नगर निगम में फर्जी नियुक्ति का मामला हो या फिर पेट्रोल पंप में तेल के खेल की जांच हो या फिर गाड़ी चालक गफ्फार के 15 वर्षों में एक बार वेतन मिलने का मामला। साफ है कि कुछ फर्जी दस्तवेजों पर नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों को भले ही पेंडिंग जांच के चलते वेतन न मिले, लेकिन गफ्फार जैसे निगम के वफादार गााड़ी चालक के द्वारा विभाग के अधिकारियों के खिलाफ खुलकर विरोध में न बोलने का मामला भी साफ है कि निगम में इन सब भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कुछ न कुछ तो बड़ा गोलमाल है। यही वजह है कि नगरायुक्त कार्रवाई करने की बजाय चुप्पी साधे बैठे हैं। भ्रष्टाचार रोकने के लिए उन्हें लगाया गया था, लेकिन उनकी चुप्पी कुछ और ही इशारा कर रही है।
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम में एक के बाद एक भ्रष्टाचार का मुद्दा ‘जनवाणी’ ने प्रमुखता से उठाया तो फर्जी नियुक्त के कुछ और भी मामले निकलकर सामने आये हैं। निगम में एक दंपति की फर्जी जन्मतिथि के दस्तावेज पर नियुक्ति का मामला भी चर्चा का विषय बना हुआ है। 22 अक्टूबर 2022 को लेखाधिकारी ने एक कर्मचारी की जन्मतिथि के आधार पर उसकी नियुक्ति एवं सेवानिवृति तिथि को लेकर अपनी जांच रिपोर्ट नगरायुक्त को भेजी हैं।
इस रिपोर्ट में कहा है कि लेखाधिकारी कर्मचारी को तत्काल प्रभाव से सेवानिवृत एवं फर्जी जन्मतिथि के दस्तावेजों के आधार पर जो नियुक्ति हुई। उसमें उसे दोषी मानते हुये उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने का मामला भी जांच रिपोर्ट में लिखा। इतना ही नहीं, बल्कि उस कर्मचारी की पत्नी भी निगम में कर्मचारी है, उसकी नियुक्ति पर जन्मतिथि को लेकर सवाल खड़ा हो गया।
उसका भी वेतन रोक दिया गया, लेकिन नगरायुक्त के द्वारा पांच महीने बाद भी लेखाधिकारी की जांच रिपोर्ट पर मामले में ठोस कार्रवाई को संज्ञान नहीं लिया गया। जांच हुई, फिर दबा दी गई? आखिर दागदारों पर कार्रवाई निगम में क्यों नहीं हो रही हैं? क्या जिम्मेदार नींद में हैं या फिर सेटिंग का खेल चल रहा हैं?
नगर निगम के लेखाधिकारी ने एक कर्मचारी की फर्जी जन्मतिथि के आधार पर उसकी अस्थाई एवं स्थाई नियुक्ति को लेकर एक जांच रिपोर्ट 22 अक्टूबर 2022 को नगरायुक्त को भेजी। इस जांच रिपोर्ट में लेखाधिकारी ने नगरायुक्त को लिखा की कैलाश पुत्र बलवा को तत्काल प्रभाव से सेवानिवृत की सामान्य प्रक्रिया के अंतर्गत सेवानिवृत किया जाये। साथ ही उन कर्मचारियों के विरुद्ध नगर निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाने एवं उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने के अपराध में आवश्यक प्रशासनिक/फौजदारी प्रक्रिया के अंतर्गत कार्रवाई प्रारंभ की जाये।
इस मामले को 5 महीने का समय बीतने के बाद भी नगर आयुक्त ने कोई संज्ञान नहीं लिया। दोषी कर्मी निगम में बराबर कार्य कर रहा है। केवल कार्रवाई की जगह उसका वेतन रोकने के नाम पर मात्र नगरायुक्त स्तर से खानापूर्ति की गई। वहीं, दूसरी ओर कैलाश पुत्र बलवा की पत्नी राजरानी भी नगर निगम में कर्मचारी के रूप में कार्यरत है। उसकी जन्मतिथि पर भी सवाल खड़े हुये तो उसकी सेवानियुक्ति पत्रावली ही निगम से गायब हो गई, जिसको लेकर उसका वेतन भी जांच के नाम पर दिसंबर माह से रोक दिया गया।
ये कर्मचारी भी निगम में बराबर कार्य कर रही है। दंपति की निगम में जन्मतिथि को देखा जाये तो करीब 20 वर्षों का अंतर है। कैलाश से जब मीडिया कर्मी ने उसकी जन्मतिथि के बारे में पूछा तो उसने अपनी जन्मतिथि 16 जुलाई 1964 बताई और अपनी पत्नी की जन्मतिथि 1983 बताई। 1986 बताई। जब कैलाश से सवाल पूछा गया कि एक तो दोनों की जन्मतिथि में इतना बड़ा अंतर कैसे आया? वहीं, राजरानी का जन्म 1983 व शादी 1986 में कैसे हो गई तो उन्होंने बताया कि राजरानी उनकी दूसरी पत्नी है,
कुछ लोगों ने गलत तरीके से पत्नी के जन्म के 3 या 4 वर्षों के अंदर शादी होने की अफवाह उड़ाई हुई है। फिलहाल पत्नी का जन्म एवं उसकी पहली शादी कहां हुई और उनकी पहली पत्नी का क्या नाम था। कितने बच्चे थे, यह जानना जरूरी नहीं है, क्योंकि कैलाश की पत्नी के बारे में तो लेखाधिकारी ने लिखा ही नहीं है। जरूर है तो कि लेखाअधिकारी की कैलाश पुत्र बलवा के खिलाफ जो कार्रवाई के लिये पत्र नगर आयुक्त को लिखा गया। उस जांच रिपोर्ट को आखिरकार नगरायुक्त के द्वारा क्यों दबा दिया गया।
वहीं, दूसरी ओर कैलाश का मामला सामने आया तो उसने भी मीडिया को बताया कि वह और उनकी पत्नी ही नहीं बल्कि गीता पत्नी विनोद एवं कमलेश पत्नी प्रेमनाथ भी नगर निगम में कर्मचारी के रूप में कार्यरत है। उनको आज तक यह नहीं पता कि वह किस जगह कार्यरत हैं। फिलहाल यदि सही तरह से नगर निगम में नियुक्त एवं कर्मचारियों की पदोन्नति के मामले में ही उच्चस्तरीय जांच हो जाये। जैसे की 23 कर्मचारियों की नियुक्त एवं वेतन वापसी का मामला सीबीसीआईडी को गया है
तो निगम के कितने अधिकारी जिनके कार्यकाल में नियुक्तियां हुई और उन्होंने अब तक वेतन कैसे प्राप्त किया। उन सब पर गाज गिरना तय है। वहीं कैलाश के द्वारा जो महिला कर्मचारियों की नियुक्त पर सवाल खड़े किये उन महिला कर्मचारियों से उनका पक्ष जानने के लिये संपर्क नहीं हो सका कि वह कैलाश के आरोप पर क्या अपने पक्ष में बात रखेंगी कि आरोप सही है या गलत।
कैलाश के मामले की जांच के चलते अक्टूबर माह से उसका वेतन रुका हुआ है। वहीं, कैलाश की पत्नी राजरानी की नियुक्ति सेवा पुस्तिका पत्रावली गायब होने के कारण दिसंबर 2022 से उसका वेतन भी रुका है। वहीं, कैलाश द्वारा गीता व कमलेश पर जो आरोप लगाया है कि उन्हे अपनी नियुक्त किस जगह है।
उसके बारे तक में नहीं पता। वह काम पर नहीं आती है। उसकी जानकारी नहीं है। उसके आरोपों की भी जांच का ली जायेगी।
-डा. हरपाल सिंह, प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी/पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी नगर निगम, मेरठ