखंड की लीज नवीनीकरण को लेकर ही रहा। माना जा रहा है कि इसीलिए बुद्धिजीवी वर्ग इस पूरे मामले में मेयर गौरव गोयल के साथ खड़ा है और कई प्रोफेसर शिक्षक इंजीनियर और वैज्ञानिक खुले तौर पर कहते हैं कि इस मामले में सभी को मेयर का सहयोग करना चाहिए।

यहां तक की भाजपा संगठन को भी। धामी सरकार को भी इस मामले में मेयर को ताकत देनी चाहिए और ऐसे लोगों को दंडित करने के लिए चिन्हित कराया जाना चाहिए जो कि सरकारी भूखंड हथियाने में माफियाओं की मदद कर रहे हैं। वह चाहे जो भी लोग हो।

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