- महायोजना 2006 में बनी थी इनर रिंग रोड की योजना, अब तक जमीन पर नहीं
- सिर्फ कागजों में है काम, पूरा शहर जाम से जूझ रहा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: शहर जाम से जूझ रहा है और इनर रिंग रोड फाइलों में घूम रही है। बीते 16 साल में इनर रिंग रोड की फाइल हर चुनाव से पहले अलमारी से बाहर आई। हर बार नई डीपीआर की बात हुई। बैठकें हुर्इं और नेताओं ने वादे दावे किए पर नतीजा जीरो ही रहा। हालत ये है कि गढ़ रोड को हापुड़ रोड से लिंक करने वाले हिस्से को भी आवास विकास और एमडीए मिलकर भी पूरा नहीं कर पाए। अब एक बार फिर से मेरठ डेवलपमेंट अथॉरिटी (मेडा) ने इनर रिंग रोड की फाइलें बाहर निकाली हैं।
महायोजना 2021 की अधिसूचना 2006 में हुई थी। इसमें इनर रिंग रोड बनाने का प्रावधान किया गया था। नगर नियोजकों का तर्क था कि जिस तेजी से मेरठ विस्तार ले रहा है उसमें इनर रिंग रोड बड़ी जरूरत है। शुरुआत में गढ रोड पर काली नदी के पुल के पास से जागृति विहार एक्सटेंशन, लोहियानगर होते हुए इनर रिंग रोड बिजली बंबा बाइपास पहुंचनी थी। यहां से बिजली बंबा बाइपास होते हुए रजवाहे के सहारे एनएच-58 पर बागपत रोड चौराहे के पास लिंक होनी थी।
यह इनर रिंग रोड का पहला चरण था। दूसरे चरण में इनर रिंग रोड काली नदी के सहारे गेसूपुर गांव के पास से किला रोड होते हुए मवाना रोड को क्रॉस करके रुड़की रोड पर भराला झाल के पास एनएच-58 को टच करनी थी। हालांकि किला रोड से मवाना रोड को एमडीए ने लिंक कर दिया है, लेकिन इसके आगे काम बंद है। महायोजना में इनर रिंग रोड के इसी प्लान के हिसाब से नया शहर बसना भी शुरू हो गया।
बिजली बंबा बाइपास के दोनों तरफ धड़ाधड़ कॉलोनियां कटने लगीं। कॉलेज और बैंक्वेट हॉल बनने लगे। विकास क्षेत्र विस्तार लेता गया पर इनर रिंग रोड फाइलों से नहीं निकली। बाद में तय किया गया कि गढ़ रोड पर काली नदी के पुल से एमडीए की लोहियानगर कॉलोनी की डिवाइडर रोड तक इनर रिंग रोड का निर्माण आवास विकास जागृति विहार योजना के अंतर्गत ही कराएगा।
इसे आगे लोहियानगर का हिस्सा मेडा को बनाना था। आवास विकास अपने हिस्से की साढ़े तीन किलोमीटर सड़क नहीं बना पाया और जमीन के विवाद में किसानों के साथ पेच फंस गया। बीते एक दशक से ये टुकड़ा जहां का तहां है। लोहियानगर में एमडीए ने सड़क बनाई जो टूट गई है।
रजवाहे को लेकर फंसा बिजली बंबा बाइपास पर पेच
बिजली बंबा बाइपास पर सिंचाई विभाग के रजवाहे को लेकर पेच फंस गया। सिंचाई विभाग ने किसानों का हवाला देते हुए रजवाहे को पाटकर सड़क बनाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया। सिंचाई विभाग रजवाहे के पर लिंटर डालकर सड़क बनाने को मंजूरी देने से भी मुकर गया। कमिश्नर डा. प्रभात कुमार के समय में इनर रिंग रोड का एलाइनमेंट बदल दिया गया।
तब कहा गया कि बिजली बंबा बाइपास को चौड़ा करने के बजाय इनर रिंग रोड जाहिदपुर गांव के सामने से नहराड़ा के पीछे से होते हुए जुर्रानपुर में हवा में लटके पुल को क्रॉस करके शताब्दीनगर में प्रवेश कर जाएगी। शताब्दीनगर में डिवाइडर रोड से होते हुए दिल्ली रोड पर मजार के पास से होते हुए पूठा होकर वेदव्यासपुरी के अंदर से होते हुए एनएच-58 पर जुड़ जाएगी। ये योजना तो बनी पर इस पर अमल नहीं हो सका।
2011 से हवा में झूल रहा जुर्रानपुर पुल
रेलवे ने इनर रिंग रोड के लिए जुर्रानपुर फाटक के पास एक ओवरब्रिज तैयार कर दिया। 2011 में ये तैयार हुआ पर इसे दोनों तरफ लिंक करने के लिए जमीन नहीं मिली। किसानों के साथ सहमति नहीं बन पाई और आज तक ये ओवरब्रिज हवा में ही लटका है। वहीं, दूसरी तरफ जुर्रानपुर क्रॉसिंग पर लोग रेल आने के समय रोज जाम में फंसते हैं।
सारा झगड़ा पैसे का
इनर रिंग रोड के लिए आवास विकास और मेडा के बीच पैसे का मसला फंसता रहा है। इसकी फाइल लोक निर्माण विभाग तक भी घूमती रही है पर किसी ने भी शुरुआत की जिम्मेदारी नहीं ली। अब ऊर्जा राज्य मंत्री डा. सोमेंद्र तोमर की पहल पर मेडा वीसी अभिषेक पांडेय ने इसकी फाइल और डीपीआर पर नए सिरे से कार्य शुरू कराया है।