Wednesday, April 17, 2024
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रोशनी का अंतर

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AmritVani 2


चीन के सम्राट हुआन शी को पढ़ने का बहुत शौक था। उनको पढ़ने का कितना शौक था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका पुस्तकालय और सोने का कमरा दुनियाभर की किताबों से हर समय भरा रहता था। वह अपना अधिकतर समय पढ़ने में ही लगाते थे। एक दिन सम्राट ने अपने मंत्री शान ची से कहा- मैं अब सत्तर वर्ष का हो चला हूं। मगर पढ़ने की लालसा मन से जाती नहीं है। पर लगता है कि अब इस उम्र में पुस्तकों को अधिक समय नहीं दे पाऊंगा। मंत्री ने जवाब दिया- राजन, आप इस देश के सूर्य हैं।

आपके ज्ञान के प्रकाश से ही देश का शासन सफलतापूर्वक चलता रहा है। अगर आप सूर्य नहीं बने रहना चाहते तो कृपया दीपक बन जाइए। सम्राट को यह अच्छा नहीं लगा कि मंत्री उन्हें आसमान से जमीन पर पटक रहा है। कहां सूर्य और कहां दीपक। सम्राट को लगा मंत्री ने सूर्य से दीपक बनने को कहकर उन्हें उनके स्तर से गिराया है। उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में कहा- शान ची, मैं गंभीर होकर यह बात कह रहा हूं और तुम इसे मजाक में ले रहे हो। मैं तो तुमसे मार्गदर्शन की अपेक्षा कर रहा था।

शान ची समझ गया कि सम्राट मेरी बात के अर्थ नहीं समझ पाए हैं। शान ची ने हाथ जोड़कर कहा-आपने मेरी बात ठीक से समझी नहीं शायद। मेरा कहने का मतलब यह है कि जब कोई किशोर या युवा अध्ययन कर रहा होता है, तो उसका भविष्य सूर्य के समान होता है, जिसमें अपार संभावनाएं छिपी होती हैं और प्रौढ़ावस्था में यही सूर्य दीपक के समान हो जाता है।

दीपक में सूर्य जितना प्रकाश तो नहीं होता फिर भी उसका उजाला अंधेरे में रोशनी दिखाकर भटकने से बचाता है। इसी प्रकार आप भी पढ़ने की अपनी रुचि का पूर्ण त्याग न करके इसमें मन लगाए रखें। सम्राट को अब मंत्री शान ची की बात सही तरीके से समझ में आ गई।


SAMVAD 13

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