- राजनीति को कमजोर करने के लिए यह एक सोची समझी रणनीति के तहत चलाई गई मुहिम
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: प्रदेश विभाजन का मुद्दा बार-बार उठता और ठंडे बस्ते में जाता रहा है। इंडिया गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल काफी दिनों से अपने प्रिय हरित प्रदेश के मुद्दे को छोड़े बैठा है, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केन्द्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान ने जाट संसद में प्रदेश के बंटवारे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की हिमायत करके इसे फिर से चर्चाओं में ला दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस प्रकार के मुद्दे को उठाकर प्रदेश का विभाजन हो न हो, लेकिन जाट वोटों के विभाजन की पटकथा जरूर लिखी जा सकती है।
प्रदेश विभाजन के नाम पर छिड़ने वाली इस बहस को लेकर राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि इंडिया गठबंधन और जयंत चौधरी की राजनीति को कमजोर करने के लिए यह एक सोची समझी रणनीति के तहत मुहिम चलाई गई है। यह भारतीय जनता पार्टी हाई कमान का इस समय भले ही मुद््दा न हो, लेकिन हाईकमान को विश्वास में लेने का प्रयास किया जा सकता है कि यह मुद्दा पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की राजनीति को कमजोर करने में काम आ सकता है। राजनीतिक जानकार यहां तक कह रहे हैं कि दो दशक से हरित प्रदेश के मुद्दे को किनारे करके चल रहे रालोद और इंडिया गठबंधन को यह सब भारी पड़ सकता है।
उनका आकलन है कि अगर अलग राज्य बनाने की मांग केंद्र और प्रदेश में सत्ता रूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक नेता के स्तर से उठाई गई है, तो इसको जाट समाज के एक वर्ग को प्रभावित करके उनके वोट डिवाइड करने की राजनीति माना जा सकता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग के सहारे डॉ. संजीव बालियान अपनी वैतरणी पार करने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। अभी डॉ. संजीव बालियान प्रत्यक्ष रूप में इस विभाजन के मुद्दे को भले ही अकेले लेकर चल रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी के कुछ और बड़े लीडर उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग को समर्थन देते हुए नजर आए, तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पुरानी है प्रदेश के विभाजन की मांग
प्रदेश के बंटवारे के इतिहास को खंगाला जाए, तो देखा जा सकता है कि यह मांग बहुत पुरानी है। 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग के गठन के बाद से ही एक पृथक राज्य की मांग उठने लगी थी। तब 97 विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त एक संयुक्त मांग पत्र का समर्थन आयोग के सदस्य एम. पणिक्कर ने किया था। 1963 में तत्कालीन विधायक मंजूर अहमद, वीरेंद्र वर्मा आदि ने एक बार फिर इस मुहिम को लेकर जनजागरण और आगे बढ़ाने के लिए पदयात्राओं का आयोजन भी किया।
70 के दशक में दोआब प्रदेश, पश्चिमी उप्र, गंगा प्रदेश पश्चिमांचल जैसे अलग नामों से आंदोलन होते रहे। 1977 में एक बार फिर जनता पार्टी ने इसे अपना चुनावी वादा बनाया, लेकिन सरकार जल्द ही गिर जाने से मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया। 1980 में बंटवारे का प्रस्ताव सदन में पास नहीं हो सका। 90 के दशक में हरित प्रदेश का नाम देकर कई बार फिर आंदोलन शुरू किया गया। चौ. अजित सिंह ने एक बार फिर हरित प्रदेश की मांग उठाई। वे इस मुद्दे को संसद तक ले गए, रालोद इस मुद्दे पर दूसरे दलों का समर्थन हासिल करने में नाकामयाब रहा।
2003 में हरित प्रदेश का मुद्दा तब पूरी तरह ठंडे बस्ते में चला गया, जब बंटवारे के धुर विरोधी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में बनी सरकार में अजित सिंह शामिल हुए। 2007 में बनी बसपा सरकार ने मार्च 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन कर इसे चार हिस्सों बुंदेलखंड, पूर्वांचल, पश्चिमी उप्र और बचे शेष हिस्सों में बांटने की सिफारिश भी की। लेकिन केन्द्र की ओर से कहा गया कि पहले राज्य सरकार विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराकर भेजने के बाद ही इस पर विचार किया जाएगा।
भाजपा करती रही हरित प्रदेश का विरोध
डा. सजीव बालियान ने भले ही जाट संसद के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की बात कही हो, लेकिन बंटवारे की मांग को लेकर भाजपा का अलग ही फलसफा रहा है। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिस क्षेत्र को हरित प्रदेश बनाने की बात की जा रही है, उसका नाम मुस्लिम प्रदेश होना चाहिए। क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकतर मुसलमान समाज के लोग ही शामिल हैं।
अलग प्रदेश नहीं चाहती भाजपा: ऐनुद्दीन
रालोद के राष्ट्रीय महासचिव ऐनुद्दीन शाह का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग सबसे पहले मांग हरित प्रदेश के नाम से स्व. अजित सिंह ने उठाई थी। भाजपा और संघ नहीं चाहेंगे कि चौ. चरण सिंह और अजित सिंह के समय का अजगर समाज एक मंच पर आ जाए। केवल जाट लॉबी को लुभाने के लिए चुनावी स्टंट के रूप में डा. संजीव बालियान इस मुद्दे को केवल अपनी जाति के मंच से उठाकर राजनीतिक लाभ अर्जित करना चाहते हैं।
अलग राज्य की बात चुनावी शिगुफा: सांगवान
राष्ट्रीय लोकदल के सचिव डा. राजकुमार सांगवान का कहना है कि आरएलडी बहुत पहले से यह मांग करती चली आ रही है। यह एक सच्चाई है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का विकास अलग राज्य बनने से ही संभव है। यह राष्ट्रीय लोकदल का प्रमुख मुद्दा है, राष्ट्रीय लोकदल चाहता है कि सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिस्से में अपेक्षित विकास की किरणें आएं। लेकिन जाट समाज के मंच से यह मुद्दा उठाकर डा. संजीव बालियान ने केवल चुनावी शगूफा छोड़ा है। अब चुनाव नजदीक आया, तो खुद को चर्चाओं में लाने के लिए उठाया। वो सांसद और केन्द्रीय मंत्री हैं, लोगों को बताएं कि साढ़े नौ साल में कितनी बार देश की संसद में प्रदेश के बंटवारे को लेकर मुद्दा उठाया गया है। भाजपा सांसदों को साथ लेकर किनती बार प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया है।
अलग राज्य बनाने से कौन रोक रहा है: मुकेश जैन
भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे मुकेश जैन का कहना है कि डा. संजीव बालियान पश्चिम उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने और मेरठ को राजधानी बनाने की बात उठाकर अपनी राजनीतिक जमीन को बचाए रखना चाहते हैं। वरना केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकारें हैं, डा. संजीव बालियान पश्चिम को अलग राज्य बनवाना हैं, तो बनवा दें। उन्हें इस क्षेत्र को अलग स्टेट बनवाने से कौन रोक रहा है।