Saturday, May 11, 2024
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गणतंत्र दिवस के सार्थक संकल्प

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Nazariya 16


Rajesh Maheshwari 1भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ था, इसलिए हम इस दिन को हर वर्ष गणतंत्र दिवस के रुप में मनाते हैं। गणतंत्र का सीधा अर्थ है ‘अपना तंत्र’। मतलब हर तरह की अपनी व्यवस्था जिसके अन्तर्गत देश में रहने वाले लोगों की भलाई की जा सके। इसमें नागरिकों के विकास और देश के नेतृत्व के लिये अपना नेता स्वयं चुनने की आजादी भारतीय संविधान द्वारा दिया गया सर्वोच्च उपहार है। यह उपहार हमें आसानी से और मुफ्त में नहीं मिला है, बल्कि इसके लिए लाखों-करोड़ों महापुरुषों ने अपनी जान की बाजी लगाई है। आजादी के इतने साल गुजर जाने के बाद संविधान की सुविधा होते हुए क्या हमें अपने कार्यों पर गर्व करना चाहिए? शायद नहीं! बल्कि हमें तो शर्म आनी चाहिए कि जिन वीरों ने भारत देश के लिए प्राण न्यौछावर करने में एक बार भी न सोचा, उस देश की हालत हमने क्या कर दी है? हम अभी भी अपने देश में अपराध, भ्रष्टाचार और हिंसा (आतंकवाद, दुर्ष्क, चोरी, दंगे, हड़ताल आदि के रूप में) से बुरी तरह पीड़ित हैं। इससे भी बड़ी शर्मिंदगी यह है कि समाज के लोग इन अपराधों पर चुप्पी साधे बैठे रहते हैं! अच्छे लोगों की चुप्पी से अपराधियों का हौसला बढ़ता जाता है और नतीजा यह होता है कि हम एक बदनाम देश के रूप में कुख्यात हो जाते हैं।

एक नागरिक होने के नाते, हम भी अपने देश के प्रति पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। अगर कुछ गलत होता है, तो यह बात प्रत्येक नागरिक को समझ लेनी चाहिए कि गलत करने वाले का सीधा अपराध तो होता ही है, किंतु अप्रत्यक्ष रूप से हमारा अपराध भी कुछ कम नहीं होता! हमें गलत तत्वों से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार रहना पड़ेगा। हमें अपने आपको नियमित बनाना चाहिये, खबरों को पढ़ें, समझें और देश में होने वाली घटनाओं के प्रति जागरुक रहें कि क्या सही और गलत हो रहा है। ऐसे में, हमें अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए अनमोल बलिदानों को बेकार नहीं जाने देना चाहिए और फिर से देश को भ्रष्टाचार, अशिक्षा, असमानता और दूसरे सामाजिक भेदभाव का गुलाम नहीं बनने देना है। हमें अपने देश के वास्तविक प्रगति के प्रति जागरूक रहना चाहिए, तो इसके नियमित उत्थान, प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय चरित्र के प्रति भी उतना ही सजग रहना चाहिए। शायद तभी, हमारे गणतंत्र की सही मायने में सार्थकता होगी।

देश एवं राज्यों की सरकारें उन विचारों, कार्य योजनाओं एवं नागरिक शासन को प्रतिस्थापित करने में, जैसी कि भारतीय गणतंत्रतात्मक संविधान में अपेक्षाएं की गर्इं थीं, वर्तमान गणतंत्रात्मक व्यवस्था उसे पूरा करने में लगभग असफल ही साबित हुई हैं। देश में भ्रष्टाचार, अराजकता, महंगाई, असहिष्णुता, बेरोजगारी और असमानता से देशवासी बुरी तरह त्रस्त हैं। जन साधारण इसके लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से उत्तरदायी मानता है। जिसने जनतांत्रिक मूल्यों को प्रदूषित किया है। शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वाले प्रताड़ित किये जा रहे हैं। रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। ऐसे में देशवासियों के जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होने की महत्ती जरूरत है। देश को बचाने के लिए कमर कसनी होगी।

भारत के आंतरिक तथा बाहरी दोनों मोर्चों पर खतरे बढ़ रहे हैं, विशेष रूप से आंतरिक सुरक्षा के सम्मुख परेशानियां अधिक हैं। हम ऐसे दौर में आ खड़े हुए हैं, जहां सुरक्षा बलों के साथ-साथ नागरिकों को स्वयं सुरक्षा व्यवस्था में हिस्सेदारी निभानी होगी। सोशल मीडिया भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। फेक न्यूज, अश्लीलता, इतिहास और धर्म की आड़ में कीचड़ उछालना, बिगड़ती हुई भाषा, हर मन पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ रही है। इससे समाज में आक्रामकता, अवसाद बढ़ रहा है और रिश्ते टूट रहे हैं। सोशल मीडिया ना केवल भ्रम फैलाने की मशीन बन रहा है, बल्कि ज्ञान के अभाव में दुर्भावना से प्रेरित असभ्य संवाद देश की एकता के लिए भी खतरा बन रहा है। सोशल मीडिया के लिए सख्त कानून और त्वरित सजा समय की मांग है। सार्थक युवा नीति एवं शिक्षा नीति इस समय सबसे बड़ी जरूरत है। युवा नीति के माध्यम से युवाओं को दिशा देना तथा शिक्षा नीति के माध्यम से ज्ञान और समरसता स्थापित करना, ये वो लक्ष्य हैं, जिन पर पूरी शक्ति से जुटना होगा। यूं तो राजनीति में वोट बैंक और धुव्रीकरण सदा साथ ही चलते हैं, परन्तु इस दौर में जिस स्तर पर ध्रुवीकरण हो रहा है वो भविष्य में बहुत परेशानियां उत्पन्न करेगा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह दिन हर राष्ट्रप्रेमी के लिए गर्व का दिन है, क्योंकि देश की आजादी के बाद 26 जनवरी, 1950 को ही अपना संविधान बनाकर हमने उसे लागू किया था। मगर यह भी सच है कि तभी से हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाए जाने की रस्म अदायगी ही हो रही है! इस दिन गणतंत्र दिवस मनाने के पीछे मूल भावना यही थी कि देश का प्रत्येक नागरिक संविधान की मर्यादा की रक्षा करने, स्वयं को देशसेवा में समर्पित करने और राष्ट्रीय हितों के प्रति आस्था का संकल्प लें और उस पर अमल करें। लेकिन विडंबना यह है कि आज के हालात में देश में गणतंत्र कहीं नजर नहीं आ रहा है। गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण मौकों को धूमधाम से मनाने का लाभ तभी है, जब हमारे नेता, नौकरशाह और देश का हर एक नागरिक संविधान की गरिमा को समझे और उसके अनुरूप आचरण करे। तभी यह दिन सार्थक हो सकेगा। सवाल हमें खुद से पूछना होगा कि हमारा गणतंत्र एक नागरिक के रूप में हमसे जो अपेक्षाएं करता है, क्या हम उन कसौटियों पर वाकई खरा उतरते हैं?


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