Thursday, April 25, 2024
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आंतरिक संपन्नता

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Amritvani 20


नेपोलियन विद्वानों और कलाकारों का बहुत सम्मान करते थे। उन्हें वह राष्ट्र की धरोहर के रूप में देखते थे। उनके पास ऐसे व्यक्ति जब भी आते, पर्याप्त आदर-सत्कार व सम्मान पाकर ही जाते। नेपोलियन के मंत्री भी इस नियम का समुचित पालन करते थे। एक बार नेपोलियन का दरबार लगा हुआ था। कई तरह के लोगों से वह भेंट कर रहे थे। इन्हीं लोगों में एक चित्रकार भी था, जो अत्यंत निर्धन था। नेपोलियन ने उस चित्रकार की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। जब वह दरबार में आया तो उसके मैले-कुचैले कपड़े देख नेपोलियन सहित किसी ने उसका आदर नहीं किया और उसे एक तरफ दूर बैठने का आदेश दिया गया। चित्रकार को अपने साथ हुए इस व्यवहार की उम्मीद नहीं थी, लेकिन वह कुछ नहीं बोला और जहां उसे बैठने के लिए कहा गया था, वहां जाकर चुपचाप बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब उस चित्रकार को अपना हुनर दिखाने का अवसर मिला तो उसने सबका मन मोह लिया। उसकी उत्कृष्ट चित्रकारी देखकर नेपोलियन काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उठकर उससे हाथ मिलाया। साथ ही उसे समुचित सम्मान देकर उसे छोड़ने दरवाजे तक आए। चित्रकार को नेपोलियन का यह बदला व्यवहार देखकर आश्चर्य हुआ। उसने पूछ ही लिया, श्रीमान, जब मैं आया था, तब तो आपने मुझे पास भी नहीं बैठने दिया और अब आप मुझे बाहर तक पहुंचाने आए हैं। इसका क्या कारण है, जान सकता हूं? नेपोलियन बोले, आते समय जो आदर किया जाता है, वह इंसान की वेशभूषा से तय होता है। मगर जाते समय जो आदर होता है, वह उसके गुणों को देखकर होता है। पहनावा ऊपरी चीज है, जबकि ज्ञान और गुण आंतरिक संपन्नता है। नेपोलियन की इस बात में चित्रकार को अपने प्रश्न का सही उत्तर मिल गया। वह उनके बड़प्पन का कायल हो गया।


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