2024 लोकसभा चुनाव से दो साल पहले ही विपक्ष में प्रधानमंत्री पद को लेकर रस्साकशी शुरू हो गई है। विपक्ष एक एकजुट होकर पीएम मोदी का मुकाबला करेगा या फिर 2019 की तरह ही बिखरा होगा, यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। हाल ही में एनडीए छोड़कर आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम शुरू की है। नीतीश कुमार के अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा कई चेहरे अभी पर्दे के पीछे से अपनी गोटियां बिछाने में लगे हुए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव बीते दिनों बिहार आए थे। जाहिर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात तय थी। आजकल ऐसी मुलाकातें सियासी तौर पर महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर विपक्ष का महागठबंधन बनाया जाना है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इन दिनों दिल्ली की यात्रा पर हैं। यहां वह राहुल गांधी के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात करने वाले हैं। उनकी इस यात्रा को प्रधानमंत्री पद की दौड़ का ही हिस्सा माना जा रहा है। नीतीश कुमार को पहले ही शरद पवार, उद्धव ठाकरे, सीताराम येचुरी और अन्य लोगों से बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल चुकी है। ऐसे में नीतीश कुमार इन दिनों कुछ अधिक एक्टिव दिख रहे हैं।
महागठबंधन के नेतृत्व पर भी विमर्श स्वाभाविक है। नीतीश की एक हुंकार तो सार्वजनिक हुई है-‘इस बार थर्ड नहीं, मेन फ्रंट होगा।’ दरअसल एक काव्यांश है कि पीएम पद की उल्फत ऐसी कि न कही जाए, न सही जाए।’ लिहाजा आजकल ऐसी उल्फतें करवटें लेने लगी हैं। नीतीश ने मुख्यमंत्री पद की नई शपथ ली थी, तो उसके बाद उन्होंने कहा था कि देश भर से उन्हें फोन आ रहे हैं। उनकी जो भी व्याख्या की जाए, कमोबेश वे सभी फोन नीतीश को प्रधानमंत्री प्रत्याशी तय करने के लिए नहीं किए गए थे। इसकी बानगी चंद्रशेखर राव के साथ उनकी साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सामने आई।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने बिहार के मुख्यमंत्री की राजनीतिक समझ और सरकार के कार्यों की सराहना तो की, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश की दावेदारी और उम्मीदवारी का एक बार भी समर्थन नहीं किया। चूंकि सवालों की बौछार थी, लिहाजा नीतीश बार-बार कन्नी काटते रहे और जाने को खड़े भी हो गए, लेकिन चंद्रशेखर राव लगातार उन्हें बैठने का आग्रह करते रहे। प्रस्तावित महागठबंधन में कांग्रेस और राहुल गांधी की भूमिका क्या होगी, यह सवाल निरंतर अनुत्तरित छोड़ा गया। हालांकि बाद में कांग्रेस प्रवक्ता स्पष्ट करते रहे कि कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है। सबसे ज्यादा राज्यों में उसके ‘नेता प्रतिपक्ष’ भी हैं, लिहाजा विपक्ष को कोई जनादेश मिलता है, तो राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री होंगे। चंद्रशेखर राव का उदाहरण तो सामने है।
ममता बनर्जी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन, डा. फारूक अब्दुल्ला और वामपंथी दलों की ओर से, नीतीश के पक्ष में, एक भी बयान नहीं आया है। लगातार दोहराया जाता रहा है कि विपक्षी दलों की बैठक होगी और सभी मिल कर तय करेंगे कि इस बार महागठबंधन ‘मेन फ्रंट’ साबित कैसे हो सकता है? दरअसल हकीकत यह है कि सभी बड़े नेता और अपने-अपने राज्यों के क्षत्रप प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षाएं पाले हुए हैं। यह अस्वाभाविक भी नहीं है, लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की तुलना में वे खुद और उनके पार्टी काडर बेहद बौने और सीमित हैं। सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी, रुपए का अवमूल्यन, चीन के अतिक्रमण, किसानी असंतोष, संघीय असंतुलन, लडखड़ाती अर्थव्यवस्था (झूठ बोलता है विपक्ष), पूंजीपति मित्रों के कारोबारी फायदे आदि मुद्दों पर ही प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को परास्त करना संभव नहीं लगता। विपक्ष को इन मुद्दों पर जन-आंदोलन तैयार करने पड़ेंगे। विपक्ष की हुंकारों के पीछे जन-सैलाब भी होना चाहिए। तब किसी परिवर्तन की गुंजाइश बनती है।
विपक्ष की दलील ही मान लें कि भाजपा की 50-55 सीटें 2024 में कम हो सकती हैं। उस स्थिति में भी भाजपा के पक्ष में 250 से ज्यादा लोकसभा सीटों का जनादेश संभव है। वह सदन में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आ सकती है। उन समीकरणों में ओडिशा का बीजद और आंध्रप्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस हमेशा की तरह भाजपा को समर्थन दे सकती हैं। सरकार बनाने के लिए 272 सांसदों का बहुमत ही चाहिए। ये पार्टियां विपक्षी खेमे में कभी नहीं रहीं, हालांकि भाजपा की घटक भी नहीं रहीं। अलबत्ता उन्होंने राष्ट्रीय विषयों और सरोकारों पर प्रधानमंत्री मोदी को ही समर्थन दिया है। नीतीश, चंद्रशेखर समेत शेष विपक्ष इस यथार्थ की चर्चा नहीं करता और न ही अपनी राजनीतिक ताकत आंकने को तैयार रहता।
नीतीश भी 2024 के संदर्भ में यह बड़बोल बोल चुके हैं। नीतीश की उछलकूद हैरान करती है, क्योंकि उनके जद-यू के जो 16 सांसद चुन कर आए थे, वे एनडीए के समर्थन से जीते थे और बुनियादी जनादेश मोदी के पक्ष में मांगा जा रहा था। जब उन्हें भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन के बिना चुनाव लड़ना पड़ेगा, तब जनादेश देखा जाएगा। उसी आधार पर प्रधानमंत्री की सरकार तय होगी। आने वाले दिनों में ये रस्साकशी और दौड़ और तेज होगी। वहीं अभी कांग्रेस ने भी अपने पत्ते खोले नहीं हैं, एक बात तय है कि 2024 से पहले काफी कुछ देश की राजनीति कई करवटें लेगी।