वायु प्रदूषण केवल इंसान को प्रभावित कर रहा है ऐसा नहीं है। जहरीली गैसों का बुरा असर पूरी जैवविविधिता के खात्मे पर तुला है। इस कड़ी में वो सूक्ष्म कीट भी शामिल हैं, जो हमें अक्सर हवा में उड़ते दिखते हैं। ये सूक्ष्म कीट कचरे का विघटन, मानव जीवन, फसलीय चक्रीकरण के लिए बेहद जरूरी हैं। इनकी अहमियत मानव जीवन में प्रत्यक्ष तौर पर नजर नहीं आती। लेकिन अपृत्यक्ष रूप से ये कीट इंसान को हर स्तर पर प्रभावित करते हैं। लेकिन वायुमंडल में चढ़ती प्रदूषण की मोटी परत ने इन कीटों की जिंदगी डिस्टर्ब कर दी है। कीटों के भोजन तलाशने से लेकर साथी से मिलन, संतति निर्माण और विकास की प्रक्रिया प्रदूषण के कारण नष्ट हो चुकी है। कीटों के सूचनातंत्र को धुएं और गैसों ने डिस्टर्ब कर उन्हें रास्ते से भटका दिया है। हालिया शोधों के मुताबिक कीटों की घटती आबादी के लिए प्रदूषण के साथ शहरीकरण, कृषि क्षेत्र में बढ़ता कीटनाशकों का उपयोग और जलवायु परिवर्तन जैसी वजह जिम्मेदार हैं। प्रदूषण न केवल शहरों के आस-पास बल्कि दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों में भी इनकी आबादी को प्रभावित कर रहा है। शोध से पता चला कि प्रदूषण के चलते आने वाले कुछ दशकों में दुनिया के 40 फीसदी कीट खत्म हो जाएंगे। धुआं, धूल, धुंध, पीएम के कण कीटों के एंटीना और रिसेप्टर्स पर बहुत बुरा असर डाल रहे हैं। यूनिवर्सिटी आॅफ मेलबोर्न, बीजिंग वानिकी विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं के अध्ययन में कीटों पर प्रदूषण का असर अनुमान से कहीं ज्यादा निकला है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय मानक के अनुसार वार्षिक औसत से ज्यादा हैं।
खेतों, बगीचों में उड़ते कीटों का मुख्य काम परागण होता है। ये फसलों, फूलों को परागित कर नए बीजों का संवर्द्धन करते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आॅफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए जारी की जाने वाली रेड लिस्ट में कीटों की सिर्फ 8 फीसदी प्रजातियां ही शामिल हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की कमी आई है, अनुमान है कि यह कीट हर दशक में करीब 9 फीसदी की दर से कम हो रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार प्रदूषण कीटों के एंटीना को प्रभावित करता है और मस्तिष्क को भेजे जाने वाले गंध संबंधी विद्युत संकेतों की शक्ति को कम कर देता है। कीटों की एंटीना में गंध को पकड़ने वाले रिसेप्टर्स होते हैं, जो आहार, स्रोत, संभावित साथी और अंडे देने के लिए एक अच्छी जगह खोजने में मदद करते हैं। ऐसे में यदि किसी कीट के एंटीना पार्टिकुलेट मैटर से ढके होते हैं तो उससे एक भौतिक अवरोध उत्पन्न हो जाता है। यह गंध को पकड़ने वाले रिसेप्टर्स और हवा में मौजूद गंध के अणुओं के बीच होने वाले संपर्क को रोकता है।
जीवाश्म ईधन के दहन से निकलने वाले पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में जहरीले भारी धातु और कार्बनिक पदार्थ शामिल हैं। ये सांस के जरिए शरीर में जाने वाले कण होते हैं जो इतने छोटे होते हैं कि उन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। कीटों पर वायुप्रदूषण कैसे खतरनाक साबित हो रहा है इसके लिए शहरी बीजिंग और ग्रामीण आॅस्ट्रेलिया दोनों में किए गए अध्ययनों में पाया गया कि पीएम 2.5 मधुमक्खियों, ततैयों, पतंगों और मक्खियों सहित विभिन्न कीटों के एंटीना पर जमा हो जाता है। बीजिंग वानिकी विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया डेविस विश्वविद्यालय की टीम ने बीजिंग के हैडियन जिले से एकत्रित घरेलू मक्खियों का अध्ययन उस समय किया जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (अदक ) का उपयोग करके वायु गुणवत्ता को निम्न, मध्यम या उच्च आंका गया था। प्रदूषण के बड़े कण (उदाहरण के लिए, पीएम 10 जो 10 मिलियन मीटर या 10 माइक्रोन की चौड़ाई के होते हैं) आपकी आंखों और नाक में जलन पैदा कर सकते हैं, जबकि बहुत छोटे कण (पीएम 2.5, जो 2.5 माइक्रोन से भी कम चौड़ाई के होते हैं) फेफड़ों में गहराई तक जा सकते हैं। बाद वाले कण हमारे लिए ज्यादा हानिकारक होते हैं और कीड़ों के एंटीना पर जमा हो सकते हैं। एंटीना पर प्रदूषक तत्वों के जमने के कारण कीटों का सूचनातंत्र काम करना बंद कर देता है। आपस में संदेशों का आदान, प्रदान नहीं कर पाते। भोजन, अपने साथी को खोजना या अपने ठिकानों को तलाश करने की उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है। उनके एंटिना काम करना बंद कर देते हैं और कीट एक जिंदा लाश बन जाता है। जो समय से पहले मर जाता है। कीटों की सिग्नलिंग प्रणाली डिस्टर्ब हो जाती है।
नाइट्रस आॅक्साइड या ओजोन जैसे गैसीय वायु प्रदूषकों की तुलना में कणीय पदार्थों का संपर्क कीटों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अधिक खतरनाक हो सकता है। इंसान को यह समझना होगा कि ये नन्हें कीट, तितलियां, फ्लाइज हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में कीटों और बीमारियों के नियमन, परागण और पोषक चक्रण के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें से सभी के लिए रासायनिक संकेतों का प्रभावी पता लगाना आवश्यक है।