जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: करीब आठ महीने पहले बिहार की राजधानी पटना में जिस विपक्षी INDIA गठबंधन को जोर-शोर से शुरू किया गया था, उसकी बिहार में ही हवा निकलती दिख रही है। दरअसल जिन नीतीश कुमार ने गैर भाजपा दलों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया था, अब वह इस्तीफा दे चुके हैं और ऐसी खबरें हैं कि वह आज शाम को ही भाजपा के साथ मिलकर नई सरकार बना सकते हैं। यह आम चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन को बड़ा झटका है।
23 जून 2023 को पटना में गैर भाजपा दलों की एनडीए के खिलाफ गठबंधन बनाने को लेकर बैठक हुई। कई और दल भी विपक्ष की इस मुहिम से जुड़ गए और कुल 28 दलों ने मिलकर भाजपा के खिलाफ INDIA गठबंधन का एलान कर दिया। दल तो मिल गए, लेकिन शायद दिल नहीं मिल पाए, तभी बंगाल में ममता बनर्जी ने अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है।
पंजाब में भी आम आदमी पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ने पर गंभीरता से विचार कर रही है। दोनों ही पार्टियां कांग्रेस पर हठ और मनमानी करने के आरोप लगा रही हैं। अब बिहार में भी जिस तरह से नीतीश कुमार ने पाला बदला है, उससे 2024 के लोकसभा चुनाव में एकजुट होकर भाजपा को चुनौती देने की विपक्ष की उम्मीदें लगभग धराशायी हो गई हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले साल हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के साथ ही विपक्षी गठबंधन के बुरे दिन शुरू हो गए थे। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस से कुछ सीटें मांगी थीं, लेकिन कांग्रेस ने इससे इनकार कर दिया। इसके बाद जदयू ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर अपने उम्मीदवार उतारे।
मुंबई और बेंगलुरु में विपक्षी गठबंधन की बैठकें हुईं, लेकिन इन बैठकों में भी कुछ ऐसा तय नहीं हो पाया, जिससे गठबंधन मजबूत होता। सीटों के बंटवारें पर सहमति नहीं बन पाई। यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन से कई दलों का मोहभंग होना शुरू हो गया था।
बंगाल में भी सीटों के बंटवारे पर सहमति न बन पाने के चलते टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया। टीएमसी नेताओं ने कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी पर नाराजगी जताई थी। पंजाब में भी आम आदमी पार्टी अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने की योजना बना रही है। अब बिहार में भी विपक्षी गठबंधन फेल हो गया है।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का केंद्र सरकार का फैसला भी मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। कर्पूरी ठाकुर ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक गुरु रहे। यही वजह रही कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले की नीतीश कुमार ने जमकर तारीफ की थी। माना जा रहा है कि इसी से भाजपा और जदयू के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली।
इसका राजनीतिक कारण ये भी है कि बिहार में जदयू का वोटबैंक अति पिछड़ी जातियों को माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर भी इसी वर्ग से आते हैं। वहीं भाजपा के बिहार के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी अति पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं। ऐसे में नीतीश और भाजपा के साथ आने से बिहार की पिछड़ी और अति-पिछड़ी का वोट इन्हें मिल सकता है।
बीते दिनों बिहार में सर्वे हुआ, जिसमें खुलासा हुआ कि अगर नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ते हैं तो उनके सांसदों की संख्या 16 से घटकर 7 सात रह सकती है। ऐसी भी रिपोर्ट्स हैं कि जदयू के कई सांसद भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने के पक्ष में थे। ये भी एक वजह मानी जा रही है कि नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए में जाने का फैसला किया है।