Monday, January 20, 2025
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ईरानी महिलाओं का कड़ा संघर्ष

Samvad 51


DR NK SOMANIईरान में 22 साल की महिला माहसा अमीनी की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद भड़का हिजाब विवाद लगातार उग्र होता जा रहा है। राजधानी तेहरान सहित देश के कई अन्य शहरों में महिलाएं और लड़कियां सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रही हैं। हिसंक विरोध प्रदर्शनों में अब तक 80 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबर है। जबकि गैर सरकारी संगठन मृतकों की संख्या इससे कहीं गुणा अधिक बता रहे हैं। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। बड़ी संख्या में लोगों के घायल होने की खबर है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए अमेरिका ने ईरान की मोरल्टी पुलिस व ईरान के खुफिया मंत्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिल टूडो ने भी मोरल्टी पुलिस पर प्रतिबबंध लगाने की बात कही है। जर्मनी ने ईरानी राजदूत को तलब किया हैं। यूएन मानवाधिकार परिषद ने भी ईरान सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना की है। परिषद का आरोप है कि ईरान सरकार अमीनी की मौत की परिस्थितियों की समूचित जांच कराने में नाकाम रही है। देश में तख्तापलट की आशंका तेज हो गई है। तख्तापलट की बात इस लिए कही जा रही है क्योंकि ईरानी सेना (रेवल्युशनरी गार्ड्स) के टॉप कमांडरों ने अपने परिवारों को कैंट के इलाकों से सेफ हाउस में भेजना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर कहें तो ईरान में स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। कहा जा रहा है कि हिजाब को लेकर जारी आंदोलन साल 2019 में र्इंधन की कीमतों को लेकर हुए आंदोलन के बाद देश का सबसे बड़ा आंदोलन है। 2019 के आंदोलन में 1500 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विरोध व प्रतिबंधों की परवाह किए बिना आंदोलन को बलपूर्वक दबाने की नीति पर क्यों चल रहे है।

ईरान में हिजाब को लेकर विवाद कोई नहीं बात नहीं है। पिछले एक दशक से ईरान में हिजाब के विरोध की छूट-पूट खबरें आती रही हैं। लेकिन इस बार पुलिस हिरासत में अमीनी की मौत ने एंटी हिजाब मूवमेंट को कहीं ज्यादा भड़का दिया है। हिरासत में अमीनी की मौत की खबर के बाद गुस्साई महिलाओं द्वारा अपने बाल काटने व हिजाब जलाने की खबरें दुनियाभर में वायरल हो रही हैं। कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं इस बार आर-पार के मूड में नजर आ रही हैं। सोशल मीडिया पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की जानेवाली सख्ती के वीडियो लगातार आ रहे हंै। विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए ईरानी युवक जावेद हैदरी की कब्र पर उसकी बहन द्वारा बाल काट कर चढ़ाने का वीडियो भी वायरल हो रहा है।

आज से चार दशक पहले तक ईरान ऐसा नहीं था। 1979 की इस्लामिक क्रांति से पहले शाह मोहम्मद रेजा पहलवी के शासन में पश्चिमी देशों की तरह ईरान में भी खुलेपन की हवा बह रही थी। ईरान में महिलाओं को पर्याप्त स्वतंत्रता थी। पहनावे को लेकर महिलाओं में किसी तरह की कोई रोकटोक नहीं थी। वे अपनी पसंद के कपड़े पहन सकती थीं और कहीं भी आ जा सकती थीं। संक्षेप में कहा जाए तो पहलवी के शासनकाल में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल था। लेकिन इस्लामिक क्रांति ने ईरान के सामाजिक ढांचे को पूरी तरह बदल कर रख दिया।

क्रांति के बाद ईरान की सत्ता धार्मिक नेता अयातुल्लाह खोमैनी के हाथ में आ गई। खौमेनी ने पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया और ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। मार्च 1979 जनमत संग्रह हुआ। इसमें 98 फीसदी से ज्यादा लोगों ने ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक बनाने के पक्ष में वोट दिया। इसके बाद ईरान का नाम इस्लामिक रिपब्लिक आॅफ ईरान कर दिया गया। खौमेनी के हाथों में सत्ता आते ही नए संविधान का काम शुरू हो गया। इस्लाम और शरिया पर आधारित नए संविधान में देश में कई तरह की पाबंदिया लगा दी गर्इं। महिलाओं के अधिकारों को काफी कम कर दिया गया। 1981 के कानून के अनुसार मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब, हेडस्कार्फ ओर ढीले कपड़े पहनना अनिर्वाय कर दिया गया। कानून की सुनिश्ति व निर्धारित ड्रेस कोड की पालना का जिम्मा मॉरल पुलिस (गश्त-ए इरशाद)) को दिया गया। पुलिस निर्धारित ड्रेसकोड की जांच के लिए महिलाओं को रोककर पुछताछ कर सकती है।

निर्धारित तरीके से चेहरा और सिर न ढके होने पर इस्लामिक ड्रेस कोड के उल्लंघन के आरोप में संबंधित महिला को गिरफ्तार कर लिया जाता है।

साल 1995 में कानून को और सख्त कर दिया गया। संशोधित कानून के अनुसार औरतों को बिना हिजाब घर से निकलने पर जेल में डालने का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं हिजाब न पहनने पर 74 कोड़े मारने से लेकर 16 साल की जेल तक की सजा हो सकती है। अप्रैल 2018 में भी तेहरान में एक महिला द्वारा ठीक ढंग से हिजाब न पहने के कारण मौरेलिटी पुलिस आॅफिसर द्वारा सरेआम पिटाई करने का वीडियो वायरल हुआ था। मुस्लिम बहुल देशों में शिया बहुल ईरान और तालिबान शासित अफगानिस्तान ही दो ऐसे मुल्क हैं, जहां महिलाओं को घर से बाहर निकलते वक्त हिजाब पहनना अनिर्वाय है।

22 साल की अमीनी का कसूर केवल इतना ही था कि उसके बाल हिजाब से बाहर आ गए थे। 13 सितंबर को पुलिस ने सिर न ढकने व ठीक ढंग से हिजाब न पहनने के आरोप में पुलिस ने अमीनी को गिरफ्तार कर लिया था। ईरान की मीडिया के मुताबिक गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही अमीनी कोमा में चली गई थी। उसे अस्पताल ले जाया गया। कहा जा रहा है कि पुलिस हिरासत में अमीनी को खौफनाक तरीके से टॉर्चर किया गया। पुलिस की पिटाई के दौरान उसके सिर में गंभीर चैट लगी और उसकी मौत हो गई। अमीनी के परिजनों व मीडिया रिर्पोटस के अनुसार गिरफ्तारी से पहले अमीनी पूरी तरह से स्वस्थ थी।

अमीनी की मौत के बाद ईरान ही नहीं दुनिया भर में ईरान के धार्मिक कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हंै। जहां एक ओर महिलाएं विरोध जताते हुए अपने बाल काट रही हैं और हिजाब जला रही हैं वही दूसरी तरफ महिलाएं अनिवार्य हिजाब कानून को धता बताकर बिना हिजाब के सड़कों पर उतरकर सरकार और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी कर रही है। महिलाओं द्वारा तानाशाह मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए सर्वोच्च नेता के पोस्टरों को निशाना बनाया जा रहा है उसे देखते हुए लगता है कि ईरान की महिलाएं इस बार हिजाब को लेकर निर्णायक लड़ाई के मूड में हैं। दूसरी ओर ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड ने अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ चेतावनी जारी करते हुए न्यायपालिका से ऐसे लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अपील की है। रिवोल्यूशनरी गार्डस के इस रूख से स्पष्ट है कि वह प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई तेज करने की योजना बना रहा है। ऐसे में लगता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मोर्चें पर ईरानी महिलाओं का संघर्ष अभी लंबा चलने वाला है।


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