- 1999 से बंद पड़ी 500 करोड़ से ज्यादा की परतापुर कताई मिल हो रही खंडहर
- 24 साल में सत्ता में हर दल का रंग देखा पर बुनकरों का नहीं बदला हाल
- 25 अक्टूबर से गंगानगर ओ पॉकेट के कम्युनिटी सेंटर में चल रहे जिला हथकरघा एक्सपो में नहीं पहुंच रहे ग्राहक
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: गंगानगर-ओ पॉकेट के कम्युनिटी सेंटर में चल रहे हथकरघा एक्सपो में तीन दिन के अंदर बमुश्किल ढाई तीन सौ लोग ही पहुंचे हैं। खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन का नारा शायद अभी युवाओं को भा नहीं रहा। दूसरों की पर्सनॉलिटी में सूती वस्त्रों से निखार लाने वाले बुनकर खुद मुश्किल में हैं। करीब ढाई दशक से बंद पड़ी परतापुर कताई मिल खंडहर हो रही है। महंगी बिजली, महंगे कच्चे माल और सस्ते बाजार ने मेरठ के एक लाख से ज्यादा बुनकरों को मुश्किल में डाल दिया है।
मेरठ के सलावा में दो जनवरी 2022 को खेल यूनिवर्सिटी के शिलान्यास के वक्त पीएम मोदी ने जिस हैंडलूम कारोबार को मेरठ का प्राइड कहा था वह भयंकर संकट से जूझ रहा है। यहां बुनकरों के बुरे दिन तब शुरू हुए जब 1999 में यहां परतापुर कताई मिल बंद हो गई। प्रदेश और केंद्र की सत्ता की चाभी किसके हाथ होगी, ये खुलासा कताई मिल से ही होता है पर बुनकरों के हक पर पड़ा ताला 24 बरस बाद भी नहीं खुल सका है।
यानी बीते 24 वर्ष में कताई मिल सिर्फ लोकसभा और विधानसभा चुनावों की मतगणना का केंद्र ही बनकर रह गई है। इन दिनों में सूबे में सपा, बसपा और भाजपा की सरकार बनी। कई बार कताई मिल के जीर्णोद़धार और इसे दोबारा चलाने के वादे हुए। वर्ष 2011 में गाजियाबाद की एक एजेंसी से इस मिल की कीमत का आंकलन कराया गया। तब इसे 250 करोड़ रुपये आंका गया। तब से अब तक मेरठ में संपत्ति के दाम ही तीन गुना तक बढ़ चुके हैं। यानी अब इस मिल की चल अचल संपत्ति 500 करोड़ के पार है। ये मिल चल जाए तो मेरठ और आसपास के हजारों बुनकरों को रोजगार मिल सकता है।
तकनीक के साथ तेज हुई बापू का चरखे की रफतार
भारत सरकार का खादी ग्रामोधोग आयोग दो से 31 अक्टूबर तक देश भर में खादी महोत्सव मना रहा है। सात अगस्त 1905 को देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ। सात अगस्त को हम राष्टीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाते हैं। बुनकर सेवा केंद्र मेरठ में सीनियर प्रिंटर राज सिंह कहते हैं कि समय के साथ हैंडलूम कारोबार में तकनीक को लेकर बड़े बदलाव हुए हैं। बापू का चरखा भी अब आधुनिक हुआ है और वह कम समय में पहले के मुकाबले ज्यादा कताई कर सकता है। वह दावा करते हैं कि वस्त्र मंत्रालय की तरफ से बुनकरों के लिए कच्चा माल आपूर्ति, कर्ज, बीमा और वित्तीय सहायता की विशेष योजनाएं और हेल्पलाइन भी हैं। दूसरी तरफ बिजली से चलने वाली पावरलूम मशीनें भी आ गई हैं।
क्या चाहते हैं बुनकर
शहर में हथकरघा उद्योग 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। यहां कांच का पुल, अहमदनगर, इस्लामाबाद, लोहियानगर में करीब एक लाख बुनकर काम करते हैं। पहले नोटबंदी फिर जीएसटी, कोराना और अब महंगी बिजली, महंगी जमीन, महंगे धागे की वजह से बुनकर परेशान हैं। कपड़ा बाजार में आॅनलाइन खरीददारी, बाहर से आने वाले सस्ते माल की वजह से स्थानीय बाजार में उत्पादों का सही दाम नहीं मिल पाता। मेरठ में इन दिनों लगी प्रदर्शनी, स्टॉल, आने जाने के किराये और खाने पीने की व्यवस्था केंद्र सरकार की ओर से है।
लेकिन ग्राहकों ने मुंह मोड़ लिया है जिसकी वजह से बुनकर परेशान हैं। बुनकरों का कहना है कि वह मीटर के आधार पर बिजली का बिल देने में असमर्थ हैं। महंगी बिजली ने उनकी कमर तोड़ दी है। बुनकरों में धिकांश दलित, अति पिछड़े और मुस्लिम हैं। बुनकरों का कहना है कि उनके घरों पर स्मार्ट मीटर लगा दिए गए हैं। वर्ष 2006 में तत्कालीन मुलायम सरकार ने बुनकरों के लिए फलैट रेट पर बिजली की सुविधा दी थी। वर्ष 2020 से प्रदेश सरकार ने फलैट रेट पर बिजली की सुविधा खत्म कर दी है।
बुनकर समाज से दूसरी बार विधायक बने रफीक अंसारी
बुनकर समाज अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सियासी तौर पर भी लामबंद होता रहा है। इसी समाज के रफीक अंसारी मेरठ शहर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लगातार दूसरी बार विधायक हैं। बुनकरों ने अपने बीच से नेता निकाला पर इससे भी उनकी समस्याएं कम नहीं हुईं।
टोल फ्री नंबर पर समस्याएं बताएं बुनकर
बुनकरों के लिए हिंदी, अंग्रेजी समेत सात भाषाओं में टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है। बुनकर मित्र के नाम से जारी इस हेल्पलाइन 18002089988 पर सुबह दस से शाम छह बजे तक कॉल कर सकते हैं।