पिछले दिनों ट्युर से लौटते समय रास्ते में एक ढाबे पर हम सब रूके। एक टेबल पर मेरे परिवार ने डेरा जमा लिया। सबने अपनी अपनी पंसद का खाना आर्डर किया। एक दस-बारह साल का बच्चा प्यारी सी मुस्कान के साथ पानी सर्व करके चला गया। उसकी निश्चल मुस्कान देख कर मन में कुछ सुकून सा महसूस हुआ। खाना खाते समय मैंने देखा वह बच्चा झूठे गिलास में बचे पानी को एक बाल्टी में इकट्ठा कर रहा था। मैं कौतूहलवश उसे देखे जा रही थी। अब तक बचे भोजन को इकट्ठा करने के बारे में सुना था। मगर पानी वो भी किसी की मुंह लगाया हुआ। ऐसा करने के पीछे उसका क्या मकसद है यह जानने की जिज्ञासा बढ़ती चली गई।
कुछ देर मे हमारा खाना भी हो गया। वह हमारी थाली उठाने आया और हमारे गिलास में बचे झूठे पानी को उसी बाल्टी में डालने लगा। अब मेरा सब्र जवाब दे गया मैंने उससे पूछ लिया-बच्चे तुम झूठा पानी इस बाल्टी में क्यों जमा कर रहे हो? इसकी क्या वजह है।
आंटी जी बचे हुए गिलासों के पानी को नाली में डालने से व्यर्थ बह जाता है। यह पानी हम जमा करने के बाद इस ढाबे के पीछे बने छोटे से बगीचे में डाल देते हैं, जिससे पेड़ हरे भरे रहते हैं और पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होती। सरकार कहती है, पानी की एक-एक बूंद बचानी चाहिए। मै बस पानी बचाने की एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूं।
पानी कि इस बचत को देखकर मेरा मन ग्लानि से भर गया। रास्ते में आते समय मेरे बेटे ने दो बोतल पानी सिर्फ इसलिए फेंक दिया कि वह गर्म हो चुका था। एक छोटे से बच्चे ने मेरी आंखें खोल दीं। यदि दृढ़ संकल्प हो तो शुरुआत कहीं से भी की जा सकती है। केवल थोथी बात करने की बजाय करके दिखाने में साथर्कता है। मन ही मन मैंने भी पानी बचाने का संकल्प ले लिया।