दिल्ली एमसीडी चुनाव के नतीजों के बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आ गए। नतीजे एग्जिट पोल के अनुसार ही रहे। दिल्ली एमसीडी में 15 साल से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को हराकर आम आदमी पार्टी ने कब्जा कर लिया। वहीं गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अनुमान के मुताबिक रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की। इधर, हिमाचल में मतदाताओं ने सरकार बदलने का रिवाज कायम रखा और भाजपा को कुर्सी से नीचे उतारकर कांग्रेस को बैठा दिया। वहीं उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में सपा मैनपुरी लोकसभा सीट बचाने में कामयाब रही तो खतौली विधानसभा सीट पर रालोद ने कब्जा जमाया। रामपुर विधानसभा सीट पर पहली बार जीतकर भाजपा ने अपनी थोड़ी सी लाज बचा ली। वहीं राजस्थान की सरदारशहर विधानसभा सीट पर सत्ताधारी कांग्रेस ने जीत हासिल की और सीएम गहलोत अपनी साख बचाने में कुछ हद तक कामयाब रहे। सबसे पहले बात करते हैं गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों की। यहां पर पीएम नरेंद्र मोदी का जादू पूरी तरह चला और भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और ओवैसी कहीं भी टक्कर में दिखाई नहीं दिए।
भाजपा ने 182 में से 156 सीट जीतकर कीर्तिमान बनाया। गुजरात में पहली बार किसी पार्टी ने 150 से ज्यादा सीट हासिल की। यह जीत भाजपा की जीत से ज्यादा मोदी की जीत है। असल में गुजरात के लोगों में मोदी का जलवा कायम है। वहीं कांग्रेस विलुप्त होने की कगार पर आ गई है। कांग्रेस को केवल 17 सीटें मिली हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस के पास न तो कोई नेतृत्व था और न ही कोई योजना।
प्रभारी रघु शर्मा और आॅब्जर्वर अशोक गहलोत के तमाम वादों और दावों के बीच कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है। वहीं आम आदमी पार्टी 92 सीटों पर जीत का दावा कर रही थी, लेकिन वह केवल 5 सीट ही जीत पाई है। उसके मुख्यमंत्री पद के दावेदार इसुदान गढ़वी और प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया तक को करारी हार का सामना करना पड़ा है। अरविंद केजरीवाल ने चुनाव से पहले एक आईबी की रिपोर्ट को आधार बनाकर आप की जीत का दावा किया था, जिसकी हवा भी गुजरात के मतदाताओं ने निकाल दी। असल में गुजरातियों ने फोकटिया राजनीति को पूरी तरह से नकार दिया है।
इधर, हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी एग्जिट पोल के करीब ही रहे हैं। यहां कांग्रेस ने 68 में से 40 सीटें जीत ली हैं। वहीं सत्ताधारी भाजपा को महज 25 सीटें मिली हैं। आप का खाता भी नहीं खुल सका है। देवभूमि हिमाचल में हर बार सत्ता बदलने का रिवाज इस बार भी कायम रहा है। उन्होंने भाजपा के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को जय राम जी कहते हुए कुर्सी से नीचे उतार दिया है। परिणामों से स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की जनता पर कोई पकड़ नहीं थी। उनके नेतृत्व में हिमाचल में जितने भी चुनाव हुए, सभी में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा।
वहीं दिल्ली एमसीडी के चुनाव के नतीजों में आम आदमी पार्टी ने 134 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं भाजपा को मात्र 104 सीटें ही मिल सकीं। इस तरह आप ने भाजपा से एमसीडी छीन ली, जो 15 साल से उसके कब्जे में थी। कांग्रेस यहां भी कहीं नजर नहीं आई। वह चुनाव लड़ने की खानापूर्ति कर रही थी। एमसीडी चुनाव में आप गंदगी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को घेरने में सफल रही। असल में दिल्ली में भाजपा के पास न तो कोई संगठन है और ना ही कोई दमदार नेता। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता किसी भी तरह से असरदार नजर नहीं आते।
सांसद मनोज तिवारी, मीनाक्षी लेखी, प्रवेश वर्मा, रमेश बिधूड़ी, हर्षवर्धन आदि सब पीएम मोदी के नाम पर जीते हैं। इनमें से किसी भी नेता का कोई जनाधार नहीं है। अगर होता तो दिल्ली एमसीडी में भाजपा की हार नहीं होती। खास बात यह भी है कि जेपी नड्डा ने भी दिल्ली एमसीडी में जमकर चुनाव प्रचार किया था, जिसके बाद भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। दिल्ली में भाजपा के संगठन मंत्री का संगठन गढ़ने का कौशल भी काम नहीं आया। जहां तक उपचुनाव की बात है तो उत्तर प्रदेश में मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा पर भाजपा जीत हासिल नहीं कर पाई। हालांकि रामपुर विधानसभा पर भाजपा पहली बार जीतने में कामयाब रही।
चुनावों के ये नतीजे सबक सिखाने वाले हैं। खासकर भाजपा को। कांग्रेस को तो वैसे भी कोई फर्क नहीं पड़ना है, क्योंकि उसने जीतने लायक न तो कोई काम किया है और ना ही कोई योजना उसके पास है। दिल्ली एमसीडी और हिमाचल प्रदेश में भाजपा की हार से उसे कड़े सबक सीखने की जरूरत है। भाजपा की यह हार असल में कुछ नेताओं के अहंकार में डूबने और कार्यकतार्ओं के काम नहीं करने का नतीजा है। वहीं कमजोर नेतृत्व भी हार की प्रमुख वजह है। हिमाचल में जयराम ठाकुर भाजपा को नेतृत्व नहीं दे सके हैं।
उनकी जनता पर कोई पकड़ नहीं है। यही हाल भाजपा का दिल्ली में भी है। दिल्ली में भाजपा के पास न तो कोई नेतृत्व है और ना ही कोई फायरब्रांड नेता है। हालांकि आप से भाजपा में आए कपिल मिश्रा थोड़ी बहुत उम्मीद जगाते हैं, लेकिन उनकी क्षमता का अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है। कांग्रेस में गहलोत राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का नेतृत्व कर सकते हैं, लेकिन उनसे राजस्थान की मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छूट रही है। खैर! जनता ने जनादेश दे दिया है। अब नेताओं की बारी है। उन्हें सीखना है या ऐसे ही टाइम पास करते रहना है। मर्जी उनकी है। मतदाता अपना काम करते रहेंगे।